फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
शिक्षा और पेरेंटिंग को बदल, युवा पीढ़ी को बनाएँ जागरूक


Dec 22, 2021
शिक्षा और पेरेंटिंग को बदल, युवा पीढ़ी को बनाएँ जागरूक !!!
दोस्तों अक्सर एक विचार मुझे परेशान करता है की वर्तमान शिक्षा प्रणाली एवं पेरेंटिंग के द्वारा क्या हम अपने बच्चों को बुद्धिमान, प्रज्ञ बना रहे हैं या सिर्फ़ जानकारियों का पिटारा जिसे मालूम तो सब कुछ है लेकिन उसे पता नहीं है की यथार्थ के आधार पर क्या सही है और क्या ग़लत।
वैसे आज के युग में यह और ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है जहाँ लोग अपने फ़ायदे के लिए पूरी दुनिया को सिर्फ़ बाज़ार मान कर चलते हैं और अपने फ़ायदे के लिए सच्चाई को, आँकड़ों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं। आज के ज़्यादातर बच्चे और युवा उनके द्वारा दी गई जानकारी को अपनी प्राथमिकताओं, परिस्थितियों, ज़रूरतों एवं सच्चाई के आधार पर तोल ही नहीं पाते हैं और उसे सच मान उनकी चाल के शिकार हो जाते हैं, खुद का नुक़सान कर बैठते हैं। जी हाँ दोस्तों, मेरे शब्द थोड़े सपाट और चुभने वाले ज़रूर हैं, पर यह आज की सच्चाई है।
आइए उपरोक्त बात को हम एक उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं और उसकी शुरुआत मैं आपसे एक प्रश्न पूछ कर करता हूँ, क्या आप मानते हैं मैकडॉनल्ड्स, डोमिनोज, केएफसी, पिज्जा हट द्वारा परोसे जाने वाले व्यंजन भारतीय अमीरों के बीच लोकप्रिय हैं। अर्थात् भारतीय अभिजात्य वर्ग के बच्चे मैकडॉनल्ड्स, डोमिनोज, केएफसी, पिज्जा हट से बर्गर, पिज़्ज़ा, चिकन, सैंडविच जैसी चीजें लेकर खाना पसंद करते है? निश्चित तौर पर आपका उत्तर हाँ होगा दोस्तों।
अब सोचने वाली बात यह है की यह सभी कम्पनियाँ अभिजात्य वर्ग की पसंदीदा कम्पनी कैसे बन गई। मेरी नज़र में इसकी सिर्फ़ एक वजह है, उपरोक्त सभी कम्पनियाँ भारतीयों के व्यवहार, सोचने के तरीक़े से भलीभाँति वाक़िफ़ हैं, उन्हें पता है कि हम 135 करोड़ भारतीय बहुत महत्वाकांक्षी हैं और यही संख्या भारत को इनके लिए एक बहुत बड़ा बाज़ार बनाती है। इन सभी कम्पनियों ने ऐसी सभी जानकारियों को आधार बनाकर रणनीति बनाई और खुद को एक बड़े विकल्प, एक बड़ी ज़रूरत, कुछ अनूठी चीज़ के रूप में स्थापित किया। इसके लिए बार-बार विज्ञापन या ब्रांडिंग के अन्य सभी तरीक़ों का इस्तेमाल किया और खुद की इमेज को सर्वोत्तम विकल्प के रूप में हमारे दिमाग़ में बैठा दिया और आज हमारे बाज़ार के एक बड़े हिस्से पर इन कम्पनियों का क़ब्ज़ा है। असल में दोस्तों हम उनकी कही बातों को सच्चाई की कसौटी पर कसे बिना ही सच मान बैठे। हमने गहराई में जाकर यह पता करने की कोशिश ही नहीं करी के उनके उत्पाद, उनके अपने देश में किस रूप में देखे जाते हैं, ये वहाँ किस वर्ग की ज़रूरतों को पूरी करती हैं और हमारे देश में इन चीजों की ज़रूरत भी है या नहीं।
अगर आप तथ्यों के आधार पर इन कम्पनियों के उत्पादों को देखेंगे तो आप चीजों को हक़ीक़त से बिल्कुल उलट पाएँगे। उदाहरण के लिए अमेरिका और यूरोप का अभिजात्य वर्ग ताजी उबली सब्ज़ी खाता है। ताजी गर्म रोटी खाना वहाँ के सुपर रिच लोगों के लिए भी एक विलासिता है। अत्यधिक महँगे होने के कारण ताजे फल, हरी पत्तेदार सब्ज़ियों का सलाद खाना वहाँ हर किसी के बस का नहीं है क्यूँकि वहाँ का मौसम पूरे साल इनकी खेती करने के लिए अनुकूल नहीं है। इसी वजह से अधिसंख्य मध्यमवर्गीय और गरीब वर्ग अपनी भोजन की ज़रूरतों की पूरी करने के लिए पैकेज्ड फूड, फ़्रोज़न फ़ूड जिसे कई सप्ताह तक फ्रीजर में रखा जाता है, खाने के लिए मजबूर हैं।
इसके ठीक विपरीत हमारे देश में गरीब से गरीब व्यक्ति भी रोज़ ताजी हरी सब्ज़ी, दाल-चावल, सलाद, मिलेट्स आदि खाने में सक्षम है। हमारा धर्म, हमारी संस्कृति, हमारे देश का मौसम इस उम्दा भोजन की पहुँच हर भारतीय तक सुनिश्चित करता है। एक ओर जहाँ अमेरिकन और यूरोपियन हमारा ताज़ा खाना खाने को आतुर हैं वहीं हमारे लोग विज्ञापनों या फैलाई गई जानकारियों में भटकने की वजह से अच्छे खाने को छोड़ फ़्रोज़न खाना अपनी शान समझते हैं।
वैसे यह तो मात्र एक उदाहरण है, कोई भी क्षेत्र उठा कर देख लीजिए ऐसे हज़ारों विरोधाभास नज़र आ जाएँगे। दोस्तों, अगर हम वाक़ई अपने बच्चों को बुद्धिमान, प्रज्ञ बनाना चाहते हैं तो हमें पेरेंटिंग और शिक्षा के मूल मक़सद को समझना होगा और उसके अनुसार हमारी युवा पीढ़ी को सही प्राथमिकताएँ बनाना, सही चीज़ चुनना, बातों पर नहीं हक़ीक़त या सच्चाई के आधार पर निर्णय लेना, अपनी संस्कृति, अपने धर्म, अपने देश का सम्मान करना, पारिवारिक मूल्यों को समझना आदि सिखाना होगा अन्यथा इस बार हम शारीरिक की जगह मानसिक ग़ुलाम बन कर रह जाएँगे। विचार कीजिएगा!
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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