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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

इंसानियत का धर्म दयालुता

इंसानियत का धर्म दयालुता
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Aug 13, 2021

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

महसूस करे दूसरों का दर्द अपने अंदर  


अपनी भोपाल यात्रा के दौरान एक क्लायंट से मिलने के लिए मैं पूर्व से तय स्थान, एक रेस्टोरेंट के पास खड़ा था। इंतज़ार के आधे घंटे में मुझे एक ऐसी घटना देखने को मिली जिसने शिक्षा के नए अर्थ समझने का मौक़ा दिया। पूरी घटना साझा करने से  पूर्व, मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ।


सूजानगढ के बुद्धिमान और दयालु माने जाने वाले राजा ने एक बार विचित्र सा निर्णय लिया। अपनी उम्र को देखते हुए उन्होंने वार्षिक सभा में ऐलान किया कि अब वे राजपाट छोड़ सन्यास लेंगे। सभी सभासदों ने उन्हें बहुत समझाने का प्रयास करा लेकिन वे अपने निर्णय पर अडिग रहे। उन्होंने सभी सभासदों के सामने एक और प्रस्ताव रखा कि वे अपना उत्तराधिकारी राज्य के योग्य युवकों में से साक्षात्कार के द्वारा चुनेंगे। साक्षात्कार में वे परखेंगे कि आप दूसरों के प्रति प्रेम और दया की भावना रखते हैं या नहीं।


यह खबर राज्य में आग की तरह फैल गई और देश का शासक बनने की संभावनाओं को सुन, हर युवा बेहद उत्साहित था। इन्हीं में एक राज्य के सुदूर गाँव में रहने वाला एक बेहद गरीब लेकिन दयालु, मेहनती और अल्प शिक्षित युवक भी था। शुरू में तो अच्छे कपड़े व शिक्षित न होने की वजह से उसने साक्षात्कार में जाने के विचार को छोड़ दिया। लेकिन बाद में उसने सोचा कि  वह उपलब्ध संसाधनों के साथ, अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयत्न करेगा। बाक़ी ईश्वर की जो भी इच्छा होगी, वह उसे स्वीकार लेगा।


उसने उसी दिन से साक्षात्कार के लिए तैयारी करना व पैसे बचाना शुरू कर दिया। तय दिन उसने अपनी बचत से नए कपड़े व रास्ते में खाने के लिए भोजन लिया और राजमहल की ओर चल दिया। कई दिनों की कठिन पैदल यात्रा के बाद वह राजा के महल के क़रीब पहुँचा। वहाँ उसने सड़क के किनारे एक, फटे कपड़ों से अपने तन को ढकने व ठंड से बचने का असफल प्रयास करते, एक बूढ़े भूखे भिखारी को देखा। भिखारी ने उसकी ओर हाथ बढ़ाते हुए मदद की गुहार लगाते हुए, कमजोर एवं कर्कश आवाज़ में कहा, ‘मैं बहुत भूखा हूँ और मुझे ठंड भी लग रही है। कृपया मेरी मदद करें।’


भिखारी की दयनीय स्थिति देख युवक का दिल पसीज गया। उसने तुरंत अपनी नई पोशाक उतारी व साथ लाये खाने के साथ उसे भिखारी को दे दिया। भिखारी की मदद कर व उससे आशीर्वाद पा वह युवा बहुत खुश था लेकिन वापस से पुराने कपड़ों को पहन साक्षात्कार के लिए राजा के पास जाने में थोड़ा झिझक रहा था। अंत में थोड़ा साहस जुटा, वह अनमने मन से राज दरबार में पहुँचा और झुककर राजा व सभी सभासदों को प्रणाम करा और अपनी नज़र उठाकर दरबार में देखने लगा। 


राजा के सिंहासन की ओर देखते ही वह आश्चर्यचकित रह गया क्योंकि सामने राज सिंहासन पर ढेरों गहने व सुंदर वस्त्र पहने, रास्ते में मिले भिखारी की शक्ल का एक व्यक्ति बैठा था। राजा ने उसे सदमे में देख कहा, ‘हाँ, तुम सही पहचान रहे हो मैं वही भिखारी हूँ जिससे तुम रास्ते में मिले थे।’ 


"लेकिन ... तु …तु ... तुमने, नहीं आपने भिखारी की तरह कपड़े क्यों पहने थे?’ उसने हकलाते हुए राजा से पूछा। राजा बोला, ‘क्यूँकि मैं सुनिश्चित करना चाहता था कि मैं सच्चे और साफ़ दिल वाले योग्य युवा को उत्तराधिकारी के रूप में चुन सकूँ। इसके विपरीत अगर मैं राजा के रूप में आपके पास आता, तो आप मुझे प्रभावित करने के लिए कुछ भी करते और मैं कभी भी नहीं जान पाता कि आपके दिल में वास्तव में क्या है? इसलिए मैंने इस तरकीब का इस्तेमाल किया और मैं पहचान पाया कि आप वास्तव में सभी इंसानों को एक जैसा मानते हैं, उनसे प्यार करते हैं। भिखारी को देने के लिए आपके पास कुछ भी नहीं था, उसके बाद भी आपने उसकी मदद की। अपना सब कुछ दाँव पर लगाने के बाद भी आपके मन में हिचक नहीं थी। 


वास्तव में जरूरतमंद के प्रति उदारता और प्यार एक महान हृदय की निशानी है। भिखारी के प्रति आपकी उदारता ने साबित कर दिया कि आप सभी इंसानों को एक जैसा मानते हैं और उनसे सच्चा प्यार करते हैं। इस देश को एक ऐसे ही नेता की जरूरत है जो पूरे देश के कल्याण के लिए काम करे, न कि केवल उसके लिए जो सिंहासन की सेवा कर रहे हैं। आपने साबित कर दिया है कि आप मेरे उत्तराधिकारी बनने लायक़ हैं। इसके बाद राजा ने अपने वादे अनुसार उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। 


ऐसा ही कुछ मैंने उस रेस्टोरेंट के बाहर देखा। एक युवक रेस्टोरेंट से निकलने या उसमें जाने वाले हर व्यक्ति से खाने के लिए कुछ भीख में माँग रहा था। लगभग 15-20 मिनिट तो लोग उसे नज़रंदाज़ करते रहे लेकिन उसके बाद एक बच्चे ने रेस्टोरेंट से एक खाने का पैकेट लाकर उसे दिया। वह भिखारी सामने पार्किंग में ज़मीन पर ही बैठ गया और खाने का पैकेट खोलने लगा। पैकेट खोलकर वह खाना खाता उसके पहले ही उसके पास पूँछ हिलाते हुए दो कुत्ते आ गए। उन्हें देखते ही उस भिखारी ने भीख में मिले उस थोड़े से खाने में से रोटी ली और उसके टुकड़े करके कुत्तों को दे दिया।


उस भिखारी के बर्ताव को देख मैं हैरान और निशब्द था। एक ओर वे पढ़े-लिखे लोग थे (जिनमें मैं शामिल था) जो सक्षम होते हुए भी उसे और उसकी मजबूरी को नज़रअन्दाज़ कर रहे थे और दूसरी ओर वह भिखारी था, जिसके खुद के खाने का कोई ठिकाना नहीं था लेकिन उसे उन मूक पशुओं की भूख का एहसास था। 


सही कहूँ दोस्तों, तो मैं समझ नहीं पा रहा था कि हम दोनों में से शिक्षित कौन है? किसी ने सही कहा है, ‘दयालुता ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है और इसकी पहचान होना ही ज्ञानी बनने की शुरुआत है।’  


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

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