फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
सुखी जीवन का रहस्य संतुलन


Mar 17, 2021
सुखी जीवन का रहस्य संतुलन…
अपनी व्यवसायिक ज़िम्मेदारियों को निभाने के लिए पिछले दो दिन राजस्थान के उदयपुर में बिताने को मिले। लेकिन इन दो दिनों में मैंने जीवन के दो विपरीत रंगों को देखा। पहला, मुझे कुछ ऐसे युवाओं से मिलने का मौक़ा मिला जिन्होंने एक छोटे से विचार पर विश्वास करके ना सिर्फ़ पैसा बल्कि नाम और सुकून भी कमाया। वैसे दोस्तों इन युवाओं की कहानी मैं आने वाले कुछ दिनों में आपसे साझा करूँगा। लेकिन दूसरे शख़्स इनसे बिलकुल विपरीत थे। 70 वर्षीय यह व्यवसायी मुझसे सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़े हुए थे और काफ़ी लम्बे समय से मुझसे कह रहे थे कि जब भी आप उदयपुर आएँ मुझसे मिले बिना ना जाएँ।
उनकी उम्र और एक दिन पहले युवा कॉफ़ी व्यवसायी से मिले सकारात्मक अनुभव के चलते मैंने इन सज्जन से भी मिलने का निर्णय लिया। उनके पास पहुँचते ही उन्होंने सबसे पहले मेरा परिचय उनके ‘5000 वर्ग फीट के बंगले, उसके बाद ‘ऑडी कार ’ से और फिर इटैलीयन फ़र्निचर, चाँदी के ग्लास और अंत में ‘ लेनाक्स क्राकरी ’ जो यूएस से आई थी, से करवाया। दोस्तों इस पूरी मुलाक़ात के दौरान वे बौद्धिक चर्चा करने के स्थान पर अपनी भौतिक उपलब्धियों को ही गिनाते रहे।
यक़ीन मानिएगा दोस्तों, उस वक्त मेरे मन में सिर्फ़ एक विचार चल रहा था कि 70 वर्षों में उन्होंने अपना परिचय सिर्फ़ भौतिक चीजों से ही बनाया है क्या? उनकी स्थिति को देख मुझे एक कहानी याद आ गयी।
एक साधु महात्मा ने पैदल नर्मदा परिक्रमा करने का निर्णय लिया। परिक्रमा के नियमों के अनुसार, परिक्रमा के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने के उद्देश्य से वे एक साधन सम्पन्न सेठ के पास गए और उनसे दान देने का निवेदन किया। सेठ ने पहले तो काफ़ी सारी बातें बनाई और उसके बाद एक काँच निकालकर महात्मा को देते हुए कहा, ‘रास्ते में जो भी महामूर्ख मिले उसे आप यह आईना दे दीजिएगा।’
महात्मा ने सेठ से बिना कुछ कहे वह आईना लिया और यात्रा पर निकल गए। इधर सेठ वापस अपने काम धंधे में व्यस्त होकर भौतिक संसाधन इकट्ठा करने में व्यस्त हो गए। परिक्रमा और देव दर्शन पूर्ण करने के पश्चात महात्मा जी का वापस उसी नगर में आना हुआ। महात्मा जी के मन में वापस से सेठ से मिलने की इच्छा हुई। सेठ के घर पहुँचने पर महात्मा जी को पता चला कि आजकल सेठ काफ़ी बीमार और परेशान चल रहे हैं। महात्मा जी ने परेशानी की वजह जानना चाही तो पता चला कि सेठ के कई रिश्तेदार उनकी असमर्थता का फ़ायदा उठाकर उनकी अर्जित धन दौलत को लूट रहे हैं।
महात्मा जी ने तुरंत अपना झोला उठाया और उसमें से आईना निकालकर सेठ को देते हुए बोले, ‘वत्स तुम्हारे दिए आईने के लिए मैंने पूरे रास्ते में महामूर्ख को खोजने का प्रयत्न करा। पर आज मुझे लग रहा है कि इस आईने के लिए तुमसे ज़्यादा उचित कोई और हो ही नहीं सकता है।
जी हाँ दोस्तों अगर आप सुखी जीवन जीना चाहते हैं तो भौतिक, आध्यात्मिक, वैयक्तिक और व्यवहारिक सभी क्षेत्रों में सामंजस्य बनाना सीखिए। अगर इनमें से कोई भी अधूरा रहेगा तो आपके मन में कहीं ना कहीं ख़ालीपन हमेशा बना रहेगा और आप सिर्फ भौतिक संसाधनों से ही अपने जीवन को सार्थक सिद्ध कर पाएँगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com