दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
ध्यान रखें, लौटने वाले कर्मचारी पहले जैसे नहीं हैं


July 21,2021
ध्यान रखें, लौटने वाले कर्मचारी पहले जैसे नहीं हैं!
पिछले महीने मेरे एक आंत्रप्रेन्योर दोस्त ने मुझे ऑफिस बुलाया, लेकिन किसी भी कर्मचारी के आने से पहले। कोई राज बताने के लिए नहीं, बल्कि वे चाहते थे कि मैं प्रत्येक कर्मचारी को ऑफिस आते हुए, अपनी डेस्क पर बैठकर काम शुरू करते देखूं। मैंने करीब 90 मिनट तक ऐसा किया। कर्मचारियों को उनकी डेस्क पर जाते देख मुझे लगा कि मैं कुछ लोगों के पास जाऊं और कहूं कि वे तुरंत यूरिन टेस्ट कराएं! यह आइडिया मुझे नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध टेली-सीरीज ‘सूट्स’ से आया, जो यूएसए नेटवर्क का लीगल ड्रामा है। इसमें एक अधिकारी कर्मचारियों के आने से पहले दरवाजे पर खड़ा रहता है और किसी को भी चुनकर उसे तुरंत यूरिन टेस्ट करवाने बोलता है, ताकि ड्रग्स, ज्यादा शराब या अन्य नशा करने वाले की पहचान कर सके। फिर वह ऑफिस में ही बनी मेडिकल लैबोरेटरी में खुद जाकर कर्मचारी का यूरिन सैंपल जमा करवाता है। सीरियल में अधिकारी अपनी शक्ति और सुविधा का इस्तेमाल मुख्य किरदार के खिलाफ भी करता है, लेकिन मैंने इसका इस्तेमाल कर्मचारियों की मदद में करने का सुझाव दिया क्योंकि किसी अनजाने कारण से मेरे दिमाग में 2020 के मध्य में शराब की दुकानों के बाहर लाइन में खड़े लोगों की तस्वीरें उभर रही थीं।
मुझे लगा कि जहां बच्चे दोस्तों से मिलने खुशी-खुशी स्कूल लौट रहे हैं, वहीं मेरे मित्र के कर्मचारी तनावग्रस्त और चिढ़चिढ़े लग रहे थे। ऐसा शायद लंबे समय तक अकेले रहने और शराब के अतिरिक्त इस्तेमाल समेत कई कारणों से हो सकता है। लोगों को टीका लगने और धीरे-धीरे कार्यस्थल पर वापसी के बाद भी यह समस्या बनी रही।
मेरे दोस्त ने बाद में पूछा, ‘आपने क्या देखा?’ मैंने बस यही कहा, ‘अभी लौटने वाले कर्मचारी वैसे नहीं हैं, जैसे मार्च 2020 में थे।’ उन्होंने कहा, ‘यही कारण है कि मैंने आपको बुलाया। कर्मचारियों की सेहत सुधारने का कोई सुझाव दें। हम इस वक्त मानसिक रूप से सबसे त्रासद दौर में है।’ वे यह भी बोले कि ‘मुझे इसकी शंका हुई, जब बहुत से कर्मचारियों का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं था, जबकि वे महामारी के पहले अच्छा प्रदर्शन करते थे। मेरे जैसे नियोक्ताओं के लिए तब तक समस्याएं पहचानना मुश्किल है, जब तक वे कार्यस्थल में बाधा नहीं बनतीं।’
अमेरिका में ज्यादातर बड़ी और मध्यम आकार की कंपनियों में इंटरनेशनल इम्प्लॉयी असिस्टेंस प्रोफेशनल एसोसिएशन के मुताबिक ‘कर्मचारी सहायता कार्यक्रम’ होते हैं। वहां कई कंपनियां लंबे ब्रेक के बाद लौटने वाले कर्मचारियों और मैनेजर्स को काउंसलिंग की सुविधा देती हैं। वे हमेशा लोगों पर नजर रखती हैं और सुनिश्चित करती हैं कि ऐसी सुविधाएं कर्मचारियों को मुफ्त मिलें। लेकिन भारत में ऐसा ट्रेंड बमुश्किल ही दिखता है।
इस तरह मेरे मित्र की कंपनी ने नशे की समस्या वाले कर्मचारियों को रिहैब सेंटर पर भेजने और उनके वैवाहिक जीवन की समस्याएं सुलझाने में मदद देने का फैसला लिया। साथ ही वादा किया कि अगर वे जीवनशैली सुधारेंगे तो उनकी नौकरी सुरक्षित रहेगी। कंपनी फिलहाल एक पैथोलॉजी लैब से उनके ऑफिस में ही केंद्र खोलने की बात कर रही है, जहां कर्मचारियों के मुफ्त मेडिकल टेस्ट हो सकें, जिनकी जानकारी गुप्त रखी जाएगी।
लौटने वाले कर्मचारियों को संभालने में वे ही कंपनियां सफल होंगी, जो महामारी के बाद पैदा हुई अवसाद और चिंता जैसी दर्जनों समस्याओं को सुलझाने में मदद करने वाले कार्यक्रम बनाएंगी।
फंडा यह है कि चूंकि लौटने वाले कर्मचारी पहले जैसे नहीं रहे, इसलिए उनके बदले हुए व्यवहार में गलतियां निकालने की बजाय कामकाजी जीवन में फिर सहज होने में उनकी मदद करें।