फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
शिक्षा का उद्देश्य नौकरी नहीं


Sep 21, 2021
शिक्षा का उद्देश्य नौकरी नहीं !!!
कुछ दिन पूर्व एक विश्वविद्यालय में मुझे नए विचारों और ऊर्जा से भरपूर कॉलेज के विद्यार्थियों के समूह से चर्चा करने का मौक़ा मिला। मैं उन बच्चों की रचनाशीलता, विवेक, कुछ कर गुजरने की दृढ़ इच्छा, सपने, जिज्ञासा को देख हैरान था। इतना ही नहीं कम्प्यूटर, इंटरनेट, प्रोग्रामिंग, क्लाउड कम्प्यूटिंग, विज्ञान, गणित विषय कुछ भी क्यों ना हो, सभी बच्चे इन विषयों के बारे में अच्छी जानकारी रखते थे। बच्चों के साथ बातचीत में कब कुछ घंटे गुजर गए पता ही नहीं चला।
सब कुछ बहुत अच्छा होने के बाद भी दोस्तों एक बात मुझे बहुत परेशान कर रही थी। लगभग 50 बच्चों में से एक ने भी मुझसे उद्यमिता अर्थात् एंटरप्रेन्योर या स्टार्टअप के संदर्भ में कोई प्रश्न नहीं करा। मैं हैरान और सोचने के लिए मजबूर था, आख़िर उद्यमिता में सबसे बड़ी बाधा क्या है? तो मेरा जवाब है दोस्तों हमारी शिक्षा पद्धति और पेरेंटिंग। जी हाँ दोस्तों शिक्षा पद्धति और पेरेंटिंग ही कैरियर के विकल्प के रूप में बच्चों को उद्यमिता या स्टार्टअप चुनने नहीं देती।
चलिए इसे एक उदाहरण से समझते हैं, विद्यालय में प्रवेश के साथ ही हमसे परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए कहा जाता है। जब भी अच्छे अंकों के विषय में प्रश्न करो इसे हमारे भविष्य से जोड़ दिया जाता है और कहा जाता है अच्छे अंक नहीं होंगे तो अच्छे कॉलेज में कैसे प्रवेश मिलेगा या पढ़ने-लिखने में अच्छे नहीं होगे तो तुम्हें कौन नौकरी देगा या फिर अच्छी शिक्षा ही अच्छी नौकरी दिला सकती है आदि।
ऐसा ही सुनते-सुनते हम कॉलेज तक पहुँच जाते हैं और फिर कॉलेज में हमें अच्छे प्लेसमेंट के लिए तैयार किया जाता है। हक़ीक़त तो यह है दोस्तों कि शिक्षा पूरी होने तक भी ज़्यादातर बच्चे ना ही स्टार्टअप और उद्यमिता का अंतर समझ पाते हैं और ना ही इन्हें पैसों का गणित या पैसों का व्यवहारिक ज्ञान होता है। दोस्तों इन्हें हम मानसिक, व्यवहारिक और ज्ञान के आधार पर सिर्फ़ और सिर्फ़ अच्छी नौकरी के लिए तैयार करते हैं। इसके पीछे शायद सुरक्षित अर्थात् सेफ़ रहते हुए जीवन बनाने या जीने की हमारी मानसिकता काम करती है।
चलिए थोड़ी देर के लिए पारिस्थितिक आधार पर इसे सही भी मान लिया जाए की अनुभव लेने या थोड़ा पैसा इकट्ठा करने के उद्देश्य से यह एक अच्छा विकल्प है। लेकिन एक अच्छी नौकरी लगते ही हम जीवन की दूसरी सबसे बड़ी गलती करते हैं, अपने सपनों को पूरा करने और अपने जीवन को सुरक्षित बनाने के लिए किश्तों पर सामान और घर ख़रीद कर। इसके पीछे भी दोस्तों हमें दी गई ग़लत शिक्षा ही काम करती है। लोन पर सामान लेना अर्थात् जो आप भविष्य में कमाएँगे उसे पहले ही खर्च कर देना। इसका अर्थ यह क़तई नहीं है दोस्तों कि लोन लेना ग़लत है, बस जैसा सब करते हैं या जैसा लोगों ने बताया है उसे ही करते जाना ग़लत है।
याद रखिएगा सफल होने का कोई निश्चित सूत्र नहीं है। तो अब सबसे बड़ा प्रश्न आता है, ‘फिर सफल होने के लिए क्या किया जाए?’ मुझे लगता है अगर आप निम्न सात सूत्रों को अपने जीवन का हिस्सा बना पाएँगे तो शायद आप ‘सफल’ होने के अपने लक्ष्य को पा पाएँगे।
पहला सूत्र - नौकरी के लिए नहीं ज्ञान पाने के लिए पढ़ाई करें।
दूसरा सूत्र - बचपन से ही बच्चे की क्षमता पहचानने का प्रयास करें।
तीसरा सूत्र - बच्चों को संस्कार के साथ व्यवहारिक शिक्षा भी दें और जो भी वह पढ़ रहा है उसे जीवन से जोड़ने का प्रयास करें।
चौथा सूत्र - कम उम्र से ही उसे पैसे से सम्बंधित निर्णय में भागीदार बनाएँ। याद रखिएगा पैसों से ज़्यादा पैसों की समझ होना आवश्यक है।
पाँचवाँ सूत्र - अपनी बात थोपने के स्थान पर बच्चों को सही निर्णय लेना सिखाएँ।
छठा सूत्र - ग़लतियों से बचाने के चक्कर में उसे कठपुतली ना बनाएँ। इसके स्थान पर उसे छोटी-छोटी ग़लतियाँ करने दें व उससे सीख लेकर सही निर्णय लेना सिखाएँ।
सातवाँ सूत्र - जोखिम लेना सिखाएँ
उपरोक्त सात सूत्र सुनने में बड़े साधारण हैं दोस्तों लेकिन इन्हें अपनाने या जीवन का हिस्सा बनाने के लिए आपको योजना बनाकर कार्य करना होगा। माफ़ कीजिएगा थोड़ा कठोर और कड़वा कह रहा हूँ, दोस्तों इस विषय में भले ही आप उपरोक्त सूत्रों को ना मानें लेकिन जल्द कार्य करिएगा। अन्यथा इस बात की सम्भावना बड़ जाती है की हमारा बच्चा भी समाज के कठपुतली पैदा करने वाली प्रणाली का शिकार हो जाए, जो आँख बंद करके रट्टु तोते सामान पुराने घिसे-पिटे रास्तों पर चलना सिखाती है। दोस्तों यह पुरानी हठधर्मिता को तोड़ कर जो आपको पसंद है वह करते हुए सफल होने का समय है। अपना और अपने बच्चों का जुनून खोजें, उसमें अपना भविष्य देखें। याद रखिएगा आपके पास जीवन जीने के लिए और सब कुछ पाने के लिए सिर्फ़ यही वाला एक जीवन है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर