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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

दृढ़ता की शक्ति

दृढ़ता की शक्ति
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May 25, 2021
दृढ़ता की शक्ति!!!


आज एक वेबिनैयर के दौरान एक युवा ने प्रश्न किया, ‘सर, कोरोना ने तो मेरा पूरा भविष्य ही बिगाड़ दिया हैं? मैं असफल हो गया हूँ?’ 25-26 साल के युवा से ऐसा प्रश्न सुनना थोड़ा सा अजीब लगा। मैंने उससे कहा कोरोना को आए अभी सिर्फ़ एक वर्ष और कुछ माह हुए हैं, इस एक वर्ष और कुछ माह में ऐसा क्या हो गया कि आपका पूरा भविष्य ही खत्म हो गया है? वह युवा बोला, ‘सर, मैंने पिछले वर्ष जनवरी माह में अपने घर की पूरी जमा पूँजी लगाकर एक व्यापार शुरू किया था।वह जमता उसके पूर्व ही लॉकडाउन हो गया। लॉकडाउन हटने के बाद बाज़ार से कुछ उधार लेकर उसे फिर से जमाने का प्रयास करा। कुछ स्थिति संभली ही थी कि वापस से लॉकडाउन हो गया। अब घर से सब लोग ताने देते हैं और बाज़ार से ब्याज वाले परेशान करते हैं, इनके बीच उलझा हूँ। इस कोरोना ने व्यवसाय शुरू होने के पहले ही खत्म कर दिया है। घरवालों की नज़रों में भी मैं  गिर चुका हूँ। असफल होकर जीने से बेहतर तो लगता है, सब खत्म कर दूँ।’

वैसे आज बहुत से युवा कुछ इसी तरह के विचारों के साथ अपना जीवन जी रहे हैं। मैंने उस युवा से कहा, ‘क्या तुम वाक़ई इस स्थिति से बाहर आना चाहते हो?’ वह बोला, ‘हाँ, सर।’ मैंने उससे कहा, ‘मैं तुम्हें तीन सूत्र देता हूँ इन पर काम करना शुरू करो यकीनन तुम सफल हो जाओगे। पर सूत्र बताने से पहले मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ।’

श्रीलंका में एक युवा क्रिकेट बहुत अच्छा खेल रहा था वहाँ के क्रिकेट बोर्ड ने उसे बल्लेबाज़ के रूप में 23 नवम्बर 1990 से भारत के ख़िलाफ़ शुरू होने वाले टेस्ट मैच में मौक़ा देने का निर्णय लिया। बड़ी मुश्किल से मिले इस मौके को वह युवा बल्लेबाज़ भुना नहीं पाया और पहली पारी में भारतीय गेंदबाज़ राजू ने उसे शून्य पर आउट कर दिया। यही हाल उसका दूसरी पारी में भी हुआ जब भारत के महान ऑल राउंडर श्री कपिल देव ने उसे फिर से शून्य पर एल॰बी॰डबल्यू॰ आउट कर दिया। पहले मैच के बुरे प्रदर्शन के कारण उसे टीम से बाहर कर दिया गया।

लेकिन उस युवा ने हार नहीं मानी और वह वापस प्रैक्टिस में पसीना बहाने लगा। 21 माह बाद उसे वापस से श्रीलंका टीम के लिए चुना गया, लेकिन इस बार भी वह दोनों पारियों में शून्य पर आउट हो गया। प्रदर्शन के आधार पर उसे एक बार फिर टीम से बाहर कर दिया गया। इस खिलाड़ी ने अपना पूरा ध्यान वापस से प्रैक्टिस और घरेलू फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट पर लगाना शुरू कर दिया और उसमें ढेर सारे रन बनाने लगा। सत्रह माह बाद उन्हें फिर मौक़ा मिला लेकिन पाँचवीं पारी में भी वे शून्य पर आउट हुए। वैसे शून्य पर आउट होने का सिलसिला छठी पारी में भी रहता अगर उन्हें लेगबाय का एक रन ना मिला होता तो। इस तरह दोस्तों इस खिलाड़ी ने 6 पारियों में मात्र 1 रन बनाया था।

क्रिकेट प्रेमी, सिलेक्टर, क्रिकेट विशेषज्ञ, समाचार पत्र, किताबें आदि सब उनके बारे में नकारात्मक लिख रहे थे कि उनमें बड़े मैच को खेलने का टेम्परामेंट नहीं है, वे प्रेशर नहीं सम्भाल पाते हैं, अब उन्हें कभी वापस आने का मौक़ा नहीं मिलेगा आदि। सब उन्हें असफल बता रहे थे लेकिन वे मैदान पर पसीना बहाने में और फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट में रन बनाने में व्यस्त रहे।

टेस्ट में पदार्पण के सात साल बाद वर्ष 1997 के अंत में उन्हें एक बार फिर भारत के विरुद्ध खेलने का मौक़ा मिला और इस मैच में उन्होंने शानदार शतक बनाया। इस मौक़े ने उनका जीवन बदल दिया और उन्हें श्रीलंका टीम का एक स्थापित सदस्य बना दिया। इसके बाद दोस्तों इस खिलाड़ी ने कभी पलट कर नहीं देखा। इस महान खिलाड़ी ने अपने कैरियर में 90 टेस्ट मैच में 6 दोहरे शतक, 16 शतक और 17 अर्धशतक के साथ 5502 रन बनाए व 268 वनडे मैच में 11 शतक और 59 अर्धशतक के साथ 8529 रन बनाए। जी हाँ दोस्तों आप सही पहचान रहे हैं मैं श्रीलंका के महान क्रिकेटर मारवन अट्टापट्टू के बारे में बात कर रहा हूँ। जो बाद में श्रीलंका टीम के कप्तान भी बने।

दोस्तों हममें से कितने लोग हैं जो लगातार 7 वर्षों तक कुछ ख़ास ना कर पाने के बाद भी प्रयास करते रहते हैं? वे इस खेल को छोड़ किसी अन्य खेल को आज़मा सकते थे, काउंटी क्रिकेट की ओर रुख़ कर सकते थे या और कुछ नहीं तो किसी अन्य क्षेत्र में अपनी क़िस्मत आज़मा सकते थे। पर उन्होंने ऐसा कुछ किया नहीं, इनकी कहानी से ही हम असफलता से सफलता तक पहुँचने के सबसे महत्वपूर्ण तीन सूत्र सीख सकते हैं।

पहला सूत्र - गलती करें एक नहीं हज़ार करें लेकिन हर गलती से सीखें और सुधार करें।

दूसरा सूत्र - लोग क्या कह रहे हैं इस पर ध्यान ना लगाए, बस स्वयं पर विश्वास रखें। कभी हार ना मानने वाला नज़रिया बनाए  और हर पल सीखकर अपनी स्किल को बेहतर बनाये। यह आपकी सफलता सुनिश्चित करता है।

तीसरा सूत्र - एक या अनेक प्रयास में विफल होने का अर्थ यह नहीं है कि आप असफल हो गए हैं। जब तक आप हार नहीं मानते हैं तब तक आप दौड़ में बने रहते हैं और जब आप दौड़ में बने रहते हैं तो दौड़ जीतने की सम्भावना भी बनी रहती है।

इस बात से वह युवा तो फिर से जोश में आ गया था और आशा है दोस्तों, कभी भी मनचाहा परिणाम ना मिलने पर हम हार मानने की जगह एक बार इस कहानी को याद करेंगे। याद रखिएगा, सफल होने के लिए सबसे ज़रूरी है असफलता को सम्भालना और उससे सीखना।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com

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