फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
परिवर्तन ही प्रक्रति का नियम है


Sep 8, 2021
परिवर्तन ही प्रक्रति का नियम है !!!
‘परिवर्तन ही संसार का नियम है!’ गीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा कही गई इस बात पर मैं ही नहीं शायद आप सब भी पूरा यक़ीन करते होंगे। लेकिन उसके बाद भी हम अपने जीवन में सबसे ज़्यादा परिवर्तन से ही डरते हैं। फिर चाहे वह परिवर्तन हमारे व्यक्तिगत जीवन में हों या व्यवसायिक जीवन में। वैसे यह बात कम्पनी के स्तर पर भी इतनी ही सही बैठती है। एक आँकड़ा बताता है कि जितनी कम्पनियों ने बड़े बदलाव की शुरुआत की है उनमें से मात्र 12% कम्पनियाँ ही अपने उद्देश्य की पूर्ति के साथ उस बदलाव में सफल हो पायी हैं।
मेरा प्रश्न है क्या वाक़ई कम्पनियों में बदलाव लाना इतना कठिन होता है? शायद नहीं, मुझे तो लगता है हम अपनी गलत धारणाओं या ग़लत सोच की वजह से ही सफल नहीं हो पाते हैं। आईए आज के लेख में हम उन प्रमुख ग़लत धारणाओं को समझने का प्रयास करते हैं।
पहली धारणा - परिवर्तन मुश्किल होता है
आमतौर पर ज़्यादातर लोग मानते हैं कि लोगों को, उनकी सोच या कार्य करने के तरीक़े को बदलना वाक़ई बहुत मुश्किल है। इसलिए परिवर्तन नामुमकिन है। मेरी नज़र में यह सही नहीं है दोस्तों, क्यूँकि सबसे पहली बात यह है कि हमें उन्हें नहीं बदलना है बल्कि हमें सिर्फ़ कार्य करने के तरीक़ों अर्थात् प्रॉसेस को बदलना है।
प्रॉसेस बदलने के लिए हम समय के कसौटी पर खरी उतरी ए॰एम॰एस॰ अर्थात् एंटिसिपेटरी मेनेजमेंट सिस्टम अथवा एस॰ओ॰पी॰ अर्थात् स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसेस जैसी तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं।
दूसरी धारणा - परिवर्तन के बारे में सोचना ही ग़लत है क्यूँकि परिवर्तन से आने वाले बदलाव का अंदाज़ा लगाना सम्भव नहीं होता इसीलिए उसका प्रबंधन भी असम्भव है
बिज़नेस ग्रोथ कंसलटेंसी के अपने कार्य में मैंने अकसर महसूस किया है कि प्रबंधन समिति के लगभग सभी वरिष्ठ सदस्य परिवर्तन की बात तो करते हैं पर हक़ीक़त में परिवर्तन लाने के लिए कुछ करते नहीं हैं। इरादे अच्छे होने के बाद भी वे कुछ करने के लिए राज़ी क्यों नहीं होते? शायद उन्हें लगता है कि बदलाव करना, बदलाव की वजह से आने वाले परिणाम का अंदाज़ा लगाना, उसका विश्लेषण करना बहुत कठिन है। हालाँकि हक़ीक़त इसके बिलकुल विपरीत है। अच्छे शिक्षित कर्मचारियों, उन्नत तकनीकों, टेक्नॉलोजी, अच्छे कंसलटेंट आदि के कारण हाल ही के वर्षों में इसमें बहुत परिवर्तन आया है। उदाहरण के लिए बिग डेटा, एस॰ए॰पी॰, ई॰आर॰पी॰, सी॰एम॰एस॰ जैसी उन्नत तकनीकों का उपलब्ध होना।
उपरोक्त लोगों अथवा तरीक़ों की मदद से परिवर्तन की वजह से आने वाले बदलाव, परिवर्तन के दौरान होने वाली ग़लतियों आदि पर बहुत बारीकी से ध्यान दिया जा सकता है, किसी भी प्रकार के नुक़सान का सटीक अंदाज़ा लगाकर उससे बचा जा सकता है।
तीसरी धारणा - अपने लोगों या कर्मचारियों को परिवर्तन की वजह से आने वाले दबाव से बचाना ही बेहतर है
कई लोगों का मानना होता है कि परिवर्तन की वजह से बढ़ने वाले दबाव से अगर कर्मचारियों या लोगों को ना बचाया जाए तो वे मँझधार में ही आपका साथ छोड़ सकते हैं। मैं इस धारणा से भी सहमत नहीं हूँ दोस्तों, क्यूँकि इस दुनिया में हर इंसान अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहता है। अगर आप कर्मचारियों को इस बदलाव की वजह से उनमें आने वाले परिवर्तन के सकारात्मक पक्ष से अच्छे से अवगत करा देंगे तो वे भी परिवर्तन के दौरान आपका सहयोग करेंगे। हमें उन्हें समय-समय पर बताना चाहिए कि परिवर्तन की इस यात्रा के बाद वे समझदार, मजबूत और अधिक लचीले लीडर के रूप में उभरेंगे। वैसे भी दोस्तों प्रतिकूल परिस्थितियों में शायद किसी ने भी कोई बड़ा काम नहीं करा है।
चौथी धारणा - परिवर्तन केवल दृढ़ और मज़बूत नेतृत्व के ज़रिए ही हो सकता है
सामान्यतः हर प्रबंधन ऐसा ही मानता है कि बिना दृढ़ निश्चय और मज़बूत प्रबंधन के, परिवर्तन लाना असम्भव है वैसे कुछ हद तक यह बात सही भी हो सकती है लेकिन फिर भी मेरा मत इस बारे में थोड़ा सा भिन्न है। स्पष्ट लक्ष्य, प्रॉसेस, विश्लेषण के स्पष्ट तरीक़ों की सहायता से भी बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। बस हमें हमारी टीम के बीच में इन सभी बातों को सकारात्मक रूप में बहुत अच्छे से रखना होगा।
परिवर्तन के लिए तैयार की गई योजना में पूर्व में प्रबंधन द्वारा तैयार की गई प्रॉसेस को समायोजित करना और उसे सकारात्मक स्पष्ट संवाद के माध्यम से अपनी टीम के सदस्यों तक पहुँचाना एक अच्छा तरीक़ा हो सकता है। यह कठिन ज़रूर है लेकिन यह हमारी टीम को सहज महसूस करा सकता है। सकारात्मक संवाद के दौरान सिर्फ़ एक बात का ध्यान रखें, यह संवाद कर कौन रहा है। संवाद के दौरान सहानुभूति भी दिखाएँ और इसके लिए आप बातचीत, मेल, व्हाटसऐप, न्यूज़लेटर आदि सभी माध्यमों का प्रयोग कर सकते हैं।
पाँचवी धारणा - बदलाव करके देखते हैं। फ़ायदा हुआ तो ठीक है अन्यथा वापस पुराने तरीक़े अपना लेंगे
दोस्तों, यह सोच वास्तव में विनाशकारी है क्यूँकि इस सोच के साथ पूर्ण योजना और ताक़त के साथ बदलाव लाने के लिए कार्य करना असम्भव ही रहता है। जब हमारे पास लौटने का विकल्प रहता है तो हम पूरा प्रयास नहीं करते हैं और कुल मिलाकर समय, पैसा और ऊर्जा सभी का नुक़सान करते हैं।
दोस्तों शायद अब आप भी मेरी इस बात से सहमत होंगे कि परिवर्तन या बदलाव लाना असम्भव या बहुत मुश्किल नहीं है बस यह थोड़ा ट्रिकी ज़रूर है। याद रखिएगा, परिवर्तन एक सामान्य घटना है। एक अच्छा प्रबंधन इसे रोकने की जगह, अच्छे से प्रबंधित करके लेकर आता है। अगर आप अपनी संस्था में इन धारणाओं को पनपने से रोकेंगे तो निश्चित तौर पर सफलता की संभावना बढ़ा लेंगे। याद रखिएगा, संगठन नहीं बदलते, बस लोग तरीक़े बदलकर, बदल जाते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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