फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
विचारों के बीज


June 17, 2021
विचारों के बीज!
गाँव के बाहरी इलाक़े में एक सज्जन रहते थे, गाँव के सभी लोग उनकी बहुत इज्जत किया करते थे। उनके बारे में लोगों का कहना था कि वे जिसे आशीर्वाद दे देते हैं उसे पुत्र रत्न प्राप्त होता है। लोगों का मानना था कि उनका आशीर्वाद कभी ख़ाली नहीं जाता था। धीरे-धीरे बीतते समय के साथ उनकी ख्याति दूर-दराज के इलाक़ों तक पहुँच गई और लोग पुत्र पाने की लालसा में दूर-दूर से उनके पास आने लगे।
जब भी कोई उनके पास आता था तो वे सबसे पहले उसे उसके धर्म के अनुसार पूजा करने के लिए कहते और फिर उसके कान में एक मंत्र बोल कर उसे वापस भेज दिया करते थे। पास के ही एक गाँव में रहने वाले रामू के मन में हमेशा इस बात को लेकर शंका रहती थी क्यूँकि उसका मानना था कि कुदरत के नियम में किसी भी तरह की दख़लंदाज़ी सम्भव नहीं है। उसने इस मामले की सच्चाई जानने का निर्णय लिया।
अगले ही दिन रामू अपनी पत्नी के साथ उन सज्जन के पास आशीर्वाद लेने गया। सज्जन ने हमेशा की ही तरह पूजन के बाद रामू की पत्नी के कान में कुछ बात कही। घर आते ही रामू ने अपनी पत्नी से पूरी बात विस्तार से बताने के लिए कहा और उन सज्जन के आशीर्वाद का रहस्य खुल गया।
असल में वे सज्जन जब भी कोई उनके पास आशीर्वाद लेने के लिए जाता था उसके कान में कहते थे कि पाँच सोमवार नहाने के बाद तुम किसी गरीब को भोजन करवाना और बस एक बात का ख़्याल रखना, भोजन करवाते वक्त गलती से भी काले कुत्ते का ख़्याल अपने मन में मत आने देना।
वैसे तो दोस्तों आप समझ ही गए होंगे लेकिन फिर भी बता देता हूँ, उन सज्जन के आशीर्वाद के बाद जिसे लड़का हो जाता था वह तो खुश और जिसे नहीं होता था वह सोचता था कि, ‘हाँ यार एक बार मुझे काले कुत्ते का ख़्याल आ गया था।’ क्यूँकि उन्होंने उस व्यक्ति के मन में एक ‘विचारों का बीज’ बो दिया था। आप खुद सोच कर देखिए दोस्तों किसी को भोजन करवाते वक्त क्या कभी कोई काले कुत्ते को याद करेगा? किसी भी हालात में नहीं…
वैसे दोस्तों सोच कर देखिए ऐसे ही कई ‘विचारों के बीज’ हम जाने-अनजाने में अपने बच्चों या अपने से छोटे लोगों के मन में बो देते हैं और वे जीवन भर अनजाने में दिए गए विचार के विकराल रूप से लड़ते रहते हैं। उदाहरण के लिए आपने निश्चित तौर पर बच्चों को निम्न बातें कहते हुए सुना होगा, ‘उस अंधेरे कमरे में ना जाओ वहाँ भूत है…’ या ‘बाहर जाओगे तो झोली वाला बाबा ले जाएगा…’ या जब वह पहली बार किसी पेड़ पर या किसी ऊँची जगह पर चढ़ने का प्रयास करता है तो उसे कहा जाता है, ‘गिर जाओगे…’ और इन सब बातों का नतीजा क्या होता है? जब वह बच्चा थोड़ा बड़ा होता है तो अपने ही घर में रहने के बाद भी उसे रात को बाथरूम में जाने में डर लगता है और आप ही उसे फिर समझाने का प्रयास करते हैं कि भूत-वूत कुछ नहीं होता। लेकिन बच्चा अब आपकी बात पर विश्वास करने के लिए राज़ी नहीं होता क्यूँकि आपके द्वारा बोए गए विचारों के छोटे से बीज ने अब बड़ा विकराल रूप धारण कर लिया है। ऐसे ही वो जीवन भर ऊपर चढ़ने से डरता रहता है।
मेरा यह मानना है कि आमतौर पर लोग अपनी क्षमताओं का उपयोग कहीं ना कहीं इन्हीं विचारों के बीज की वजह से नहीं कर पाते हैं। फिर क्या किया जाए? इन विचारों के बीज को बोना बंद कर दिया जाए? बिलकुल नहीं दोस्तों इन ‘विचारों के बीज’ में असीमित क्षमता छिपी हुई है। बस हमें सही बीजों को चुनना और उसे सही समय पर बच्चों के मन में बोना सीखना पड़ेगा।
जी हाँ दोस्तों, अगर हम बच्चों के बाल मन में शुरू से ही सही बीज बोना शुरू कर दें तो पेरेंटिंग के लक्ष्यों को आसानी से पाया जा सकता है। जैसे उन्हें उनकी असीमित शक्ति का एहसास करवाना, मानवीय मूल्यों को सिखाना, जीवन जीने का सही तरीक़ा सिखाना, स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन का महत्व बताना और सबसे बड़ी बात जीवन के सही मक़सद ‘शांत रहते हुए हर हाल में खुश रहना’ सिखाया जा सकता है और इस दुनिया को और बेहतर बनाया जा सकता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर