फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
सफलता का राज़ : रचनात्मकता


July 21, 2021
सफलता का राज़ : रचनात्मकता!!!
दोस्तों कई बार मज़ाक़ में तो कई बार गम्भीरता के साथ अलग-अलग रूपों में मुझसे एक सवाल पूछा गया है, ‘अकसर जीवन की रेस में ‘बैक बेंचर्स’ अर्थात् विद्यालय में आख़री बेंच पर बैठने वाले बच्चे आगे क्यूँ निकल जाते हैं? वे अपने जीवन में पढ़ने वाले बच्चों के मुक़ाबले ज़्यादा सफल नज़र आते हैं।’
वैसे दोस्तों मेरी नज़र में सफलता का लेना देना सिर्फ़ फ़्रंट या बैक बेंच पर बैठना या पढ़ाई में अच्छा या बुरा होना से नहीं है। हमें बैक बेंच पर बैठने वाले दोस्त अकसर इसलिए याद रह जाते हैं क्यूँकि उनके साथ हमारी बहुत सारी खट्टी-मीठी यादें जुड़ी रहती हैं। साथ ही जीवन में कुछ मुक़ाम हासिल कर वे बचपन से बनाई हमारी धारणा, ‘बदमाशी करोगे तो बड़े होकर ठेला चलाओगे’ को तोड़ देते हैं। इसलिए वे हमारे साथ के लोगों में चर्चा का केंद्र बने रहते हैं।
अगर वाक़ई आप उपरोक्त प्रश्न का उत्तर जानना चाहते हैं तो मैं कहूँगा रचनात्मकता अर्थात् क्रीएटिविटी यह अंतर पैदा करती है। अपनी बात को ठीक से समझाने के लिए मैं पहले आपको एक मज़ाक़िया कहानी सुनाता हूँ और उसके बाद थोड़ा सा विस्तार से अपनी बात समझाने का प्रयास करता हूँ।
एक बार एक प्रतिष्ठित बिज़नेस स्कूल में प्रवेश के लिए साक्षात्कार की प्रक्रिया चल रही थी। अगला नम्बर एक साधारण से दिखने वाले बच्चे का था जो कभी भी, किसी भी कक्षा में बहुत अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण नहीं हुआ था। उसे साक्षात्कार के लिए जाता देख उसके कुछ साथी कुटिल मुस्कुराहट के साथ शुभकामनाएँ दे रहे थे। मानो कह रहे हों, ‘तेरे जैसे लोग यहाँ सिर्फ़ भीड़ बढ़ाने आते हैं, रिज़ल्ट देखा है अपना?’
ख़ैर, सबकी बातों और इशारों को नज़रंदाज़ करते हुए यह युवा हल्की घबराहट के साथ, साक्षात्कारकर्ताओं के पैनल से आज्ञा लेकर उनके समक्ष बैठ गया। पैनल ने लड़के से कहा, ‘हम आपको एक मौक़ा देना चाहते हैं।’ वह युवा पैनल की बात को समझ नहीं पाया, वह इस विषय में कुछ पूछने ही वाला था कि पैनल के एक सदस्य ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘हम आपसे या तो दस आसान प्रश्न पूछेंगे या फिर एक बहुत कठिन प्रश्न। चुनाव आपको करना है, बस ध्यान रखिएगा इस बिज़नेस स्कूल में आपका प्रवेश और आने वाले वर्षों में आपका भविष्य उन प्रश्नों के जवाब पर निर्भर करेगा।’
पैनल का स्पष्टीकरण सुनते ही लड़का सोच में पड़ गया, कुछ देर विचार करने के बाद वह बोला, ‘मैं एक बहुत कठिन प्रश्न का उत्तर देना चाहूँगा।’ पैनल के सदस्य मुस्कुराते हुए बोले, ‘ठीक है, हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं। चलिए बताइए पहले क्या आता है दिन या रात।’
प्रश्न वाक़ई बड़ा ट्रिकी था और इसी वजह से इसका सही-सही जवाब देना बड़ा मुश्किल था। कुछ पल के लिए तो लड़के को लगा मैंने शायद ग़लत विकल्प चुन लिया है। तभी दूसरे पल उसे इस बिज़नेस स्कूल में प्रवेश का महत्व याद आया उसने कुछ पल सोचने के बाद, बड़े आत्मविश्वास से कहा, ‘इसमें तो कोई दुविधा या ज़्यादा सोचने की ज़रूरत ही नहीं है, निश्चित तौर पर दिन पहले आता है।’
पैनल उस बच्चे के आत्मविश्वास से बड़ा प्रभावित हुआ लेकिन उनमें से एक सदस्य ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?’ इतना सुनते ही वह युवा बड़े विनीत भाव से बोला, ‘क्षमा करें सर, आपने मुझे आश्वस्त करा था कि अगर मैं एक कठिन प्रश्न के उत्तर देने का चुनाव करूँगा तो आप मुझसे दूसरा प्रश्न नहीं करेंगे। लेकिन इस वक्त आप दूसरा प्रश्न पूछ रहे हैं।’
पैनल उस बच्चे की बुद्धिमत्ता से प्रभावित हुआ और उसे उस बिज़नेस स्कूल में प्रवेश के लिए चुन लिया गया।
दोस्तों अब मुख्य प्रश्न आता है, सीधा सा दिखने वाला, औसत छात्र उस प्रतिष्ठित बिज़नेस स्कूल में क्यों चुना गया? उसके कौनसे कौशल ने उसकी मदद करी? शिक्षा आपको तकनीकी कौशल में महारत हासिल कराती है लेकिन जो कथित तौर पर बदमाश या बैक बेंच वाले बच्चे होते है वे कक्षा में मस्ती करने के बाद, पढ़ाए जाने से बचने के लिए अपने दिमाग़ पर अतिरिक्त दबाव डालते हैं। यह अतिरिक्त दबाव उन्हें तकनीकी कौशल के साथ-साथ कम्यूनिकेशन, डिसिज़न मेकिंग, चीजों और परिस्थितियों को अलग नज़रिए से देखने में और सबसे महत्वपूर्ण रचनात्मक तरीक़े से हर बार कुछ नया करना सिखा देता है, जो जीवन को 360 डिग्री का नया आयाम देता है।
सीधे-सादे शब्दों में कहा जाए दोस्तों तो तकनीकी कुशलता आपको जटिल विषयों में सर्वश्रेष्ठ बनाती है, जबकि रचनात्मकता आपको मानसिक तौर पर सतर्क बनाकर, वर्तमान पल में अपना सर्वश्रेष्ठ देना सिखाती है। इसीलिए तो महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है, ‘Creativity is intelligence having fun.’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर