फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
स्वीकार्यशक्ति - एक जादू


Dec 1, 2021
स्वीकार्यशक्ति - एक जादू
एक सज्जन सुबह-सुबह अपने कार्यालय जाने के लिए तैयार हो रहे थे। उनके काम करने के तरीक़े को देख लग रहा था कि शायद वे कुछ ज़्यादा ही जल्दी में हैं। अलमारी में कुछ ढूँढने में असफल होने पर वे बेचैनी के साथ जोर से अपनी पत्नी को आवाज़ देते हुए बोले, ‘सुनती हो, मेरी नीली टाई कहाँ रखी है और सफ़ेद मोज़े भी नज़र नहीं आ रहे हैं। हर बार जगह बदलकर रख देती हो।’ हालाँकि पत्नी की कोई गलती नहीं थी लेकिन फिर भी चिड़चिड़ाहट भरी आवाज़ का जवाब अंदर से ही उसने उसी अन्दाज़ में दिया, ‘तुम तो एकदम भुलक्कड़ हो, कल रात को ही तो तुमने मुझसे निकलवाकर टेबल पर रखवाए थे। भूल खुद गए हो, नाम मेरा लगा रहे हो।’
पत्नी के हल्के ताने को सुन वे सज्जन थोड़ा सा चिढ़ गए और बुदबुदाते हुए कुछ बोले। उनकी बुदबुदाहट को सुन पत्नी अंदर से ही बोली, ‘हाँ मार लो ताने, अभी खाना देने में लेट हो जाऊँगी तो भी चिल्लाओगे, अभी ऑफ़िस का बेग नहीं मिलेगा तो भी चिल्लाओगे। उठते के साथ ही चिल्लाना शुरू कर देते हो। अरे मैं भी इंसान हूँ, दो ही हाथ हैं मेरे, रोबोट तो हूँ नहीं, जो पलक झपकते ही सब कुछ कर दूँ। तुम्हारी माँ ने यह छोटी-मोटी बातें बचपन में ही तुम्हें सिखा दी होती, तो आज यह हाल नहीं होता।’
पत्नी से माँ का नाम सुनते ही उन सज्जन का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया और वो लगभग चिल्लाते हुए बोले, ‘इसी तरह तेरी माँ ने तुझे जीभ सम्भालना सिखाया होता तो अच्छा रहता, जब देखो तब कैंची की तरह चलती रहती है। कभी दो शब्द ढंग से नहीं बोल सकती और हाँ, हर बात में माँ को बीच में ना लाया कर।’
कुछ ही पलों में एक छोटी, सामान्य सी बात ने झगड़े का रूप ले लिया था और अब पति-पत्नी दोनों ही ग़ुस्से से भरे बैठे थे। इसी ग़ुस्से के कारण उस दिन पति अपने कार्यालय की फ़ाइल घर पर ही भूल गया और बॉस से डाँट खाई और इधर घर पर पत्नी भी दिनभर अपनी सास और बच्चों पर चिड़चिड़ाती रही। एक छोटी, सामान्य सी बात की वजह से दोनों ने अपना मूड और पूरा दिन बर्बाद कर लिया।
अगर पत्नी पति द्वारा जल्दबाज़ी में की गई गलती को सामान्य रूप में ले लेती या फिर पति, पत्नी की ज़िम्मेदारियों का भार समझ लेता तो शायद यह घटना ही नहीं होती। ठीक इसी तरह दोस्तों हम, लोगों की आदतों व परिस्थितियों, जैसी ना बदली जा सकने वाली स्थितियों को बदलने के प्रयास में सब कुछ बिगाड़ लेते हैं। उदाहरण के लिए अगर आपको आपकी सास या पत्नी अथवा पति या फिर बॉस से समस्या है, तो क्या आप टीवी, फ़्रीज़ के समान ही इन्हें बदलकर ला सकते हैं? अर्थात् एक्सचेंज कर सकते हैं? अगर नहीं, तो क्या आप सबके सोचने, समझने या कार्य करने का तरीक़ा बदल सकते हैं? नहीं, तो फिर जो जैसा हैं उन्हें वैसे ही स्वीकार कर लीजिए क्यूँकि ऐसा करना कम से कम आपको सुख, शांति और चैन के साथ रहने का एक मौक़ा देगा।
जी हाँ दोस्तों, अकसर हम उन चीजों को बदलने का प्रयास करते हैं जो हमारे हाथ में होती ही नहीं है और बाद में उन्हें ना बदल पाने की वजह से ही हमें नकारात्मक भावों का सामना करना पड़ता है। याद रखिएगा, जब हम किसी अवांछित घटना को स्वीकार नहीं पाते हैं, तो वह घटना हमारे अंदर क्रोध पैदा करती है और अगर हम इसे स्वीकार लेते हैं तो यह हमें सहनशील बनाती है। अगर हम अनिश्चितता को अस्वीकार करते हैं तो वह हमारे अंदर डर पैदा करता है और अगर हम उसे स्वीकार लेते हैं तो वह एक साहसिक कदम बन जाता है। अगर हम दूसरे द्वारा किए गए दुर्व्यवहार को अस्वीकार करते हैं तो वह हमारे अंदर घृणा पैदा करता है और अगर हम उसे स्वीकार कर लेते हैं तो वह हमें लोगों को माफ़ करके शांति से रहना सिखा देता है। इसी तरह दोस्तों अगर हम दूसरों की सफलता को स्वीकार नहीं कर पाते हैं तो वह हमारे अंदर ईर्ष्या पैदा करती है और अगर हम इसे स्वीकार लेते हैं तो यह प्रेरणा बन जाती है। तो चलिए दोस्तों आज से ही निर्णय लेते हैं की स्वयं की शांति और ख़ुशी के लिए जिन बातों, परिस्थितियों को हम बदलने में सक्षम नहीं होंगे उसे अपने मन से स्वीकारेंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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