top of page

फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

साथी हाथ बढ़ाना

साथी हाथ बढ़ाना
global_herald_logo_1.png

June 4, 2021

साथी हाथ बढ़ाना…


दोस्तों, निश्चित तौर पर इस वक्त हम एक अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे हैं और इसी अनिश्चितता के बीच, कोरोना की दूसरी लहर के बाद एक बार फिर बाज़ार क्रमबद्ध तरीक़े से, सरकार की नीतियों के अनुसार धीरे-धीरे खुलना शुरू हो गए हैं और एक बार फिर सोशल मीडिया वीरों ने इसके पक्ष-विपक्ष, बाज़ार की स्थिति आदि पर अपने विचार ढ़ेर सारे तर्कों के साथ व्यक्त करना शुरू कर दिया है। अब सबसे बड़ा सवाल आता है, इस स्थिति में क्या सही है और क्या गलत?


दोस्तों इस बार मैं सही और ग़लत का निर्णय लेने या किसी और के लिए हुए निर्णय को मानने के पक्ष में ही नहीं हूँ। निश्चित तौर पर इस वक्त मेरी बात आपके मन में उलझन पैदा कर रही होगी। मैं इसे अपने नज़रिए से विस्तार से बताने का प्रयास करता हूँ।


हमारा मत दो तस्वीरों के आधार पर बना हुआ है। पहला, जिस तरह के आँकड़े हमारे सामने आ रहे हैं उसके अनुसार। चाहे फिर वो आँकड़े सरकार द्वारा बताए गए हों या फिर सोशल मीडिया पर तर्कों के साथ किसी ने शेयर करे हों। दूसरी तस्वीर वो, जो आप अपने आस-पास होता हुआ देख रहे है, जो आप खुद अपने लिए महसूस कर रहे हैं, जो आपने अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और करीबी लोगों के साथ होता हुआ देखा है।


दोस्तों आँकड़े भले ही कुछ भी बोलें लेकिन वर्तमान स्थिति में निश्चित तौर पर हम सभी विपरीत परिस्थितियों से गुजर रहे हैं। अगर आप ध्यान पूर्वक देखेंगे तो आप पाएँगे कि हमारे आस-पास ही कोई आर्थिक, तो कोई भावनात्मक या फिर कोई मानसिक रूप से परेशान है और जब आपके आस-पास नकारात्मकता अधिक हो, तो आप सकारात्मक रह ही नहीं सकते हैं। तो अब सबसे बड़ा सवाल आता है कि हम ऐसा क्या करें जिससे जल्द से जल्द हम स्थिति को सामान्य बना सकें। इसे समझाने के लिए मैं आपको बाज़ार में काम में लाई जाने वाली एक पुरानी प्रथा के बारे में बताता हूँ।


आज से लगभग 30-40 वर्ष पूर्व हमारे बाज़ारों में व्यापारियों के बीच एक बहुत ही सुंदर प्रथा चलती थी। हर व्यापारी सुबह दुकान खोलने के पश्चात सबसे पहले साफ़-सफ़ाई, उसके बाद पूजा करता था और पूजा करने के पश्चात अपनी दुकान के बाहर एक छोटी सी कुर्सी रख देता था। यह कुर्सी तब तक बाहर रखी रहती थी जब तक उसकी दुकान में कोई ग्राहक आकर कुछ ख़रीददारी ना कर ले। जैसे ही उसकी बोहनी हो जाती थी वह अपनी कुर्सी उठाकर दुकान के अंदर रख लेता था।कई बार कुछ दुकानों के बाहर वह कुर्सी काफ़ी देर तक रखी रहती थी, जिसका अर्थ होता था, ‘आज मेरी दुकान पर एक भी ग्राहक नहीं आया है और मैं अभी तक बोहनी नहीं कर पाया हूँ।’


आस-पास के दुकान वाले अपनी बोहनी करने के बाद इस बात का ख़्याल रखते थे कि उनके पड़ोसी दुकानदार की भी बोहनी जल्दी से जल्दी हो जाए। इसलिए जब भी उनकी दुकान पर बोहनी करने के बाद दूसरा ग्राहक आता था तो वे सबसे पहले अपने आस-पास नज़र घुमा कर देखते थे कि किसी दुकान के बाहर कुर्सी तो रखी हुई नहीं है? यदि किसी दुकान के बाहर कुर्सी रखी होती थी तो वो दुकानदार अपने ग्राहक से बोलता था, ‘भाई आप जो वस्तु ख़रीदना चाह रहे हैं वो उस दुकान पर मिलेगी।’ 


अर्थात् दोस्तों वह व्यापारी अपने ग्राहक को पड़ोस की दुकान पर सिर्फ़ इसलिए भेज देता था जिससे उसकी बोहनी भी हो सके और उसका दिन भी अच्छे से बीत सके। इस एक छोटी सी प्रथा की वजह से सभी व्यापारियों में प्रेम-भाव बना रहता था, आपसी माहौल सकारात्मक रहता था और शायद इसी वजह से उन सभी पर ईश्वरीय आशीर्वाद, उनकी कृपा बनी रहती थी।


दोस्तों इस वक्त हम सब को भी यही करना है। सरकारी आँकड़े, सरकारी योजनाएँ, व्यक्ति की अपनी खुद की मेहनत सब अपना काम करेगी, बस हमें अपने आस-पास मौजूद लोगों का थोड़ा सा ख़्याल रखना, उनकी मदद करना शुरू करना होगा। याद रखिएगा दोस्तों, विपरीत समय में मदद के लिए उठा हाथ उन हज़ारों हाथों से ज़्यादा ज़रूरी होता है जो आपकी सफलता पर ताली बजाने के लिए उठते हैं और साथ ही जब मुश्किल या विपरीत समय में अपने साथ कुछ लोग बने रहते हैं तो हम हंसते-हंसते विपरीत परिस्थितियों से लड़कर जीत जाते हैं। वैसे भी दोस्तों हमारा सनातन धर्म हमेशा सभी को एक परिवार का सदस्य मानते हुए, सम्पूर्ण विश्व का कल्याण चाहता है।


-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 
dreamsachieverspune@gmail.com

1_edited_edited.jpg

Be the Best Student

Build rock solid attitude with other life skills.

05/09/21 - 11/09/21

Two Batches

Batch 1 - For all adults (18+ Yrs)

Batch 2 - For all minors (below 18 Yrs)

Duration - 14hrs (120m per day)

Investment -  Rs. 2500/-

DSC_5320_edited.jpg

MBA

( Maximize Business Achievement )

in 5 Days

30/08/21 - 03/09/21

Free Introductory briefing session

Batch 1 - For all adults

Duration - 7.5hrs (90m per day)

Investment - Rs. 7500/-

041_edited.jpg

Goal Setting

A proven, step-by-step workshop for setting and achieving goals.

01/10/21 - 04/10/21

Two Batches

Batch 1 - For all adults (18+ Yrs)

Batch 2 - Age group (13 to 18 Yrs)

Duration - 10hrs (60m per day)

Investment - Rs. 1300/-

bottom of page