दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
बच्चों के नंबर कम हो रहे हैं तो चिंता न करें


Oct 26, 2021
बच्चों के नंबर कम हो रहे हैं तो चिंता न करें
मैं ऐसी लड़की को जानता हूं जिसका शुरू से ही पढ़ाई पर बहुत ध्यान रहा है। वह डॉक्टर बनना चाहती है और उसे दूसरी तथा तीसरी भाषा छोड़कर सभी विषयों में हर साल ‘ए’ ग्रेड मिलते रहे हैं। लेकिन जुलाई 2020 में उसके दादा-दादी को बारी-बारी से कोरोना हुआ। उसके गांव में अच्छे स्कूल नहीं थे, इसलिए वह शहर में दादा-दादी के साथ रहती है। चूंकि माता-पिता गांव में ही रहते हैं, इसलिए उसे ही दादा-दादी को सहारा देना पड़ा क्योंकि उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। लड़की के लिए सुबह उठना मुश्किल हो गया था क्योंकि वह देर रात तक प्रार्थना करती थी और रोजमर्रा के कामों में मदद करती थी। नतीजतन वह ज्यादातर ऑनलाइन क्लास में शामिल नहीं हो पाई। इसलिए उसे ‘ए’ की जगह सीधे ‘सी’ मिलने लगे और भाषाओं में तो फेल ही हो गई।
शिक्षकों को उसकी समस्या समझ आई। उन्होंने उसके साथ मेहनत की और एक्स्ट्रा क्लास दीं। इससे अकादमिक वर्ष 2021 की समाप्ति तक उसे फिर ‘ए’ ग्रेड मिलने लगे।
अब वह फिर स्कूल जाने लगी है। लेकिन उसे घर के कामों और पढ़ाई के दबाव में 24 घंटे का शेड्यूल संभालने में मुश्किल हो रही है। पिछले 19 महीनों से, वह घर की ज्यादातर जिम्मेदारियां संभाल रही है। महामारी के असर से अचानक दादा-दादी और बूढ़े हो गए हैं। लड़की के अंदर 90% से ज्यादा अंक पाने की ललक खत्म हो रही है क्योंकि उसने पिछले 19 महीनों में ज्दायातर वक्त बुजुर्गों के साथ बिताया है, सहपाठियों के साथ नहीं। जो लड़की कभी 94% लाती थी, उसे बमुश्किल 90% मिल रहे हैं। उसे चिंता है कि डॉक्टर बनने और अगले साल एमबीबीएस की सीट पाने के उसके सपने का क्या होगा।
अगर आप जान-पहचान में पूछेंगे तो कम ही सही, पर बच्चों के गिरते प्रतिशतों की समस्या सुनने मिलेगी। लेकिन याद रखें कि शीर्ष कॉलेज में सीट पाने में बहुत प्रतिस्पर्धा है और होशियार बच्चे से इससे परेशान हो सकते हैं।
मैं महीनों से पढ़ रहा हूं कि कैसे शिक्षाविद् चेतावनी दे रहे हैं कि महामारी और स्कूल बंद रहने का बच्चों की अकादमिक प्रगति पर बुरा असर होगा। लेकिन उनके पास कक्षाओं में लौट रहे बच्चों के लिए जरूरी रणनीतियां नहीं हैं। जब शहरी बच्चों को ऐसी समस्याएं हो रही हैं तो अंदाजा लगा सकते हैं कि ग्रामीण बच्चों का क्या हाल होगा, जो डिजिटल बंटवारे से प्रभावित हैं! कई के पास मोबाइल-कम्प्यूटर नहीं हैं। स्थानीय लोगों और शिक्षकों ने मदद भी की तो वह बिजली और इंटरनेट नेटवर्क की कमी के कारण बेकार हो गई। छात्रों का रोज का शेड्यूल बहुत बदल गया है और महामारी से पहले के दौर की तुलना में पढ़ाई पर ध्यान कम हुआ है।
लॉस एंजेलिस में शनिवार को जारी हुआ अपनी तरह का पहला सर्वे बताता है कि वहां करीब 2 लाख बच्चों को गणित और अंग्रेजी में पहले जैसे ग्रेड नहीं मिल रहे और उनके अंकों में बहुत गिरावट आई है।
इसलिए अगर स्कूल खुलने पर आपके बच्चे के कम अंक आ रहे हैं तो उसके टाइमटेबल पर काम करें। 2022 में होने वाली 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं में अभी पांच महीने हैं। मैं यकीन दिलाता हूं कि आप मजबूती से साथ देंगे तो वे वापसी करेंगे।
फंडा यह है कि अगर चाहते हैं कि बच्चों के ग्रेड महामारी से पहले के स्तर पर पहुंचें तो स्कूलों और माता-पिता को मिलकर एक बड़ा शैक्षणिक रिकवरी कार्यक्रम बनाना होगा।

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