फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
जिधर ध्यान लगाया उधर तरक़्क़ी


Mar 21, 2021
जिधर ध्यान लगाया उधर तरक़्क़ी…
आमतौर पर व्यवसायी के रूप में हमारी शिकायत रहती है कि लोग हमारे आईडिया को चुरा लेते अर्थात् कॉपी कर लेते हैं। ऐसा ही एक वाक़या आज व्यापारिक कंसलटेंसी के अपने कार्य के दौरान मेरे सामने आया। एक युवा ने सिर्फ़ हेल्दी फ़ूड सर्व करने के उद्देश्य से रेस्टोरेंट खोला। शुरुआती दिनों में उन्हें ठीक-ठाक रिस्पॉन्स मिला। लेकिन कोविद लॉकडाउन के बाद लोगों की बदली हुई प्राथमिकताओं की वजह से जल्द ही रेस्टोरेंट अच्छा चलने लगा। बढ़ते रिस्पॉन्स व लोकप्रियता को देख उन्होंने अपने रेस्टोरेंट को एक बड़ी जगह पर स्थानांतरित कर दिया। शुरू में तो सब ठीक था लेकिन जल्द ही अच्छा व्यापार होने के बाद भी वे परेशान रहने लगे। बातचीत में पता चला कि पुरानी जगह पर उनके एक परिचित ने इसी तरह का रेस्टोरेंट खोल दिया है और इसी वजह से वे परेशान हैं। मैंने उन्हें इस विचार को त्याग कर आगे बढ़ने की सलाह दी, लेकिन वे उसे सबक़ सिखाना चाहते थे और कह रह थे कि ‘मैं उसे छोड़ूँगा नहीं।’
मैंने समझाने का असफल प्रयास किया, पर वे तो साम-दाम-दंड-भेद, हर तरीक़े से उसे नुक़सान पहुँचाने के बारे में विचार कर रहे थे। उनकी स्थिति को देख मुझे एक कहानी याद आ गई।
बहुत साल पहले एक पहाड़ी जहाँ बहुत सारे बंदर रहते थे, एक दिन एक शेर अपने सेक्रेटरी सियार के साथ वहाँ से गुजर रहा था। शेर को रहने के लिए वह पहाड़ी पसंद आ गई। उसने सियार से खुद के रहने के लिए एक गुफा ढूँढने का कहा।
बंदरों को जैसे ही इस बात का पता चला वे विरोध जताने के लिए आए और शेर से बोले, ‘यह हमारा इलाक़ा है आप अपने रहने के लिए कोई दूसरी पहाड़ी जगह खोज लें।’ बंदरों की बात सुन सियार बोला, ‘आप लोग पेड़ पर रहते हैं और मेरे मालिक गुफा में। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि शेर के यहाँ रहने से आप लोगों को कोई नुक़सान नहीं होगा।’ शेर ने भी हाँ में गर्दन हिला दी। उसके सामने बंदर कुछ कह तो नहीं पाए लेकिन शेर का वहाँ रहना उनको अच्छा नहीं लग रहा था।
शेर को अपनी पहाड़ी पर से भगाने के लिए बंदरों ने कई तरीक़े अपनाए लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके विपरीत शेर अपने वायदे के अनुसार पानी पीने और शिकार करने के लिए पहाड़ी से काफ़ी दूर जाने लगा जिससे बंदरों को कोई परेशानी ना हो। एक दिन शेर ने अपनी परेशानी कम करने के उद्देश्य से गुफा के बाहर पानी का इंतज़ाम करने के लिए सियार को कहा।
शेर की यह बात बंदरों ने भी सुन ली और उन्होंने सोचा अगर वे किसी तरह इस इंतज़ाम को विफल कर दें तो शेर जल्द ही परेशान हो जाएगा और यहाँ से चला जाएगा। दूसरी ओर सियार ने पानी भरकर गुफा के बाहर रखना प्रारम्भ कर दिया। सियार के जाने के बाद बंदरों ने वह सारा पानी पहाड़ी से नीचे गिरा दिया। कुछ देर बाद शेर पानी पीने के लिए गुफा के बाहर आया लेकिन वहाँ पानी का ख़ाली बर्तन देख बहुत ग़ुस्सा हुआ और सियार को काफ़ी डाँटा और पानी ना रखने का कारण पूछा। सियार ने पानी रखने के बारे में बताया और कहा ‘शायद अत्यधिक गर्मी की वजह से बर्तन में पानी सुख गया होगा।’ कल से और ज़्यादा पानी लाने का वायदा कर सियार वहाँ से चला गया।
अगले दिन ज़्यादा पानी लाने के बाद भी शेर को बर्तन ख़ाली मिला। शेर ने सियार को नौकरी से हटाने का मन बनाया पर उसकी कर्मठता और कर्तव्यपरायणता को देख उसने इसका कारण पता लगाने का निर्णय लिया। अगले दिन सियार पानी लाया और शेर के आदेशानुसार उसने आधा पानी गुफा के बाहर और आधा पानी गुफा के अंदर रख दिया। उस दिन शेर ने गुफा के अंदर रहते हुए ही बाहर नज़र रखी जल्द ही उसे सारा माजरा समझ आ गया। सियार यह देख बहुत ग़ुस्से में था, वह बंदरों को सबक़ सिखाने के पक्ष में था। लेकिन शेर ने उसे टोकते हुए कहा, ‘नहीं, ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है, तुम पहले की ही तरह आधा पानी गुफा के बाहर और आधा पानी गुफा के अंदर रखो।’
सियार अगले दिन से वैसा ही करने लगा और बंदर भी पहले की ही तरह रोज़ पानी गिराने लगे। कुछ माह ऐसे ही गुजर गए सियार का पानी लाना और बंदरों द्वारा उसे गिराना, खेल यूँ ही चलता रहा। लेकिन अब बंदरों को एहसास हो गया था कि शेर को पता चल गया है कि पानी हम गिराते हैं। लेकिन वे हैरान थे कि उसके बाद भी शेर उन्हें कुछ कहता क्यूँ नहीं?
शेर को खुश, मस्त व शिकार करके जल्द आता देख बंदर परेशान रहने लगे।एक दिन परेशान बंदरों ने शेर से इसका कारण पूछा। शेर मुस्कुराते हुए बोला, ‘देखो, पानी गिराकर तुम मेरा ही फ़ायदा कर रहे हो इसलिए मैंने तुम्हें नज़रंदाज़ करा। तुम्हारे पानी गिराने की वजह से पहाड़ी की ढलान पर ही काफ़ी घास उग गई और अब काफ़ी सारे जानवर चरने के लिए यहाँ आने लगे हैं। इसलिए तुम्हारी वजह से मुझे शिकार के लिए ज़्यादा परेशान नहीं होना पड़ता है।’ शेर की बात सुन सभी बंदर एक दूसरे का मुँह ताक रहे थे और सोच रहे थे उन्होंने शेर का नुक़सान किया है या खुद का।
जी हाँ दोस्तों, ठीक इसी तरह रेस्टोरेंट मालिक ने किराए की जगह या रेस्टोरेंट के सामान्य विचार को अपना एकाधिकार मान लिया था और इसी वजह से दूसरे के उस व्यापार में आने को स्वीकार नहीं पा रहा था। उसने अपना समय खुद की ग्रोथ के स्थान पर दूसरे को नीचे गिराने में लगाना शुरू कर दिया और ऐसा करना अंततः उसके खुद के लिए ही नुक़सानदेह सिद्ध होने लगा।
जी हाँ दोस्तों, आमतौर पर हम अपने जीवन में इसी तरह की गलती कई बार करते हैं फिर बात चाहे रिश्तों की हो या नौकरी या व्यवसाय की। याद रखिएगा दोस्तों जिधर ध्यान लगाएँगे उधर ही तरक़्क़ी होगी, ध्यान अगर नकारात्मक है तो नकारात्मकता बढ़ेगी और ध्यान अगर सकारात्मक है तो सकारात्मकता बढ़ेगी।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com