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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

मन के हारे, हार है और मन के जीते जीत

मन के हारे, हार है और मन के जीते जीत
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May 4, 2021
मन के हारे, हार है और मन के जीते जीत…

दोस्तों जब भी मुझे काउन्सलिंग अथवा किसी भी वजह से पालकों और बच्चों से बात करने का मौक़ा मिला है, आमतौर पर मैंने देखा है कि पालक बच्चों के सामने ही उनके बारे में नकारात्मक बातें और शिकायत करना शुरू कर देते हैं। आज भी ऑनलाइन काउन्सलिंग के दौरान ऐसा ही हुआ। मैंने बच्चे से बातचीत शुरू करते हुए उसकी पसंद-नापसंद, शिक्षा, भविष्य की योजना आदि के बारे में बात शुरू करी की ही थी कि अचानक उसकी माँ ने बीच में बोलना शुरू करते हुए कहा, ‘सर, यह झूठ बोल रहा है, जो यह आपको बता रहा है वैसा यह कभी कुछ करता नहीं है। पता नहीं कहाँ से झूठ बोलना सीख गया है?’, मैंने उन्हें शांत करा और उनसे कहा मुझे आप बच्चे से बात कर लेने दीजिए।

एक बार फिर बच्चे के साथ बातचीत शुरू हुई और उसने अपने बारे में बताना शुरू किया लेकिन कुछ ही मिनिट में फिर से बच्चे के सामने ही उसकी क्षमताओं, नया सीखने की इच्छा और भविष्य के सपनों पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए वे उल्टा सीधा बोलने लगी। कुछ ही देर में स्वयं को सही साबित करने के लिए उन्होंने अपने पति को भी बुलवा लिया और दोनों मिलकर यह सिद्ध करने में लग गए कि हम तो सारे संसाधन उपलब्ध करवाकर इसका भविष्य बनाना चाहते हैं लेकिन यह तो एकदम गधा है। कुछ सीखना, समझना ही नहीं चाहता है।

उनके इस तरह तीसरे व्यक्ति के सामने बोलने का प्रभाव उस बच्चे के चेहरे पर साफ़ नज़र आ रहा था। मेरे रोकने पर वे अंत में लगभग एक साथ बोले, ‘सर, हमने तो सारी कोशिश करके देख लिया है, यह पता नहीं क्या चाहता है? वैसे हमें मालूम है, आपके समझाने का भी इस पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन हम यह नहीं सुनना चाहते कि हमारे प्रयास में कोई कमी रह गई है।’

उनकी बात सुनकर मुझे लगा कि बच्चे से ज़्यादा काउन्सलिंग की ज़रूरत तो उन दोनों को है। मैंने उस बच्चे से प्यार से कुछ देर के लिए दूसरे कमरे में जाने का कहा और माता-पिता से प्रश्न किया, ‘क्या आप बच्चे के जीवन में वाक़ई सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं?’ दोनों एक साथ बोले, ‘जी सर!’ मैंने उनसे कहा, ‘मैं पहले आपको एक शोध के बारे में बताता हूँ जो शार्क मछली पर किया गया था, उसके बाद हम आगे की चर्चा करेंगे।’

एक समुद्री जीव वैज्ञानिक ने प्रयोग करने के लिए एक बड़े काँच के टैंक में शार्क मछली को रखा और फिर उसमें बहुत सारी छोटी मछलियों को छोड़ दिया। जैसा कि उम्मीद थी शार्क ने टैंक के हर कोने में जाकर उन छोटी मछलियों का शिकार कर लिया। इसके बाद उस वैज्ञानिक ने टैंक के बीच में एक मज़बूत पारदर्शी फ़ाइबर ग्लास लगाकर, टैंक को दो भागों में विभाजित कर दिया। इसके बाद उसने टैंक के एक भाग में शार्क को और दूसरे भाग में छोटी मछलियों को रख दिया। छोटी मछलियों को टैंक में पाते ही शार्क ने एक बार फिर उन पर हमला करा लेकिन इस बार बीच में फ़ाइबर ग्लास होने की वजह से वो सफल नहीं हो पाई। एक ओर जहां छोटी मछलियाँ आराम से तैर रही थी वहीं शार्क थोड़े-थोड़े अंतराल में बार-बार हमला करने का प्रयास कर रही थी। लेकिन हर बार असफल रहती थी। आख़िरकार, कुछ देर बाद शार्क ने प्रयास करना छोड़ दिया।

इस प्रयोग को वैज्ञानिक कई सप्ताह तक दर्जनों बार दोहराते रहे और उन्होंने पाया कि शार्क उस फ़ाइबर ग्लास पर बार-बार टकराने की वजह से धीरे-धीरे कम आक्रामक होती जा रही थी और कई बार तो वो उन छोटी मछलियों पर हमला भी नहीं करती थी। कुछ और दिनों तक समुद्री वैज्ञानिक इस प्रयोग को दोहराते रहे और जब उन्होंने देखा कि शार्क अब बिलकुल भी हमला नहीं करती है तो उन्होंने टैंक के बीच में लगा वह फ़ाइबर ग्लास हटा दिया। जैसा कि समुद्री वैज्ञानिकों का अनुमान था, शार्क ने फ़ाइबर ग्लास हटाने के बाद भी छोटी मछलियों पर हमला नहीं करा और इसी तरह छोटी मछलियाँ भी निश्चिंतता के साथ, आराम से उस टैंक में सब जगह तैर रही थी।

कहानी पूरी होने के बाद मैंने उस बच्चे के माता-पिता की ओर देखते हुए कहा, ‘आपको क्या लगता है शार्क ने हमला क्यों नहीं किया?’  वे कुछ बोलते उसके पहले ही मैंने अपनी बात कहना शुरू करते हुए कहा, ‘असल में उन वैज्ञानिकों ने शार्क को यह विश्वास करने के लिए प्रशिक्षित किया था कि उसके और उन छोटी मछलियों के बीच एक बाधा है और इसके विपरीत छोटी मछलियाँ उस बड़ी शार्क के सामने भी बेख़ौफ़ तैरने के लिए प्रशिक्षित हो गई थी। इसलिए बीच का पार्टिशन हटाने के बाद भी शार्क हमला नहीं कर रही थी और छोटी मछलियाँ बेख़ौफ़, जहाँ चाहें, वहाँ तैर रही थी। इसके बाद मैंने उन माता-पिता को कुछ बातों को बताया और काउन्सलिंग का अपना कार्य पूर्ण करा।

जी हाँ दोस्तों, आमतौर पर जब हम बच्चे की क्षमताओं पर बार-बार प्रश्न चिन्ह लगाते है, कोई एक ही बात उसे बार-बार बोलते हैं तो उसका बालमन कहीं ना कहीं उन सभी बातों को सच मान लेता है और विचारों द्वारा उत्पन्न हुए गतिरोध को पार करने का प्रयास करना बंद कर देता है।

वैसे दोस्तों बच्चे ही क्यों ज़्यादातर लोग बार-बार असफल होने के बाद हार मानकर बैठ जाते है, प्रयास करना बंद कर देते हैं। अगर दोस्तों जीवन में सफल होना है और असम्भव को सम्भव बनाना है तो नकारात्मक बातों को अपने अंतर्मन में जगह देकर अपनी राह में अवरोध खड़ा करने के स्थान पर, असफलता से सीखें और स्वयं को बार-बार विश्वास दिलाएँ कि आप कर सकते हैं। यक़ीन मानिएगा दोस्तों अगर आपने विश्वास कर लिया तो वाक़ई कुछ भी असम्भव नहीं है।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com

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