फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
धारणा ना बनाएँ
July 20, 2021
धारणा ना बनाएँ!!!
दोस्तों आज के लेख की शुरुआत एक बड़ी प्यारी, हल्की-फुल्की कहानी के साथ करते हैं। पहाड़ी के ऊपर खूबसूरत वादियों के बीच शाम को चलने वाली ठंडी-ठंडी हवा मौसम को बड़ा ही सुहावना बना रही थी। सभी जानवरों को यह मौसम बड़ा पसंद आ रहा था और वे सब अपने-अपने अनुसार मौसम का लुत्फ़ उठा रहे थे। बंदरों का भी एक परिवार पेड़ पर उल्टा लटक कर, झूला झूलते हुए, मस्ती से खेल रहा था। अचानक उल्टे लटके एक बंदर की नज़र नीचे कुएँ की ओर गई, बंदर को कुएँ के तल में चाँद नज़र आया।
उसने ना आव देखा ना ताव, बिना दिमाग़ लगाए एक धारणा बनाई और अपने सभी बंदर मित्रों को कुएँ में चाँद दिखाने के लिए बुलवा लिया। शुरू-शुरू में तो सभी बंदर अचरज के साथ चाँद को कुएँ में डूबा हुआ देख रहे थे। तभी एक ‘समझदार’ बंदर ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा, ‘हे भगवान! चाँद सचमुच पानी में है! इसे तो आसमान में होना चाहिए था, कुएं के अंदर नहीं। आसमान में चाँद के बिना अंधेरे में हमारे लिए तो जंगल में रहना ही मुश्किल हो जाएगा। अभी तो अंधेरा होना शुरू ही हुआ है, हमें जल्द ही कुछ करना होगा।’
उस बंदर की बात सुनते ही दूसरा बंदर बोला, ‘चंद्रमा शायद कुएं में गिर गया होगा। हमें सबको मिलकर इसे कुएं से बाहर निकालना होगा। अन्यथा मित्र सही कह रहा है, हम सभी को अंधेरे में रहने में बहुत दिक़्क़त होगी।’ इसके बाद सभी बंदर मंत्रणा करने लगे कि किस तरह चंद्रमा को बाहर निकाला जाए?, तभी तीसरे बंदर ने सुझाव दिया, ‘हम एक दूसरे की पूछ को पकड़ कर लम्बी चेन बनाते हैं। जो सबसे ताकतवर होगा वह सबसे ऊपर लटकेगा और सबसे छोटा सबसे नीचे रहेगा। जब सबसे छोटा बंदर चंद्रमा तक पहुँच जाएगा वो उसे बाल्टी में ले लेगा और हम उसे मिलकर कुएं से बाहर निकाल लेंगे।’
सभी को उस बंदर की योजना पसंद आ गई और योजनानुसार सबसे बड़े और बलशाली बंदर अपने पैरों को शाक पर डाल उल्टा लटक गया। बाक़ी सभी बंदरों ने भी उसका अनुसरण करना शुरू कर दिया और सभी एक दूसरे को पकड़ कर उल्टा लटकते हुए कुएं में चंद्रमा तक पहुँच गए। जैसे ही आख़री बंदर ने चंद्रमा को बाल्टी में लेने का प्रयास करा उसी समय सबसे ऊपर पेड़ की शाख़ से लटके बंदर की पकड़ ढीली पड़ गई और सभी बंदर कुएं के अंदर गिर गए और सबसे नीचे वाले बंदर से हड़बड़ाहट में बाल्टी ऊपर की ओर उछल गई।
कुएं में गिरे सभी बंदरों ने एक साथ हवा में ऊपर की ओर उड़ती बाल्टी को देखा तो उन्हें आसमान में चमकता हुआ चंद्रमा नज़र आ गया। कुएं में पड़े-पड़े ही सारे बंदर ख़ुशी से उछल पड़े। उनमें से एक बंदर बोला, ‘चलो, हम सब ने मिलकर एक अच्छा काम किया।’ उसकी बात सुनते ही सभी बंदर एक-दूसरे को बधाई देने लगे। थोड़ी देर बाद जब सबका मन थोड़ा शांत हुआ, जोश थोड़ा ठंडा पड़ा उन्हें एहसास हुआ कि वे सब कुएं के अंदर हैं और अब उनके सामने एक नई समस्या है, ‘अब हम कुएं से बाहर कैसे निकले?’
दोस्तों, आख़िर बंदर नई समस्या में फँसे क्यूँ? या तो बंदरों को यह नहीं पता था कि कुएं में दिख रहा चंद्रमा सिर्फ़ आकाश के चंद्रमा का प्रतिबिंब मात्र है या फिर जब एक बंदर ने कहा कि चंद्रमा कुएं में गिर गया है तब बाक़ी बंदरों ने अपने दिमाग़ का उपयोग करने की बजाए दूसरे की धारणा को ही स्वीकार कर लिया और एक व्यक्ति की ग़लत धारणा को स्वीकारने की वजह से सभी बंदर एक नई उलझन में फँस गए।
आमतौर पर यही गलती तो हम लोग भी रोज़ किसी ना किसी रूप में करते हैं। किसी ने कह दिया की ‘ठंडा मतलब, कोको…’ तो कई लोग बिना गहराई में गए उस विज्ञापन में कही गई बात को स्वीकार लेते हैं। ठीक ऐसा ही धर्म के मामले में भी होता है और आपसी संवाद में भी। कई बार हम कही गई बात के पीछे छुपे हुए या गहरे अर्थ को समझने के स्थान पर शाब्दिक अर्थ पर चले जाते हैं या फिर कई बार तो पूरी बात सुने बिना ही अपनी धारणा के आधार पर सामने वाले की बात का अर्थ निकालने लगते हैं और उस आधार पर अपनी प्रतिक्रिया देना शुरू कर देते हैं।
याद रखिएगा दोस्तों, हमारा दृष्टिकोण और हमारी धारणाएँ हमारे जीवन पर सीधा प्रभाव डालते हैं। अगर आप रिश्तों से मनचाहा प्यार या अपने कार्य से मनचाहा परिणाम या फिर सीधे शब्दों में कहूँ तो जीवन में अपनी सोच के मुताबिक़ परिणाम नहीं हासिल कर पा रहे हैं तो एक बार अपने दृष्टिकोण और धारणाओं को चेक कीजिएगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर