Nirmal Bhatnagar

Jun 3, 20233 min

परिस्थिति नहीं, मनःस्थिति बनाएगी आपको विजेता…

May 28, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, विपरीत समय में अक्सर आपको लोग स्थिति, परिस्थिति और क़िस्मत को दोष देते हुए मिल जाएँगे। वे भूल हाते हैं कि उतार-चढ़ाव और अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों का होना प्रकृति का नियम है। जी हाँ, इस दुनिया में आप जब तक हैं तब तक यह फेर आने अनुकूल-प्रतिकूल स्थितियों, अच्छे-बुरे के दौर या आपत्तियों का आना स्वाभाविक है। विशेषकर तब जब आप कोई बड़ा लक्ष्य लेकर जीवन में आगे बढ़ते हैं।

इसका अर्थ यह क़तई नहीं है दोस्तों, कि ईश्वर बड़े लक्ष्य का पीछा करते वक्त हमें अनावश्यक रूप से विपरीत परिस्थितियों में ढकेलता है। उसका उद्देश्य तो बड़ा साफ़ है, ‘हमें बड़ी सफलता के लिए तैयार करना।’ इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए दोस्तों, हमें अनेकों बड़ी कठिनाइयों का सामना करना अनिवार्य समझना चाहिए। इसे मैं आपको अपने जीवन के उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। 17 वर्ष की उम्र में कैरियर की शुरुआत करने के बाद भी मुझे आशातीत सफलता लगभग 42 वर्ष की उम्र में मिली। इस दौरान मैंने अपने जीवन में अनेकों उतार-चढ़ाव देखे। जैसे, व्यापार में बार-बार असफल होना, क़र्ज़े में उलझना, भावनात्मक रूप से परेशान होना, पहचान खोना, लोगों द्वारा नकार दिया जाना, आदि। लेकिन आज अगर मैं अपने जीवन को पलटकर देखता हूँ, तो मुझे लगता है कि अगर यह सारी असफलताएँ मुझे ना मिली होती या मैंने विपरीत परिस्थितियों, विपत्तियों या चुनौतियों का सामना नहीं करा होता तो आज मैं काउन्सलिंग या ट्रेनिंग के दौरान लोगों की परेशानियों, दिक्कतों या चुनौतियों को पहचान ही नहीं पाता; उनसे जुड़ ही नहीं पाता और अगर ऐसा ना हो पाता तो आज मैं जीवन में इस मुक़ाम तक नहीं पहुँच पाता। इसलिए मेरा मानना है साथियों कि आपत्तियों, चुनौतियों, विपरीत परिस्थितियों से बचकर या इनसे भय खाकर, हम खुद की प्रगति या उन्नति की राह में ही रोड़े अटकाते हैं। इसके स्थान पर अगर हम स्वीकार लें कि जिसने जन्म लिया है वह अपने जीवन में सुख और दुःख दोनों का अनुभव करेगा। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ईश्वर या प्रकृति के नियम के अनुसार कोई भी इंसान ना सिर्फ़ सुखी और ना ही सिर्फ़ दुखी रह सकता है और अगर यह सत्य है तो फिर सुख में हवा में क्यों उड़ा जाए और दुःख में दुखी क्यों रहा जाए?

दोस्तों, इसके स्थान पर अगर हम सभी धैर्य के साथ सुख और दुःख दोनों को ही एक समान स्वीकारना शुरू कर दें, तो जीना आसान हो जाता है। यक़ीन मानिएगा, अगर आपने इस रहस्य को समझ लिया और जीवन में धैर्य के साथ स्वीकारोक्ति के भाव को विकसित कर लिया तो आपने हर हाल में सुखी रहने के मंत्र को सीख लिया है। भयंकर या विपरीत परिस्थितियों या विपत्तियों के कारण विचलित होना मानवीय स्वभाव है। लेकिन इन स्थितियों में जो धैर्य रखता है वही धैर्यवान कहलाता है।

हो सकता है अब आपके मन में सवाल आ रहा हो कि ‘सुखी रहने का सूत्र इतना साधारण है, उसके बाद भी ज़्यादातर लोग अधीर क्यों होते हैं?' तो जवाब बड़ा साधारण सा है दोस्तों, कमजोर हृदय के कारण। अगर आप भी इन्हीं में से हैं तो स्वयं को याद दिलाइएगा कि ब्रह्मा से लेकर भगवान राम या कृष्ण तक; तो दूसरी और जानवरों तक कोई भी सम्पूर्ण रूप से सुखी नहीं रहता है। तो आईए दोस्तों, आज से सुखी रहने के लिए सभी विपरीत स्थितियों को जीवन का एक हिस्सा मान कर स्वीकारते हैं और खुद को याद दिलाते हैं कि आज तक जीवन में जो भी सफल हुए हैं वे सब हमारी तरह ही दो हाथ, दो पैर, दो आँख, एक नाक और एक मुँह वाले लोग थे, उनके सिर पर सींग नहीं थे। उन्होंने अपने अंदर सिर्फ़ एक गुण विकसित किया था, ‘हर स्थिति में स्वीकारोक्ति का भाव रखते हुए, धैर्य रखना।’ अगर हमने भी इसे अपना लिया तो यक़ीन मानिएगा सफलता, ख़ुशी और शांति ज़्यादा दिन हमसे दूर नहीं रह पाएगी।

-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

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