फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
दुनिया वैसी ही होगी, जैसा आप इसे बनाएँगे


Sep 18, 2021
दुनिया वैसी ही होगी, जैसा आप इसे बनाएँगे !!!
दोस्तों विषय थोड़ा गम्भीर है, लेकिन इंसानियत के नाते इस पर चर्चा करना ज़रूरी है। आज एक मित्र अपने बच्चे के साथ काउन्सलिंग के लिए मेरे पास आए। काउन्सलिंग के दौरान मुझे एहसास हुआ कि बच्चा थोड़ा उखड़ा हुआ सा है। चूँकि मैं बच्चे से पहले से ही परिचित था इसलिए मैंने सीधे ही उससे पूछ लिया कि आज उसका मूड इतना खराब क्यूँ है? वह कुछ बोलता उससे पहले ही उसके पिता याने मेरे मित्र बोले, ‘यार! आज मेरी इससे थोड़ी कहा-सुनी हो गई है। शायद इसलिए नाराज़ होकर बैठा है।’ मैंने तुरंत मित्र से अगला प्रश्न करा, ‘क्यूँ भई आज किस बात पर भीड़ लिए?’ वह बोला, ‘कुछ नहीं यार आज की पीढ़ी की सोच ही अलग है, दोस्त तो इनके सगे सम्बन्धी होते हैं और हम सब इनके दुश्मन।’
‘अभी यह सब छोड़ो।’ कहते हुए पहले तो बात बदली और फिर मौक़ा मिलते ही उनके पुत्र से इस विषय में बात करी। उस बच्चे का कहना था कि पिताजी बहुत छोटी सी बात का बतंगड़ बना रहे हैं और वैसे भी देखा जाए तो मैं ही सही हूँ। मैंने उससे बात को थोड़ा विस्तार से बताने के लिए कहा तो वह बोला, ‘सर, मैं और मेरा मित्र कोचिंग से पढ़कर लौट रहे थे तब रास्ते में हमें एक अंकल घायल अवस्था में रोड पर गिरे हुए दिखे। वहाँ लोग तो काफ़ी खड़े थे लेकिन कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। मैंने और मेरे मित्र ने उन्हें अस्पताल पहुँचाया। पिताजी इसी बात पर नाराज़ हैं, उनका कहना है कि इस साल मेरी बोर्ड परीक्षा है इसलिए मुझे इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए।
बच्चे की बात सुन मुझे पूरा घटनाक्रम समझ आ गया। पिता जहां सिर्फ़ बच्चे के भविष्य को लेकर चिंतित थे, वहीं बच्चा मानवता के प्रति अधिक चिंतित था और मेरी नज़र में मानवता या इंसानियत का बचना ज़्यादा ज़रूरी था। मैंने इस कहानी के माध्यम से मित्र को समझाने का प्रयास करा-
गर्मी से परेशान चींटी पानी पीने के लिए नदी किनारे पहुँची। नदी में तेज़ बहाव को देख पहले तो वो थोड़ी देर के लिए हिचकिचाई पर अंत में उसने पानी पीने का निर्णय ले ही लिया और धीमे-धीमे ध्यान से, पैर जमाते हुए वह नदी किनारे तक पहुँच गई। किनारे पर पहुँच कर उसने पानी पीना शुरू ही किया था कि तेज़ बहाव की वजह से उसका पैर फिसल गया और वह पानी में बहने लगी। कुछ ही पलों में उसे लगने लगा कि शायद आज उसके जीवन का अंतिम दिन है।
उसी वक्त नदी के ऊपर उड़ती चिड़िया की नज़र चींटी पर पड़ी। वह तुरंत किनारे से अपनी चोंच में पकड़कर पीपल के पेड़ का एक पत्ता लेकर आयी और नदी में बहती चींटी के सामने डाल दिया। चींटी तुरंत उस पत्ते पर चढ़ गई। चींटी को पत्ते पर सुरक्षित देख चिड़िया वापस पत्ते के पास गई और उसे अपनी चोंच में उठाकर उसे नदी के किनारे छोड़ दिया। चींटी ने जान बचाने के लिए चिड़िया का धन्यवाद किया और अपने घर चली गई।
इस घटना को बीते अभी कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन चींटी अपना दाना लेकर जा रही थी कि तभी उसका ध्यान चिड़ियों को पकड़ने के लिए जंगल में आए बहेलिये पर गया। शुरु में तो चींटी कुछ समझ नहीं पायी लेकिन चिड़िया पकड़ने का जाल, गुलेल आदि अन्य सामान देख उसे माजरा समझ आने लगा। चींटी ने सोचा यही सही मौक़ा है मुझे चिड़िया को सचेत कर देना चाहिए अन्यथा यह बहेलिया या तो उसका शिकार कर लेगा या उसे पकड़ लेगा। वह तुरंत बहेलिये के पैर पर चढ़ी और उसे जोर से काट लिया।
चींटी के जोर से काटते ही बहेलिये के मुँह से चीख निकल गई। बहेलिये की आवाज़ सुन चिड़िया को ख़तरे का अंदाज़ा हो गया और वह अपने बच्चों सहित सुरक्षित स्थान की ओर उड़ गई।
कहानी पूरी होते ही मैंने मित्र से कहा, ‘यार तुम्हारी चिंता वाजिब है पर सोच कर देखो ‘किताबी पाठ’ या ‘मानवता का पाठ’, दोनों में से क्या तुम्हारे बेटे को बेहतर इंसान बनाएगा। उसकी सुरक्षा की चिंता करना तुम्हारा दायित्व है लेकिन याद रखो सिर्फ़ कामकाजी जीवन में सफल बनाने से वह खुश या संतुष्ट नहीं रह पाएगा।’
जी हाँ दोस्तों, अकसर हम बच्चों को चूहा दौड़ के लिए तैयार करते वक्त यह भूल जाते हैं कि उन्हें अपने जीवन को भी जीना है और जीवन को सौ प्रतिशत जीने के लिए हमें दुनिया को बेहतर बनाना होगा और याद रखिएगा यह दुनिया वैसी ही रहेगी, जैसा हम इसे बनाएँगे।
-निर्मल भटनागर
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