top of page

फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

परम्पराओं के उद्देश्य को पहचानें

परम्पराओं के उद्देश्य को पहचानें
global_herald_logo_1.png

Dec 28, 2021

परम्पराओं के उद्देश्य को पहचानें…


जी हाँ दोस्तों, सही पढ़ा आपने! धर्म अथवा परम्पराओं के आधार पर किए जा रहे कार्यों को दक़ियानूसी मानसिकता मानकर ख़ारिज करने के स्थान पर उसके पीछे के सही उद्देश्य को जानकर उसकी प्रासंगिकता बरकरार रख सकते हैं। अपनी बात को समझाने के लिए मैं कल मेरे साथ घटे संस्मरण के साथ शुरुआत करता हूँ।


राजकोट में मेरे एक क्लाइंट डिफ़ेन्स के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने की चाह रखने वाले युवाओं के लिए एक एकेडमी की शुरुआत कर रहे हैं। ब्रांडिंग, लॉंचिंग व अन्य शुरुआती योजनाएँ बनाने के उद्देश्य से संस्था प्रमुख मुझे राजकोट के समीप कस्तूरबाधाम, त्रामबा स्थित पापुलर स्कूल दिखाने ले गए, जहाँ इस एकेडमी का संचालन होना था।


विद्यालय में प्रवेश करते ही लयबद्ध तरीक़े से गाई जा रही कविता अथवा गाने के शब्दों ने मेरा स्वागत किया। हालाँकि आवाज़ थोड़ा दूर से आ रही थी इसलिए मैं शब्द समझ नहीं पाया। लेकिन बच्चों की मधुर आवाज़ ने मेरे मन को सुकून ज़रूर दिया। मैं यह देख उत्साहित था कि कई विद्यालयों में लय में गाते हुए याद करने की यह परम्परा आज भी निर्बाध रूप से चल रही है। इसने विद्यालय की अन्य गतिविधियों को जानने की मेरी उत्सुकता को कई गुना बढ़ा दिया था। 


शुरुआती मुलाक़ात और अपना कार्य पूर्ण करने के बाद मैंने विद्यालय की मैनेजमेंट प्रमुख श्रीमती शर्मिलाबेन बम्भानिया से इस विषय में चर्चा करी और सिखाने के इस पारम्परिक तरीक़े पर प्रश्न किया तो वे बोली, ‘सर, हमारा सम्पूर्ण विकास भी तो ऐसे ही तरीक़ों से हुआ है, तो फिर आज यह अप्रासंगिक कैसे हो सकते हैं? नई तकनीकें अच्छी हैं, लेकिन बिना सोचे-समझे अपनी समय की कसौटी पर परखी हुई तकनीकों को छोड़ देना कहाँ तक उचित है?’ इसके बाद उन्होंने मुझे विद्यालय में की जा रही अन्य गतिविधियों के विडियो दिखाए, जिनमें हमारे पारम्परिक पुराने खेलों, जैसे, लंगड़ी, घोड़ा बादाम छाई पीछे देखे मार खाई, सितोलिया, कंचे आदि से शैक्षणिक और शारीरिक शिक्षा देने का प्रयास किया जा रहा था।  


हमारी चर्चा के दौरान वहाँ मौजूद कई लोगों के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वे हमारी बात से सहमत नहीं हैं और वे सोच रहे हैं कि, ‘क्या इससे भी बच्चों को शिक्षित किया जा सकता है?’ ठीक वैसे ही साथियों, हो सकता है इसे पढ़ते समय आपके मन में भी यही प्रश्न आ रहा हो कि ‘इन खेलों से शिक्षा का क्या लेना देना?’ तो मैं आपको बता दूँ, यह सभी खेल मांटेसरी पद्धति द्वारा बच्चों की फ़ाइन एवं ग्रोस मोटर स्किल, सेंसेस, कोर्डिनेशन आदि डेवलप करने के तरीक़ों के न केवल जनक हैं, बल्कि उनसे कई गुना ज़्यादा बेहतर हैं। इसके साथ ही उपरोक्त सभी खेल अन्य खेलों की ही तरह, जीवन जीने के लिए आवश्यक कई और कौशल सीखने का मौक़ा देते हैं। लेकिन हमने दोस्तों, बिना सोचे समझे या गहराई में जाए, नया देने की चाह में ऐसी ही कई चीजों को भुला दिया जो हमारी परम्पराओं या जीवन शैली का हिस्सा थी। उदाहरण के लिए रंगोली को ही ले लीजिए। पहले हम रंगोली कीट, पतंगों, कीड़ों व अन्य जीवों को भोजन देने के उद्देश्य से चावल के आटे से बनाया करते थे। हम इस उद्देश्य को तो भूल गए और उसे शौक़ या त्यौहारों का एक हिस्सा मान केमिकल रंगों से बनाने लगे। 


ठीक इसी तरह कई लोगों ने तिलक लगाना, हवन करना, सूर्य को अर्ध देना, मंत्रोचार करना आदि को भी दक़ियानूसी सोच का हिस्सा मान छोड़ दिया है। यही स्थिति चिकित्सा के क्षेत्र में आज आयुर्वेद और एलोपेथ के बीच देखने को मिलती है। असल में दोस्तों हम आधुनिक विज्ञान, आधुनिक मैनेजमेंट के तरीक़े तो पढ़ रहे हैं लेकिन उनकी जड़ों या पूर्व में किए जा रहे उनके प्रैक्टिकल उपयोग को भूल गए हैं।


हमारा मॉडर्न मैनेजमेंट कहता है कि दुनिया में सिर्फ़ डर, उम्मीद और लालच तीन चीज़ें बिकती है। अगर इसी आधार पर सोचा जाए तो आज से कई सौ साल पहले जब व्यक्ति वर्तमान में जीता था, तब लालच और उम्मीद के लिए तो ज़्यादा स्थान नहीं था। इसलिए मुझे लगता है, लोगों को विज्ञान की कसौटी पर खरी बातों को आसानी से समझाने के लिए ‘भगवान के डर’ का इस्तेमाल किया गया। बीतते समय के साथ जब लोगों को सही कारण पता नहीं चले तो यही बातें धर्म से जुड़कर हमारी जीवनशैली का हिस्सा बन गई और वर्तमान आधुनिक युग आते-आते हमने इन्हें दक़ियानूसी मान काम में लेना छोड़ दिया। 


जी हाँ दोस्तों, जब हमें किए गए कार्यों के उद्देश्य का सही पता नहीं होता है तब हम उन्हें पुरानी, दक़ियानूसी सोच मान छोड़ देते हैं। इसका सीधा-सीधा नुक़सान हमारे अपने गौरवशाली अतीत और उस समय के ज्ञान को खत्म कर देता है। याद रखिएगा दोस्तों, जब हम अपने अतीत से गर्व का भाव नहीं लेते हैं तब हम अपनी सभ्यता, गौरवशाली परम्परा और शिक्षा पद्धति का नुक़सान कर लेते हैं। 


तो आइए साथियों आज से हम एक निर्णय लेते हैं, अपनी परम्पराओं, पुराने तौर-तरीक़ों को आधुनिकता के नाम पर छोड़ने के स्थान पर उसे व्यवहारिकता और विज्ञान के आधार पर परखेंगे, उसके पीछे के सही कारण को पहचानने का प्रयास करेंगे और अगर वह पुराना ज्ञान हमारे लिए, मानवता के लिए लाभप्रद है तो उसका उपयोग करेंगे और दूसरों को भी उसे अपनाने के लिए प्रेरित करेंगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

dreamsachieverspune@gmail.com

1_edited_edited.jpg

Be the Best Student

Build rock solid attitude with other life skills.

05/09/21 - 11/09/21

Two Batches

Batch 1 - For all adults (18+ Yrs)

Batch 2 - For all minors (below 18 Yrs)

Duration - 14hrs (120m per day)

Investment -  Rs. 2500/-

DSC_5320_edited.jpg

MBA

( Maximize Business Achievement )

in 5 Days

30/08/21 - 03/09/21

Free Introductory briefing session

Batch 1 - For all adults

Duration - 7.5hrs (90m per day)

Investment - Rs. 7500/-

041_edited.jpg

Goal Setting

A proven, step-by-step workshop for setting and achieving goals.

01/10/21 - 04/10/21

Two Batches

Batch 1 - For all adults (18+ Yrs)

Batch 2 - Age group (13 to 18 Yrs)

Duration - 10hrs (60m per day)

Investment - Rs. 1300/-

bottom of page