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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

प्रेरणा हमारे अंदर ही है, बस उसे रोशन करें

प्रेरणा हमारे अंदर ही है, बस उसे रोशन करें
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April 22, 2021

प्रेरणा हमारे अंदर ही है, बस उसे रोशन करें


सभी जानते हैं कि 1903 में राइट बंधुओं ने जब पहली बार हवाईजहाज उड़ाया तो वह 12 सेकंड हवा में रहा और उसने 120 फीट की दूरी तय की। बाकी इतिहास है। आज हम घंटों, 40 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ते हैं। लेकिन कम लोग जानते हैं कि सोमवार को नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (जीपीएल) के ‘इनजेन्युटी’ नामक छोटे रोबोटिक हेलीकॉप्टर ने 30 सेकंड की उड़ान भरी, मंगल ग्रह के वातावरण में रहा और धीरे से उतर गया। शायद कुछ ही लोगों को याद होगा कि इस अनोखी उड़ान के पीछे एक भारतीय था, जिसे 1960 के दशक में दक्षिण भारत में पलते-बढ़ते हुए रॉकेट और अंतरिक्ष की खूबसूरती आकर्षित करती थी। उसके उत्साह को देखकर उसके अंकल ने नासा के बारे में जानकारी मांगने के लिए यूएस कॉन्सुलेट को लिखा था। वहां से चमकदार किताबों से भरा लिफाफा आया था, जिसने इस लड़के को मोह लिया। रेडियो पर मून लैंडिंग के बारे में सुनकर अंतरिक्ष में उसकी रुचि और बढ़ गई। इन सभी अनुभवों ने डॉ जे बलराम, जिन्हें जेपीएल में बॉब कहते हैं, को आईआईटी मद्रास से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री लेने के लिए प्रेरित किया। सोमवार की 30 सेकंड की उड़ान बलराम की जेपीएल में रोबोटिक्स टेक्नोलॉजिस्ट के रूप में 35 वर्षों की मेहनत का नतीजा है। वे जेपीएल में मिशन के चीफ इंजीनियर हैं। स्वाति मोहन के बाद नासा के मार्स मिशन से जुड़ने वाले बलराम दूसरे भारतीय मूल के प्रतिष्ठित इंजीनियर हैं। स्वाति ने इस साल मार्स रोवर परसेवरेंस के ऑपरेशन इंजीनियर्स का नेतृत्व किया था।


इससे मेरे मुझे एक और व्यक्ति याद आया। दो बच्चों की मां, 52 वर्षीय मंदीप कौर आज न्यूजीलैंड पुलिसबल में सीनियर सार्जेंट बनने वाली भारतीय मूल की पहली महिला हैं। वे 1996 में 26 की उम्र में असफल शादी और पंजाब के मालवा जिले के रूढ़िवादी परिवार को छोड़कर, कमजोर अंग्रेजी और छोटे गांव वाली सोच लेकर नई जिंदगी की शुरुआत करने ऑस्ट्रेलिया पहुंची थीं। पैसों की कमी से जूझती, बिजनेस स्टडीज की छात्रा के रूप में कौर ने जरूरतें पूरी करने के लिए किचन साफ किए, पेट्रोल पंप पर काम किया और घर-घर जाकर टेलिकॉम सर्विस बेची, जिसके लिए वे खुद की लिखी बातें ग्राहकों को पढ़कर सुनाती थीं। तीन साल बाद वे न्यूजीलैंड चली गईं।


हालांकि उनकी मां आर्मी, एयरफोर्स और पुलिस जैसी वर्दी वाली नौकरी को बहुत मानती थीं लेकिन कौर ने इनपर ध्यान नहीं दिया क्योंकि ये पुरुषों के पेशे थे। फिर वे न्यूजीलैंड में ऑकलैंड के होस्टल के नाइट रिसेप्शनिस्ट जॉन पेगलर से मिलीं, जो उन्हें अपनी गुजरी जिंदगी के बारे में घंटों बताता था, जिसमें वह पुलिस अधिकारी था। जॉन कौर को प्रोत्साहित करता कि अगर पुलिस में भारतीय मूल की महिला होगी तो उन लोगों की मदद होगी जो सांस्कृतिक या भाषाई बाधाओं के कारण पुलिस में शिकायत नहीं करते। नौकरी के लिए योग्य होने के लिए कौर को न सिर्फ 11 मिनट, 20 सेकंड में 2.4 किमी दौड़ना पड़ा बल्कि 54 सेकंड में 50 मीटर तैरना भी पड़ा। साथ ही 20 किग्रा वजन कम करना पड़ा। सुबह 5 बजे उठकर, वे 5.30 पर स्विमिंग पूल पहुंचती, 7 बजे से एडमिन की नौकरी करतीं और दोपहर 3 बजे से रात तक टैक्सी चलातीं। इस तरह कमाई और पेशे का संतुलन बनाकर वे भारतीय मूल की ऐसी पहली नागरिक (महिला) बनीं, जो साधारण कैब ड्राइवर से सीनियर सार्जेंट के पद तक पहुंची।


फंडा यह है कि किसी माचिस की डिबिया की तरह, हम सभी के अंदर प्रेरणा की कई तीलियां हैं। पूरे ब्रह्मांड को रोशन करने के लिए उन्हें बस जलाने की जरूरत है।

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