Nirmal Bhatnagar
Feb 192 min
Feb 19, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, अच्छा पढ़ना, अच्छा सुनना और अच्छी संगत में रहना एक ऐसी आदत है, जो अपने आप ही याने आपको पता चले बिना ही पहले आपके विचारों को और फिर आपके जीवन को गढ़ देती है; उन्हें एक नई सकारात्मक दिशा दे देती है। इसीलिए हमारी संस्कृति में अच्छा पढ़ने, अच्छा सुनने और अच्छे लोगों की संगत में रहने पर इतना ज़ोर दिया जाता है। ऐसा ही एक मौक़ा मुझे कुछ दिन पूर्व, उस वक़्त मिला, जब मुझे एक लेख के माध्यम से हमारे काव्य ग्रंथ, ‘महाभारत’ को एक गाथा नहीं, अपितु एक वास्तविकता; एक दर्शन के रूप में देखने और समझने का मौक़ा मिला। हालाँकि मुझे यह तो नहीं पता कि यह लेख किसने लिखा था, लेकिन फिर भी इसमें छिपी जीवन को बेहतर बनाने वाली सीखों को आपसे साझा करने के लिए इसे जस का तस आपके सामने रखने का प्रयास करता हूँ।
महाभारत में पांडव कुछ और नहीं, बल्कि हमारी पाँच इंद्रियाँ हैं अर्थात् पांडव दृष्टि, गंध, स्वाद, स्पर्श और श्रवण का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी तरह कौरव हमारे सौ तरह के विकार हैं, जो हमारी इंद्रियों पर प्रतिदिन हमला करते हैं। लेकिन हम उनसे लड़ सकते हैं और उन पर जीत भी प्राप्त कर सकते है। बस यह तब संभव होगा जब हमारे रथ के सारथी श्री कृष्ण होंगे। कृष्ण अर्थात् हमारी आंतरिक आवाज़; हमारा मार्गदर्शक प्रकाश अर्थात् अगर हम अपना जीवन, अपनी आत्मा की आवाज़ पर जीना शुरू कर दें; स्वयं को या अपने जीवन को अपने कृष्ण के हाथों में सौंप दें, तो फिर हमें चिंता करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है।
इस नए दर्शन के आधार पर देखा जाए तो अर्जुन हमारी आत्मा हो सकते है अर्थात् मैं ही अर्जुन हूँ और मैं स्व-नियंत्रित भी हूँ। कृष्ण हमारे परमात्मा हैं। पांच पांडव, मूलाधार चक्र से विशुद्ध तक के नीचे के पाँच चक्र हैं। द्रौपदी, कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है और इस जागृत शक्ति के पाँच पति हमारे ५ चक्र हैं। ॐ शब्द ही कृष्ण का पाँचजन्य शंखनाद है, जो मुझ और आप आत्मा को ढाढ़स बंधाता है कि चिंता मत कर मैं तेरे साथ हूँ। इन सबकी सहायता से हमें अपनी बुराइयों याने कौरवों पर विजय पानी है।
जी हाँ दोस्तों, हमें कृष्ण अर्थात् अपनी आत्मा की आवाज़ के आधार पर अपने निम्न विचारों, निम्न इच्छाओं या सांसारिक इच्छाओं अर्थात् अपने आंतरिक शत्रुओं याने कौरवों पर जीत प्राप्त करना होगी। दूसरे शब्दों में कहूँ तो हमें मटेरियलिस्टिक वासनाओं को त्यागना होगा और चैतन्य पाठ पर आरूढ़ होकर, विभिन्न विकार अर्थात् अधर्मी एवं दुष्ट प्रकृति या प्रवृति रूपी कौरवों को जीतना होगा। यह तब संभव होगा जब हम ७२००० नाड़ियों में श्री कृष्ण अर्थात् अपनी चैतन्य शक्तियों को भर देंगे। तभी हम पूर्णता के साथ एहसास कर पाएँगे कि मैं चैतन्यता, आत्मा या जागृति हूँ। याने मैं अन्न से बना शरीर नहीं हूँ।
इसलिए दोस्तों, उठो जागो और अपने आपको, अपनी आत्मा को, अपने स्वयं के सच को जानो, भगवान को पाओ, यही भगवद् प्राप्ति या आत्म साक्षात्कार है, यही इस मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है। यह शरीर ही धर्म क्षेत्र, कुरुक्षेत्र है। धृतराष्ट्र अज्ञान से अंधा हुआ मन है। अर्जुन आप हो और संजय आपके आध्यात्मिक गुरु हैं। इन्हें पहचानिए और अपने जीवन को सार्थक बनाइए।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर