फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
सफलता के लिए ज़रूरी है प्रयास


Mar 3, 2021
सफलता के लिए ज़रूरी है प्रयास
भोपाल यात्रा के दौरान एक परिचित की बिटिया सोनम (बदला हुआ नाम) से मुलाक़ात करने का मौक़ा मिला। परिचित ने सोनम से मेरा परिचय एक काउंसलर के रूप में करवाया था। पता लगते ही सोनम ने कहा, ‘सर क्या मैं आपसे अपने कैरियर के संदर्भ में बात कर सकती हूँ?’ मैरे हाँ कहने पर उसने बताया, ‘सर मैं आजकल दुविधा में चल रही हूँ। डीयू से स्नातक करने के बाद मैंनें आईएएस अधिकारी बनने का लक्ष्य बनाया था। शुरू में तो मैं एकदम कॉनफ़िडेंट थी, मुझे लगता था कि मैं हर हाल में सफल हो जाऊँगी। लेकिन पिछले वर्ष मैं जेएनयू में स्नातकोत्तर प्रवेश की परीक्षा मात्र दो अंकों के कारण क्लीयर नहीं कर पायी। तब से मुझे कई बार ऐसा लगता है कि मैं आईएएस कि परीक्षा में सफल नहीं हो पाऊँगी। मुझे लक्ष्य बदलना चाहिए या नहीं?’
सोनम से बातचीत के दौरान मुझे कई बार एहसास हुआ कि उसमें आईएएस अधिकारी बनने की क्षमता है और वह सिर्फ़ एक असफलता व उस असफलता पर कुछ लोगों द्वारा दी गई समझाईश की वजह से उलझन में है। दोस्तों अकसर बच्चे इस प्रकार की दुविधा का सामना करते हैं और सही मार्गदर्शन के अभाव में क्षमता होने के बाद भी सफल नहीं हो पाते हैं। इस उदाहरण के लिए मैं ऐसा इसलिए कह सकता हूँ क्यूंकि सोनम प्रवेश परीक्षा में मात्र दो नम्बर से चुकी थी और दो नम्बर से चूकना क्षमता की कमी नहीं बल्कि छोटी-मोटी भूल को दर्शाता है। मैंने सोनम से उसकी आदत, पढ़ने के तरीक़े, पारिवारिक माहौल और पृष्ठभूमि के बारे में पूछा और उसका आकलन करके परीक्षा में सफलता पाने के लिए कुछ सुझाव दिए और एक कहानी सुनाई-
एक बार एक व्यक्ति मूर्ति बनवाने के लिए एक बड़ा सा चमकीला पत्थर लेकर शहर के सबसे बड़े मूर्तिकार के पास गया और मूर्तिकार को पत्थर देते हुए बोला, ‘मैं इस पत्थर से अपने पिता की मूर्ति बनवाना चाहता हूँ। अगर आप यह कार्य पूर्ण कर देंगे तो मैं आपको मेहनताने के रूप में 100 स्वर्ण मुद्राएँ दूँगा।’ मूर्तिकार ने स्वर्ण मुद्रा सुनते ही तुरंत हाँ कर दिया और उस व्यक्ति के जाते ही अपने औज़ार लिए और पत्थर को तोड़ने का प्रयास करने लगा। लगभग सौ बार प्रयास करने के बाद भी वह पत्थर तोड़ नहीं पाया।
अत्यधिक मेहनत की वजह से वह काफ़ी थक गया था और हार मानकर बैठ गया। तभी उसके मन में एक बार और प्रयास करने का विचार आया। उसने हिम्मत जुटाकर पत्थर तोड़ने के लिए औज़ार उठाए ही थे कि उसके दोस्त ने उससे कहा, ‘अरे छोड़ो, मैं जानता हूँ, यह बहुत मज़बूत पत्थर है। पत्थर के मालिक को भी पता है कि इसे तोड़ना नामुमकिन था तभी तो वह एक मूर्ति के लिए सौ स्वर्ण मुद्रा देने की बात कर रहा था।’ मित्र की बातों में आकर मूर्तिकार ने वह पत्थर उसके मालिक को लौटा दिया।
पत्थर के मालिक ने मूर्तिकार को समझाने का काफ़ी प्रयास करा लेकिन वह नहीं माना। मालिक ने उससे पत्थर वापस लिया और दूसरे प्रसिद्ध मूर्तिकार के पास गया। दूसरे मूर्तिकार ने भी पूरी कहानी सुनने के बाद काम करने से मना कर दिया। पत्थर लेकर वह व्यक्ति शहर के लगभग सभी मूर्तिकारों के पास गया लेकिन सभी ने ‘इस पत्थर को तोड़ना असम्भव है कहकर काम हाथ में लेने से माना कर दिया।’
पत्थर का मालिक परेशान होकर शहर के सबसे साधारण मूर्तिकार के पास गया और उसे पत्थर देते हुए पिता की मूर्ति बनाने के लिए कहा। मूर्तिकार ने बिना कोई धारणा बनाए अपनी पूरी क्षमता के साथ हथौड़ी से उस पत्थर पर वार करा। इस बार पत्थर एक ही वार में टूट गया। इस सफलता से मूर्तिकार का मनोबल काफ़ी बढ़ गया और उसने जल्द ही उस पत्थर को एक सुंदर मूर्ति का रूप दे दिया।
कहानी पूरी होते ही मैंने सोनम से कहा, अगर पहले मूर्तिकार ने सिर्फ़ एक बार और प्रयास किया होता तो निश्चित तौर वह सफल हो जाता और स्वर्ण मुद्राओं के साथ अपार यश का हक़दार होता। हो सकता है सोनम, तुम भी आज ऐसी ही परिस्थिति में हो, जब मात्र एक और प्रयास करने पर तुम्हें परीक्षा में सफलता मिल सकती है।
जी हाँ दोस्तों, कई बार हम भी अपने जीवन में किसी कार्य को पूर्ण करने अथवा किसी समस्या के समाधान को निकालने के लिए प्रयास करने के पूर्व ही हार मान लेते हैं। क्षमता और साधन होने के बाद भी सिर्फ़ आत्मविश्वास की कमी अथवा एक या दो प्रयास के बाद हार मानने की प्रवृति हमें सफल होने से रोक देती है। जबकि हो सकता है कि कुछ प्रयास और करने पर, कार्य पूर्ण हो जाता या समस्या का समाधान हो जाता। यदि जीवन में सफल होना चाहते हैं तो हार मानकर बैठने के स्थान पर प्रयास करें, क्या पता, जिस पल आप हार मान रहे हैं वही अंतिम प्रयास आपको कामयाबी दिलवाने वाला हो।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com

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