फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
उलझन से बचना है तो चुनने का तरीक़ा बदलें
April 7, 2021
उलझन से बचना है तो चुनने का तरीक़ा बदलें!!!
हाल ही में दो दिनी कार्यशाला के दौरान काउंसलरों के समूह के साथ समय बिताने का मौक़ा मिला। बातचीत के दौरान एक युवा काउंसलर बोला, ‘सर, वर्तमान शिक्षा प्रणाली और बच्चों के बीच में पूर्ण तालमेल नहीं है, कहीं ना कहीं चूक हो रही है।’ मुझे दुविधा में देख उसने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा, ‘सर, जैसा आपने हमें बताया था कि शिक्षा का उद्देश्य भविष्य की उलझन बढ़ाना नहीं बल्कि भविष्य की स्पष्ट तस्वीर बनाने में सहायता करना होता है। लेकिन आजकल बच्चे जितने ज़्यादा शिक्षित होते जा रहे हैं, उतने ही ज़्यादा भ्रम के जाल में उलझते जा रहे हैं।’
मैंने उनसे थोड़ा गहराई के साथ समझाने के लिए कहा तो वे बोले, ‘सर, हर बच्चा कक्षा दसवीं पढ़ते समय ग्यारहवीं में क्या विषय लूँ इसमें उलझता है, उसके बाद वह बारहवीं के बाद कौनसी डिग्री और फिर कौन सा कॉलेज चुने के फेर में उलझता है और सर मज़ा तो इसके बाद आता है। जब वह फ़ाइनल ईयर में पहुँचकर एक बार फिर सोचता है कि मैंने ग्यारहवीं में सही विषय तो चुना था या नहीं? वैसे बच्चे के मन में यह दुविधा यहीं समाप्त नहीं होती, इसके बाद भी चलती रहती है। जैसे, शादी के समय मैंने सही लड़की या लड़का चुना है या नहीं?’ “सर, क्या मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाऊँ?”
उसकी बात सुन मेरे चेहरे पर अपने आप ही हल्की सी मुस्कान आ गई क्यूँकि मेरा विश्वास आज और मज़बूत हो गया था कि कहानी आपको जटिल से जटिल बात को आसानी से कहने और समझाने या समझने का मौक़ा दे देती है। ख़ैर, मेरे हाँ कहते ही उन काउंसलर ने अपना मोबाईल निकाला और मुझे एक कहानी पढ़कर सुनाई, जो इस प्रकार थी, ‘कॉलेज में पढ़ने वाला एक लड़का अपने दोस्त के धनवान पिताजी से बड़ा प्रभावित था। पढ़ाई के दौरान उसने उनके जैसा बनने का निश्चय किया। बस अब वह दिन रात उन्हीं के जैसा बनने के लिए मेहनत किया करता था। व्यापार शुरू करने के कुछ ही सालों में उसने बहुत सारे पैसे कमा लिए। अब उसकी गिनती भी शहर के धनवानों में होने लगी।
लेकिन एक दिन उसकी मुलाक़ात एक विद्वान से हुई। उनसे बातचीत के दौरान उसे एहसास हुआ कि पैसे से ज़्यादा ज़रूरी ज्ञान है। अब वह सब काम छोड़ वापस से पढ़ाई-लिखाई में लग गया। अलग-अलग विषय का ज्ञान लेने के अपने प्रयास में एक दिन उसकी मुलाक़ात एक संगीतज्ञ से हुई। उनका संगीत सुन, उसे लगने लगा कि इससे ज़्यादा सुकून देनेवाली कोई और चीज़ हो ही नहीं सकती। अब उसने पढ़ाई-लिखाई छोड़कर संगीत सीखना प्रारम्भ कर दिया। वह संगीत पूरा सीख पाता उससे पहले ही उसका व्यापार चौपट हो गया। क्या करूँ?, क्या ना करूँ?, इसी पसोपेश में उसकी काफ़ी उम्र बीत गई। ‘अब वह ना तो धनी था, ना ही ज्ञानी और ना ही संगीतज्ञ।’
उसकी कहानी पूरी होते ही मैंने उससे कहा, ‘तुम कह तो बिलकुल सही रहे हो लेकिन अगर तुम थोड़े और गहराई में जाकर सोचोगे तो तुम्हें एहसास होगा कि यह उलझन तो उस बच्चे के जन्म के पहले से ही शुरू हो गई थी। पहले यह माता-पिता के बीच में थी कि कौन सा समय जन्म के लिए ठीक रहेगा?, नाम क्या रखेंगे?, हॉस्पिटल कौन सा रहेगा? आदि…। वैसे बच्चे के जन्म के बाद और विद्यालय जाने के पहले भी यह उलझन बरकरार रहती है, बड़ा होने पर हम इसे क्या बनाएँगे?, किस विद्यालय में यह पढ़ने जाएगा आदि।
दोस्तों हमें एक बात समझना होगी किसी भी विषय में, परिस्थिति में, जीवन में उलझन होना समस्या नहीं है क्यूँकि विचारों के जाल में उलझना स्पष्ट रास्ता तलाशने की ओर पहला कदम होता है, क्यूँकि जो किसी चीज़ के बारे में सोचेगा वही तो उलझेगा।
मेरी बात सुन हो सकता है आपकी उलझन और बढ़ गई होगी और आप सोच रहे होंगे कि, ‘फिर असली समस्या है कहाँ?’ तो दोस्तों असली समस्या हमारे समाधान खोजने के तरीक़े में है। अकसर हम समाधान का चुनाव तात्कालिक आकर्षण के आधार पर करते हैं बल्कि अपनी पसंद, अपनी क्षमता, अपनी आवश्यकता के आधार पर और जब चुनाव सही नहीं होता तो हम बार-बार अपने निर्णय पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं या उस निर्णय को बदलते हैं।
दोस्तों अगर बार-बार की इस उलझन से बचना है, जीवन में सफल होना है तो आज से एक निर्णय लीजिए, जब भी कभी कोई बड़ा निर्णय लेना हो या किसी चीज़ का चुनाव करना हो तो उसे सिर्फ़ दिखावे, बाहरी आकर्षण, तात्कालिक लाभ या अधूरे ज्ञान के आधार पर करने के स्थान पर पूरी तरह एकाग्रचित्त रहते हुए, अपनी क्षमता और आवश्यकताओं के सही आकलन के साथ पूरे और सही ज्ञान के आधार पर करें।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com