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रिश्ते में अपेक्षाओं को प्रबंधित करना सीखें - भाग 5
July 5, 2021
रिश्ते में अपेक्षाओं को प्रबंधित करना सीखें - भाग 5
रिश्तों में अपेक्षाओं को प्रबंधित करना सीखने के उद्देश्य से हमने पिछले चार दिनों में ग़लत अपेक्षा करने या ग़लत तरह से अपेक्षा करने की वजह से रिश्तों में आने वाली समस्याओं को विस्तार से समझने के साथ उम्मीद और अपेक्षा को प्रबंधित करने के बारह प्रमुख सूत्रों में से प्रथम दस सूत्रों को समझा था। आईए आगे बढ़ने से पहले उन्हें दोहरा लेते हैं-
प्रथम सूत्र - सराहना करें
सराहना या प्रशंसा दोनों ही पक्षों के लिए लाभकारी रहती है। सराहना या प्रशंसा सुनने वाला जहां इससे और अच्छा करने के लिए प्रेरित होता है वहीं इसे करने वाला नकारात्मक बातों और घटनाओं को नज़रंदाज़ कर सकारात्मक गुणों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ सही अपेक्षा करना सीख जाता है।
दूसरा सूत्र - चिढ़ने, चिल्लाने और लड़ने के स्थान पर चर्चा करें
अपेक्षा या उम्मीद पूरी ना होने पर चिढ़ना, चिल्लाना और लड़ना रिश्तों के लिए सबसे आवश्यक भावना, करुणा अर्थात् कम्पैशन को खत्म कर देता है। इसके स्थान पर चर्चा करके सही अपेक्षा या उम्मीद रखना और उसे पूर्ण करना रिश्तों की गरमाहट बरकरार रखता है।
तीसरा सूत्र - ना सिर्फ़ सम्मान करें बल्कि उसे प्रदर्शित भी करें
सम्मान रिश्ते का मूलभूत आधार होता है। सामने वाले की भावना, दृष्टिकोण, आवश्यकता, इच्छा और ज़रूरतों का सम्मान करने के साथ-साथ उसे प्रदर्शित कर सामने वाले को अनावश्यक तनाव से बचाकर खुश व प्रसन्न रहने का मौक़ा दें।
चौथा सूत्र - भावनाओं को प्रदर्शित करें
जैसा आप सोचते या भावना रखते हैं उसे सामने वाले को शांत और सकारात्मक रूप से प्रदर्शित करें। ऐसा करना सामने वाले को नकारात्मक भावनाओं के कारण को समझने का मौक़ा देता है। वहीं सकारात्मक भावनाओं का प्रदर्शन आपके प्यार, सामने वाले के प्रति आपके सम्मान को प्रदर्शित करता है। इससे उसे एहसास करवाता है कि आप उसका कितना ध्यान रखते हैं।
पाँचवाँ सूत्र - सहानुभूति रखें
अपेक्षित प्रतिक्रिया या परिणाम ना मिलने पर भी सामने वाले के प्रयास, मेहनत और भावना का सम्मान करें और उल्हाना देने के स्थान पर सहानुभूति रखें। समभाव व सहानुभूति रखना आपसी विश्वास को बढ़ाता है।
छठा सूत्र - सिर्फ़ साधन नहीं समय भी दें
रिश्तों को मज़बूत और बेहतर बनाने के लिए समय, मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। रिश्तों को समय देना सामने वाले को विशिष्टता का एहसास कराकर, रिश्ते को मज़बूत बनाता है। याद रखिएगा, संसाधन या पैसा आपका स्थान नहीं ले सकते है।
सातवाँ सूत्र - किसी बात या कार्य करने के तरीक़े पर अड़े ना रहें
रिश्ता कोई क़ानूनी समझौता या सौदा नहीं है, जिसमें हर कार्य को तय तरीक़े से करना ही उसे प्रबंधित रखने का एकमात्र उपाय है। रिश्ते में सतत वार्तालाप दोनों व्यक्तियों को ही एक दूसरे की प्राथमिकताओं, इच्छाओं और ज़रूरतों को समझने और बराबर से पूरा करने का मौक़ा देता है। दिखावे की शांति के स्थान पर, लचीले रहकर कभी ना खत्म होने वाले सुधार के लिए प्रतिबद्ध रहें और एक असाधारण संबंध बनाए।
आठवाँ सूत्र - रिश्तों की परीक्षा लेने के स्थान पर उनपर विश्वास करें
याद रखें लोग अपने फ़ायदे के लिए आपकी मानसिकता के अनुसार बात करते हैं और आप उसे सही मानकर अपने रिश्तों पर संदेह करना शुरू कर देते हैं और उन्हें परखने के लिए तरह-तरह के रास्ते अपनाते हैं। ऐसा करना नकारात्मक भाव पैदा कर रिश्तों को कमजोर बना देता है।
नवाँ सूत्र - भूल से भी रिश्ते की प्रवृति अर्थात् रिश्ते पर सवाल ना करें
छोटी-मोटी बातों पर अपने साथी की मंशा पर सवाल उठाना और रिश्ते को ग़लत ठहराना आपके विश्वास को खत्म कर सामने वाले के आत्मसम्मान को नुक़सान पहुँचाता है। इससे ऐसा लगता है जैसे आपके लिए संबंध ही एक समस्या है।
दसवाँ सूत्र - ग़लतियाँ अथवा किसी भी तरह के दोहराव से बचें
एक ही गलती को बार-बार दोहराना आपकी मंशा पर सवाल उठाकर आपके शब्दों की क़ीमत खत्म करता है। इसी तरह बार-बार टोकना, तर्क-वितर्क या कुतर्क करना रिश्तों में असुरक्षा का भाव पैदा करता है। ऐसी स्थिति में सामने वाले को लगता है कि आपकी नज़र में उसका कोई महत्व नहीं है। इसके स्थान पर तर्क, वितर्क, कुतर्क या एक ही बात को दोहराने या बार-बार कहने की जगह थोड़ा सा रुकें, विचार करें और बात इस तरह कहें जिससे आप रिश्ते में क्या उम्मीद रखते हैं, उसके लिए उच्च मानक निर्धारित हो सकें।
चलिए दोस्तों अब सीखते हैं अंतिम दो सूत्रों को-
ग्यारहवाँ सूत्र - रिश्ते को बचाएँ
एक सवाल बार-बार स्वयं से पूछें, ‘आपके लिए क्या महत्वपूर्ण है, आपका रिश्ता या आपका अहंकार?’ निश्चित तौर पर आपका अंतर्मन आपके द्वन्द को शांत कर देगा। रिश्ते ख़त्म करने की धमकी देना सिर्फ़ आपसी संवाद को बंद कर देता है। इसके स्थान पर एक छोटा सा ब्रेक लें और फिर शांत रहते हुए पुनर्विचार करें और फिर संवाद से हल निकालने का प्रयास करें।
बारहवाँ सूत्र - किसी अन्य के साथ अपने संबंधों की तुलना ना करें
हर व्यक्ति अपने आप में पूर्ण, अनूठा और अद्वितीय व्यक्तित्व का मालिक है ठीक वैसे ही जैसे आप अपने-आप को मानते हैं। आप ही की तरह उसका अपना सोचने, समझने का अलग तरीक़ा है, अपना अलग दृष्टिकोण है। जिस तरह आप चाहते हैं कि वह आपको, आपकी बातों को समझे उसी तरह आपको भी उसको और उसकी बातों को समझना होगा। इसकी उपेक्षा कर तुलना करना या किसी अन्य रिश्तों के अनुसार जीने का प्रयास करना, रिश्तों पर सवाल उठाकर, उसे धीरे-धीरे कमजोर बना देता है। इसके स्थान पर अपने और अपने रिश्ते के विकास के लिए अपने साथी के साथ मिलकर काम करें।
याद रखें दोस्तों, एक स्वस्थ रिश्ता कभी ना टूटने वाले बंधन या एक ऐसी साझेदारी के समान होता है जो आपको जीवन में आगे बढ़ने में मदद करता है। आशा ही नहीं यक़ीन के साथ कह सकता हूँ कि उपरोक्त बारह सूत्र आपको रिश्तों के प्रबंधन में मदद करेंगे। बस इन्हें निश्चित अंतराल पर पढ़कर याद रखें और अपने दैनिक जीवन में प्रयोग में लाए।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर