फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
लिखें क़िस्मत अपनी


July 27, 2021
लिखें क़िस्मत अपनी!!!
दोस्तों आज के लेख की शुरुआत एक जापानी कहानी के साथ करते हैं। बात बहुत पुरानी है, जापान में नोबुनागा नाम के एक महान योद्धा थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे युद्ध कला के साथ-साथ असाधारण नेतृत्व क्षमता के धनी थे। एक बार अपने राज्य की सुरक्षा के लिए उन्हें अपने से बहुत ज़्यादा शक्तिशाली शत्रु के साथ युद्ध के लिए जाना था। उस शत्रु के पास नोबुनागा नाम का एक महान जापानी योद्धा के मुक़ाबले दस गुना बड़ी सेना थी। वे जानते थे कि बिना सुनियोजित रणनीति व असाधारण इच्छाशक्ति के दुश्मन से जीत पाना असम्भव है। अगर दुश्मन की सेना को देख सैनिकों के मन में संदेह आ गया तो युद्ध जीतना असम्भव हो जाएगा।
सर्वप्रथम तो उन्होंने युद्ध के लिए एक बेहतरीन रणनीति बनाई, सैनिकों का मनोबल बढ़ाया और युद्ध मैदान की ओर चल दिए। युद्ध मैदान के रास्ते में एक शिन्तो दरगाह पड़ती थी। वे दर्शन करने के लिए वहाँ रुके और ऊँची आवाज़ में अपने सैनिकों से बोले, ‘साथियों हमारे दुश्मन की सेना बहुत बड़ी और बलशाली है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि युद्ध से पहले हम ईश्वर का भी आशीर्वाद ले लें। दरगाह के दर्शन करने और ईश्वर का आशीर्वाद लेने के बाद मैं एक सिक्का हवा में उछालूँगा, अगर हेड आया तो हम ईश्वर के आशीर्वाद के साथ यह युद्ध जीतेंगे और अगर टेल्स आया तो हम हारेंगे। इससे हमें पता चल जाएगा कि युद्ध में क़िस्मत और ईश्वरीय शक्ति किसका साथ देने वाली है।’ इतना कहकर नोबुनागा शिन्तो दरगाह के दर्शन और प्रार्थना करने चले गए।
दर्शन और प्रार्थना करके वापस आते ही उन्होंने एक जोर के जयकारे के साथ अपने सैनिकों के सामने सिक्के को हवा में उछाल दिया। सभी सैनिक उस सिक्के के ज़मीन पर गिरने और परिणाम जानने के लिए उत्सुक थे, उन्हें अपने सेनापति, योद्धा के तरीक़े पर पूर्ण विश्वास था। सिक्का नीचे गिरा और उसे देख कर नोबुनागा ने सैनिकों के सामने हेड्स आने का ऐलान कर दिया। इतना सुनते ही सैनिकों का उत्साह चरम पर था। पूरी सेना गगन भेदी जयकारे लगाने लगी।
आत्मविश्वास से लबरेज़, युद्ध जीतने के लिए सब कुछ करने के लिए राज़ी इन सैनिकों के साथ, अपने से दस गुना अधिक बलशाली सेना पर आक्रमण कर दिया। जैसा नोबुनागा को विश्वास था, इस भयानक, कई दिन तक चले युद्ध में उनकी सेना की जीत हुई। जीत के बाद सेना जश्न मनाते हुए वापस अपने राज्य लौट आयी।
एक दिन नोबुनागा के एक सेवक ने उस युद्ध पर चर्चा करते हुए कहा, ‘भाग्य, क़िस्मत में लिखा हुआ कोई भी नहीं बदल सकता है। शिन्तो दरगाह के दर्शन और प्रार्थना के बाद उछाले गए सिक्के ने इस युद्ध का परिणाम तय कर दिया था।’ सेवक की बात सुनते ही नोबुनागा मुस्कुरा दिए और बोले, ‘बिलकुल गलत कह रहे हो तुम।’ वह सेवक उनकी बात समझ कर कुछ और कहता उसके पहले ही नोबुनागा ने उसकी ओर दोनों तरफ़ ‘हेड्स’ वाला सिक्का आगे बढ़ा दिया।
जी हाँ दोस्तों जीवन में अगर जीतना है तो हमें नोबुनागा की तरह खुद पर, अपनी क्षमताओं और अपनी टीम पर विश्वास रखते हुए कुशल नेतृत्व के साथ अपनी क़िस्मत लिखना सीखना होगा। मन में असफलता के डर और टीम पर संदेह के साथ बड़े लक्ष्यों को पा पाना मेरी नज़र में तो असंभव ही है। इसीलिए तो कहा जाता है, ‘हमारी 50 प्रतिशत क़िस्मत पहले से लिखी जा चुकी है और बची हुई 50 प्रतिशत हमें लिखना है। अर्थात् हमारा जन्म कब, कहाँ और किस हाल में होगा, साथ ही हमारी मृत्यु कब होगी यह 50% पहले से तय है और बचा हुआ 50 प्रतिशत हमें लिखना है।’
दोस्तों जीवन में वाक़ई सफल होना चाहते हैं तो राल्फ वाल्डो इमर्सन की कही बात याद रखिएगा, ‘आप पूरे जीवन में वैसे ही इंसान बन पाते है, जैसा बनने का निर्णय आप खुद लेते है, क्यूँकि कमजोर लोग भाग्य में यकीन करते है, जबकि साहसी आदमी अपनी मेहनत पर यकीन करते है।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर