फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
इन्सान की सोच ही जीवन का आधार


Nov 13, 2021
इन्सान की सोच ही जीवन का आधार!!!
हाथी और अंधों वाली कहानी तो निश्चित तौर आपने सुनी ही होगी, जिसमें अंधों ने हाथी के जिस अंग को छुआ था, वैसा ही हाथी को माना था। ऐसा ही हाल हमारी ज़िंदगी का भी है दोस्तों, आप इसे जिस नज़रिए या पहलू से देखते हैं, ज़िंदगी आपको वैसी ही नज़र आती है। आज ही किसी ने मुझसे जीवन के ऊपर एक बहुत ही अच्छी कहानी साझा करी, इसके लेखक कौन हैं, मुझे नहीं पता। लेकिन यह कहानी जीवन के प्रति सही नज़रिया बनाना बहुत अच्छे से सिखा सकती है। तो चलिए कहानी से शुरू करते हैं-
बात कई वर्ष पुरानी है, एक सुनसान लेकिन प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर रास्ते से तीन राहगीर अपनी मंज़िल की ओर जा रहे थे। अत्यधिक लम्बा रास्ता होने की वजह से, उन्होंने झरने के पास, एक छायादार वृक्ष के नीचे विश्राम करने का निर्णय लिया। सबसे पहले उन्होंने अपने कंधे पर रखे बांस, जिसके दोनों छोर पर झोले टाँगे थे, को छायादार वृक्ष के नीचे ज़मीन पर रखा और वहीं झरने से पानी पीकर पेड़ की छाँव में सुस्ताने लगे।
कुछ ही दूरी पर बैठे एक महात्मा और उनके चेले भी इन तीनों राहगीरों को देख रहे थे। अचानक महात्मा उन तीनों राहगीरों को देखते हुए हंसने लगे। महात्मा को इस तरह हंसते देख चेला बोला, ‘गुरुजी, मैं समझ नहीं पाया कि आप उन राहगीरों को देखते ही क्यूँ हंसने लगे? वे तीनों तो सामान्य बातचीत कर रहे हैं।’ महात्मा जी मुस्कुराते हुए बोले, ‘बेटा देखो, इन तीनों राहगीरों में से एक बहुत थका और निराश नज़र आ रहा है, जबकि दूसरा थका हुआ तो है लेकिन वह निराश नज़र नहीं आ रहा है जबकि तीसरा राहगीर एकदम आनंद में है। तीनों के इस भाव में ही सुखी और खुश रहने का राज छुपा हुआ है।’ चेला आश्चर्य के साथ गुरुजी की ओर देखते हुए बोला, ‘मैं कुछ समझ नहीं पाया गुरुजी, क्या आप थोड़ा विस्तार से बताएँगे?’
गुरुजी बोले देखो इन तीनों राहगीरों के कंधों पर डंडे के सहारे दो झोले टंगे थे, एक झोला आगे और एक झोला पीछे। मान लो इसी तरह के झोले तुम्हारे कंधे पर टंगे होते और तुम्हें एक झोले में अपनी सारी अच्छाई और दूसरे में अपनी सारी बुराई रखना होती तो बताओ तुम आगे वाले झोले में क्या रखते और पीछे वाले झोले में क्या? महात्मा का प्रश्न सुन पहला चेला बोला, ‘गुरुजी, मैं आगे वाले झोले में बुराई रखूँगा जिससे वह मुझे हमेशा दिखती रहे और मैं उससे दूर रह सकूँ।’
पहले चेले की बात खत्म होते ही दूसरा चेला बोला, ‘गुरुजी, मैं आगे वाले झोले में अच्छाई रखूँगा और पीछे वाले झोले में बुराई। आगे रखी अच्छाई मुझे हमेशा अच्छा बनने की प्रेरणा देगी और पीछे वाला झोला मुझे बताएगा कि मुझे किससे बचना है।’ दोनों की बात सुनने के बाद महात्मा ने यही प्रश्न तीसरे चेले से पूछा, तो वह बोला, ‘‘गुरुजी मैं भी आगे वाले झोले में अच्छाई और पीछे वाले झोले में बुराई रखूँगा पर साथ ही मैं पीछे वाले झोले में एक छेद कर दूँगा जिससे धीरे-धीरे बुराई कम होती रहे। आगे रखी अच्छाई मुझे संतोष और ऊर्जा प्रदान करेगी और पीछे से कम होती अनावश्यक बुराई मेरे ऊपर से अनावश्यक बोझ कम कर देगी और मैं धीरे-धीर बुराई को भूल जाऊँगा, उससे दूर हो जाऊँगा।
तीनों का जवाब सुनने के बाद महात्मा बोले, ‘तुम तीनों के जवाब में ही दुःख और सुख का राज छुपा है। तीनों राहगीरों में से जो थका और निराश है, उसने आगे वाले झोले में अपनी बुराई और पीछे वाले झोले में अपनी अच्छाई को रखा है। आँखों के सामने हर पल रहने वाली यह बुराई उसे नकारात्मक भाव में रख थका देती है और अच्छाई उसे नज़र ही नहीं आती है। इसीलिए उसे ईश्वर का दिया यह बेहतरीन जीवन कठिन और बोझिल लगने लगता है।
दूसरा राहगीर जो थका हुआ लेकिन निराश नज़र नहीं आ रहा है उसने आगे वाले झोले में अच्छाई और पीछे बुराई रख रखी है। हर पल दिखने वाली अच्छाई उसे आशावान बनाए रखती है लेकिन हमेशा साथ रहने वाली बुराई का बोझ उसे थका देता है। यह राहगीर हमेशा अपनी बुराइयों पर विजय पाने का प्रयास कर परफ़ेक्ट बनना चाहता है। यह अनावश्यक अपेक्षा और मेहनत उसे थका देती है।
तीसरा राहगीर जो आनंद में नज़र आ रहा है उसने आगे वाले झोले में अच्छाई रख रखी है और पीछे वाले झोले में बुराई रख, एक छेद कर दिया है। अर्थात् वह हर पल अच्छाई पर अपनी नज़रें गड़ाए रखता है और समय के साथ अपनी ग़लतियों, बुराइयों को भूल आगे बढ़ता रहता है। इसी वजह से वह हमेशा सकारात्मक और ऊर्जावान बना रहता है। संतुष्टता का यह भाव उसकी जीवन रूपी इस यात्रा को आनंददायक बना देता है।
जी हाँ दोस्तों, नकारात्मकता पर फ़ोकस करना आपके अंदर क्रोध, निराशा जैसे अन्य नकारात्मक भाव बढ़ाता है। जबकि सकारात्मक भाव आपके अंदर क्षमा करने की शक्ति उत्पन्न करता है, आपके मन से अनावश्यक बोझ को कम कर जीवन को सुंदर और सरल बनाता है। इसलिए जीवन में हमेशा खुश रहने के लिए अपना ध्यान सिर्फ़ अच्छाई पर लगाना शुरू करें। लोगों, परिस्थितियों, घटनाओं में बुराई के स्थान पर अच्छाई खोजने की कोशिश करें। ऐसा करना आपकी सोच को सकारात्मक बनाकर आपके जीवन को ख़ुशहाल बनाएगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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