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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

शिल्पकार बनें, किसी के जीवन के

शिल्पकार बनें, किसी के जीवन के
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July 26, 2021

शिल्पकार बनें, किसी के जीवन के!!!


दोस्तों किताबी ज्ञान आपको बड़ा पद तो दिला सकता है, लेकिन जीवन का असली आनंद, असली ख़ुशी आपको सिर्फ़ और सिर्फ़ मूल्य आधारित शिक्षा ही दिला सकती है। इसीलिए तो हम जब भी जीवन में मुड़कर पीछे देखते हैं तो हमको ऐसे कई गुरु, कभी शिक्षक तो कभी माता-पिता, रिश्तेदार, परिचित, पड़ोसी, दोस्त तो कई बार किसी अनजान शख़्स के रूप में नज़र आते हैं। 

यह वही लोग होते हैं जिन्होंने हमारे जीवन को एक नई दिशा बल्कि यह कहना बेहतर होगा कि हमारे जीवन को एक नया और सही मक़सद देने के लिए, हमें जीवन के अंधेरे में से बाहर निकालने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया होता है। आईए आज ऐसे ही गुरु की एक कहानी, जो मैंने पूर्व में कहीं पढ़ी थी, से इस शो की शुरुआत करते हैं।  


आज विद्यालय में एक बार फिर श्रीवास्तव मैडम को अपने पसंदीदा विषय ‘जीवन मूल्य’ बच्चों को सिखाने का मौक़ा मिल गया था और मैडम ने आज सभी बच्चों को ‘आभार की शक्ति' और ‘कृतज्ञता’ के बारे में बताया था। पाठ पूरा होने के बाद मैडम ने सभी बच्चों को एक प्रोजेक्ट करने के लिए देते हुए कहा, ‘प्रिय बच्चों, आज के पाठ के आधार पर आप अपने जीवन को एक चलचित्र की भाँति देखें और उस चीज़ का चित्र बनाए, जिसके लिए आप आभारी हैं।’


सभी बच्चे अपना मनपसंद कार्य पाकर खुश हो गए। कोई किसी खेल या खिलौने, तो कोई घूमने के स्थान, तो कोई किसी प्रिय सामान का चित्र बना रहा था। वैसे ऐसा होना सामान्य भी था क्यूंकि इतनी कम उम्र के बच्चों से आप और क्या अपेक्षा कर सकते हैं। लेकिन इन्हीं बच्चों में एक दुबला-पतला सा सामान्य दिखने वाला लड़का भी था। गुमसुम या दुखी से दिखने वाले इस बच्चे से अलग चित्रकारी की आशा किसी को भी नहीं थी, सिवाय श्रीवास्तव मैडम के। 


यह बच्चा वाक़ई कुछ अलग था, जब हाफ़ टाइम में सब बच्चे मैदान पर खेला करते थे तब यह अकेला ही दिवार के साथ खड़े-खड़े शून्य की ओर देखा करता था। इस बच्चे ने अपनी ड्रॉइंग शीट पर सिर्फ़ एक हाथ बनाया था। जी हाँ, शिक्षक द्वारा जिस चीज़ के लिए आप आभारी हैं, उसका चित्र बनाने का कहने पर उस बच्चे ने सिर्फ़ एक हाथ बनाया था। 


अलग, अमूर्त, बाक़ी सब से अलग दिखने वाली इस ड्रॉइंग ने वहाँ मौजूद हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचा। उसकी ड्रॉइंग को देख लोग अलग-अलग अंदाज़ा लगा रहे थे। कोई कह रहा था ये किसान का हाथ है, तो कोई कह रहा था यह मदद के लिए उठा हाथ है, तो कोई इसे क़ानून या पुलिस का हाथ बता रहा था। सब की कल्पना अलग-अलग थी और आज फिर लोगों की चर्चाओं और बातचीत के बीच वह नन्हा बच्चा अकेला, एक तरफ़ छूट सा गया था। 


जब थोड़ी भीड़ कम हुई और ज़्यादातर बच्चे भी वहाँ से चले गए, तो श्रीवास्तव मैडम उस बच्चे के पास गई और उसके पास, ज़मीन पर ही बैठते हुए बोली, ‘बेटा यह तुमने किस का हाथ बनाया है?’ बच्चे ने हल्की सी मुस्कुराहट और आँखों में चमक के साथ कहा, ‘यह आपका हाथ है!’


बच्चे के मुँह से यह शब्द सुनते ही श्रीवास्तव मैडम अतीत की यादों में खो गई। वे ही तो थी जो उस बच्चे को हाफ़ टाइम में यूँ अकेला, गुमसुम, दुखी सा दीवार के साथ चिपका खड़ा देख अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाकर कई बार उसे अन्य बच्चों के पास तो कई बार अपने साथ ले ज़ाया करती थी। जब वह कक्षा में लिखता नहीं था तब वही तो अपना हाथ आगे बढ़ाकर, उसका हाथ पकड़कर कहती थी, ‘आओ मैं तुम्हें पेंसिल पकड़ना या लिखना सिखा देती हूँ।’ कई बार गृहकार्य पूरा ना होने पर उन्होंने ही तो कहा था, ‘आओ हम यहीं बैठकर, मिलकर इसे पूरा कर लेते हैं।’ 


रोज़मर्रा में उस बच्चे के साथ घटने वाली किसी भी घटना को सिवाय श्रीवास्तव मैडम के किसी और ने इस नज़र से कहाँ देखा था? बल्कि किसी और की नज़र तो इस बच्चे पर पड़ी ही नहीं थी या यूँ कहूँ किसी ने भी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया था। इसलिए तो श्रीवास्तव मैडम इस बच्चे की छोटी-छोटी आँखों के पीछे छिपे दर्द को भली-भाँति जानती थी और हमेशा उसे अलग तरह से ट्रीट किया करती थी। 


वह छोटा सा बच्चा जीवन में किसी ओर चीज़ के लिए कैसे कृतज्ञ हो सकता था? उसके लिए तो उसके जीवन में सबसे बड़ा उपहार श्रीवास्तव मैडम ही थी। इसीलिए वह उनका आभारी था और आज उसकी मदद के लिए उठे उनके हाथ को उसने ड्रॉइंग शीट पर बनाया था। 


दोस्तों यह कहानी शो में सुनाई गई अन्य कहानियों जैसी सिर्फ़ एक कहानी नहीं है बल्कि इस गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर ‘श्रीवास्तव मैडम’ समान हर उस शिक्षक को जो पढ़ा रहे हैं, हर उस मात-पिता को जो अपने बच्चों के जीवन को बेहतर बना रहे हैं या फिर हर उस दोस्त को जो सही मायने में दोस्ती का फ़र्ज़ निभा रहे हैं, को दिया हुआ सम्मान, आभार और धन्यवाद है जिन्होंने खुद से आगे सोचते हुए, खुद की परेशानियों, दिक्कतों और सपनों को साइड में रखते हुए, अपना हाथ किसी ओर के जीवन को ऊपर उठाने के लिए आगे बढ़ाया है। 


उपरोक्त बच्चे के समान हर बच्चा ‘मैडम के हाथ’ का चित्रण कर उनका धन्यवाद नहीं कह सकता या कह पाता है। लेकिन मैं इतना गारंटी के साथ ज़रूर कह सकता हूँ कि वह उन्हें जीवन भर याद ज़रूर रखता है, उनके इस दुनिया से चले जाने के बाद भी। इसलिए जीवन में हमेशा लोगों की मदद करते रहें, उन्हें अपना हाथ आगे बढ़ाकर अंधेरे से बाहर निकालने का प्रयास अवश्य करते रहें।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

dreamsachieverspune@gmail.com

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