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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

सोच और नज़रिए की है बात

सोच और नज़रिए की है बात
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Dec 26, 2021

सोच और नज़रिए की है बात !!!


दोस्तों कभी सोचकर देखा है कि एक ही कक्षा में एकसाथ पढ़ने वाले बच्चों को जीवन में एक समान सफलता क्यों नहीं मिल पाती या वे सब एक समान सुखी क्यों नहीं रह पाते? जबकि विद्यालय, शिक्षक, किताबें सब कुछ एक समान था। हो सकता है आप के मन में विचार आ रहा हो कि जिसने अच्छे से पढ़ाई करी होगी वह अपने जीवन में ज़्यादा सफल हुआ होगा। लेकिन अगर आप थोड़ा गम्भीरता के साथ सोचकर देखेंगे तो पाएँगे कि सफलता और सुख का आपकी पढ़ाई और परीक्षा में आए नम्बरों के साथ कोई सीधा संबंध नहीं है। तो अब मुख्य सवाल आता है, सफल और असफल, सुखी और दुखी लोगों के बीच यह बड़ा अंतर आता किस वजह से है? चलिए एक किस्से से इसे समझने का प्रयास करते हैं-


एक सज्जन ने सोच और नज़रिए का प्रभाव जीवन को किस तरह प्रभावित करता है, जानने के उद्देश्य से लोगों से बातचीत करने और उन्हें निगरानी में रखने का निर्णय लिया। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उस व्यक्ति ने इमारत के निर्माण में लगे मजदूरों से बात करने का निर्णय लिया। एक दिन वह व्यक्ति निर्माणाधीन बिल्डिंग की साइट पर पहुँचा और वहाँ काम कर रहे एक मज़दूर से प्रश्न पूछा, ‘आप यहाँ पर क्या कर रहे हैं?’ वह मज़दूर थोड़ा सा चिढ़ते हुए बोला, ‘दिख नहीं रहा है क्या, मैं बेलदारी कर रहा हूँ। मेरा काम सीमेंट, रेत, ईंट उठाना व सीमेंट और रेत को मिलाकर मसाला बनाना है।’


मज़दूर का जवाब सुन वह व्यक्ति मुस्कुरा दिया और उसे धन्यवाद कहते हुए, दूसरे मज़दूर के पास पहुँच गया और उससे भी वही प्रश्न पूछा,  ‘आप यहाँ पर क्या कर रहे हैं?’ वह मज़दूर अपना काम करते-करते ही बोला, ‘अपने परिवार का पेट भरने के लिए मैं यहाँ मज़दूर के रूप में नौकरी कर रहा हूँ। वैसे मैं पढ़ा-लिखा बेरोज़गार युवक हूँ। मेरे लायक कोई और काम हो तो बताइएगा।’ 


इन सज्जन ने दूसरे मज़दूर को भी धन्यवाद के साथ शुभकामना दी और अगले मज़दूर के पास पहुँच गए और अपना वही प्रश्न दोहरा दिया,  ‘आप यहाँ पर क्या कर रहे हैं?’ प्रश्न सुनते ही इस मज़दूर के चेहरे पर गर्व के भाव के साथ मुस्कुराहट आ गई और वह बोला, ‘साहब, मैं बहुत सौभाग्यशाली हूँ जो मुझे इस सुंदर इमारत के निर्माण में अपना योगदान देने को मिला। मैं इस वक्त एक मज़दूर की ज़िम्मेदारियाँ निभा रहा हूँ।’ 


दोस्तों, तीनों व्यक्ति वहाँ कर तो मज़दूरी ही रहे थे, लेकिन तीनों का ही अपने काम को देखने और सोचने का तरीक़ा बिल्कुल अलग-अलग था। उस व्यक्ति ने अगले दस वर्षों तक इन मज़दूरों को अपनी निगरानी में रखा और पाया कि पहला मज़दूर दस वर्ष बाद भी मज़दूरी ही कर रहा था। असल में मज़दूरी करके जीवन यापन करने को उसने अपनी नियति मान स्वीकार कर लिया था। इसलिए उसने कभी उससे ज़्यादा बड़ा सोचा ही नहीं।


दूसरा मज़दूर जो अपने परिवार की ज़िम्मेदारी निभाने के लिए कार्य कर रहा था, वह इन दस वर्षों में ठेकेदार बन गया था। असल में दोस्तों उसे हर पल परिवार की ज़रूरतों का ख़्याल रहता था, इसलिए बढ़ती हुई ज़रूरतों को पूरा करने के लिए वह हमेशा अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहा और मज़दूर से मिस्त्री और मिस्त्री से ठेकेदार बन गया।


तीसरा मज़दूर जिसने स्वयं को उस खूबसूरत भवन के निर्माण में भागीदार के रूप में देखा था वह दस वर्षों में एक बड़ा बिल्डर बन गया था। इसकी मुख्य वजह अपने काम को देखने का उसका नज़रिया था। खूबसूरत बिल्डिंग बनाना उसका शौक़ था और उसने अपने शौक़ को ही अपने पेशे के रूप में चुन लिया था। वह पैसों के लिए नहीं बल्कि अपने शौक़ के लिए उच्च गुणवत्ता वाला कार्य किया करता था और अपने शौक़ को पूरा करते-करते ही वह बड़ा बिल्डर बन गया था और अपने दोनों साथी मज़दूरों के मुक़ाबले उसने सबसे ज़्यादा तरक़्क़ी की थी।


जी हाँ दोस्तों, सफलता की चाबी हमारी सोच और हमारे नज़रिए में छिपी रहती है। इसीलिए एक ही कक्षा में, एक ही शिक्षक से पढ़ने वाले बच्चे अपने जीवन में अलग-अलग मुक़ाम हासिल करते हैं। अगर आप भी अपने जीवन को सुखी और सफल बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी सोच और फिर नज़रिए को बदलें, जिंदगी खुद-ब-खुद खूबसूरत बन जायेगी।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

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