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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

उदासीन समाज न बनाएं, न उसका हिस्सा बनें

उदासीन समाज न बनाएं, न उसका हिस्सा बनें
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June 23, 2021

उदासीन समाज न बनाएं, न उसका हिस्सा बनें


वे बचपन से ही सुन और बोल नहीं सकते थे। दुर्भाग्य से पेयजल और बिजली पाने के लिए जिन अधिकारियों से उनका वास्ता पड़ा, उन्होंने ऐसा व्यवहार किया, जैसे वे भी गूंगे-बहरे हों। ऐसा कुछ ‌वर्ष नहीं, छह दशक चला!

अगर आप केरोसीन लैंप की धीमी रोशनी से रोशन उनके घर जाना चाहेंगे, तो बारिश के कारण घुटनों तक पानी में डूबकर जाना होगा, वह भी महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग के जंगल में। और अगर लंच के वक्त पहुंचेंगे तो वहां का दृश्य देख आंखें भर आएंगी क्योंकि 70 वर्ष से ज्यादा के ये दंपति आवारा जानवरों से खाना साझा करते दिखेंगे। लेकिन वे यहां बिना पेयजल और बिजली के 60 वर्षों से रह रहे हैं। ऐसा नहीं है कि राजनेता उनकी जरूरतें नहीं जानते। लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय चुनावों में पति-पत्नी वोट दे सकें इसलिए नेता कार की व्यवस्था करते हैं और वादा करते हैं कि पानी-बिजली दिला देंगे लेकिन दंपति की उंगलियों पर वोट की स्याही लगते ही नेता बहरे हो जाते हैं।


बुजुर्ग वसंत दिचोलकर और उनकी पत्नी वनीता, रोज आधा किमी जाकर कुएं से पानी भरते हैं। आसपास न तो हैंडपप है, न बिजली कनेक्शन। दो किलोमीटर के दायरे में कोई घर भी नहीं है। वनीता घरों में काम करती हैं। जब उन्हें अचानक मदद की जरूरत होती है तो वे उस घर में संदेश छोड़ देती हैं, जहां काम करती हैं (वे सांकेतिक भाषा समझते हैं)। फिर वह संदेश मोबाइल पर वनीता के भाई के पोते अतुल नेरुलकर तक पहुंचता है, जो उसी गांव में 10 किमी दूर रहता है। फिर वह मदद के लिए आता है।


बीती 6 जून को दो आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ घर-घर जाकर स्वास्थ्य जांच कर रहे शिक्षक एकनाथ जानकर को तुलास गांव के जंगल वाले हिस्से में यह घर दिखा। उन्होंने दंपति का तापमान और ऑक्सीजन स्तर जांचा लेकिन जाने से पहले उनके बैंक खाते की जानकारी ले ली। फिर एकनाथ ने दंपति की दिल छूने वाली कहानी फेसबुक पर पोस्ट की। कहानी की सच्चाई जांचने के लिए कई उनके घर भी गए। और आज 23 जून तक, इस पोस्ट ने 9 लाख रुपए जुटाने में मदद की है। बिजली सप्लाई का प्रबंधन करने वाली एमएसईडीसीएल ने दंपति को बिजली सप्लाई उपहार में दी है। उन्हें संजय गांधी निराधार पेंशन योजना के तहत 1200 रुपए प्रतिमाह भी दिए जाएंगे। डिप्टी कलेक्टर पेयजल की समस्या का समाधान ढूंढ रहे हैं।


शिक्षक एकनाथ चाहते तो अपने आधिकारिक कर्तव्यों से वैसे ही बच सकते थे, जैसा ऊपर दिए गए अधिकारियों ने किया, लेकिन उन्होंने दंपति के संघर्ष और दर्द के प्रति उदासीनता न दिखाने का फैसला लिया।


कल्पना कीजिए कि पिछले 60 वर्षों में कितने लोग इसी कारण से दंपति के संपर्क में आए होंगे? मैं हमेशा सोचता हूं कि हमारी ही नस्ल के ऐसे नाजुक लोग, जो न सिर्फ आर्थिक रूप से, बल्कि अपनी दिव्यांगता के कारण भी कमजोर हैं, उनकी मदद के मामले में समाज में जड़ता क्यों है? दंपति की परिस्थिति छह दशक इसलिए खराब नहीं रही, क्योंकि वादे पूरे नहीं किए गए या उनकी बात नहीं सुनी गई, बल्कि ऐसा हमारे समाज की बेरुखी, निष्क्रीयता और खामोशी के कारण हुआ।


फंडा यह है कि अगर हम मानव जाति को अगले स्तर पर ले जाना चाहते हैं तो कभी उदासीन जीवन न जिएं और न ही कभी हमारे समाज को उदासीन रहने दें।

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