दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
बाहरी खूबसूरती ठीक है, लेकिन अंदरूनी बुद्धिमत्ता जरूरी है


July 8, 2021
बाहरी खूबसूरती ठीक है, लेकिन अंदरूनी बुद्धिमत्ता जरूरी है
मैं 32 साल पहले बॉम्बे वीटी (अब मुबंई सीएसटी) स्टेशन पर एक स्पेशल ट्रेन के थ्री-टिअर नॉन एयर कंडीशंड बोगी में चढ़ा, जिसपर पर ‘प्रेस’ लिखा था। सभी बर्थ पर नोटबुक, रुमाल या बैग रखा था, जिसका मतलब था कि ये भरी हुईं हैं। बर्थ संख्या 39 और 40 खाली थी, मैं यहां बैठ गया। अचानक मेरे पीछे शोरगुल हुआ और बहुत से लोग एक साथ डिब्बे में चढ़ने लगे। मैं सोच रहा था कि वे सभी ट्रेन शुरू होने के बाद एक साथ क्यों चढ़ रहे थे। तभी मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रखा और मेरे बगल में बैठने की अनुमति मांगी। मैंने सोचा कि कोई साथी पत्रकार होगा और बिना सिर उठाए मैंने सीट की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘जनाब आप ही की है।’ वे ‘शुक्रिया’ कहकर एक महिला के साथ हमारे बीच बैठ गए। इत्र की तेज खुशबू ने मुझे नजरें उठाने पर मजबूर कर दिया। ओहो… वह मुस्कुराती हुई महिला खुद सायरा बानो थीं और मेरे कंधे पर हाथ रखने वाले व्यक्ति थे मोहम्मद युसुफ खान उर्फ दिलीप कुमार।
हम सभी नेशनल एसोसिएशन फॉर ब्लाइंड द्वारा प्रयोजित घुड़दौड़ (डर्बी) में शामिल होने पुणे जा रहे थे। इससे इकट्ठा होने वाला पैसा दृष्टिहीनों पर खर्च होता। वह शोरगुल आखिरी समय में अभिनेता के ट्रेन में चढ़ने के कारण था।
नॉन-स्टॉप ट्रेन ने गति पकड़ी। उसी गति से दिलीप साहब पर सवालों की बौछार होने लगी। लेकिन वे एक-एक कर, काफी धीरे-धीरे जवाब दे रहे थे। ऊर्दू के ज़ायके के साथ हिन्दी बोलते हुए वे शब्दों पर बहुत ध्यान दे रहे थे। जब उन्हें सही शब्द नहीं सूझता, वे रुककर हाथों को यूं घुमाते जैसे कोई बड़ा नल खोल रहे हों और अचानक वह लफ़्ज़ उनके मुंह से फूट पड़ता, जिसे वे खोज रहे थे। जब उन्हें वह उपयुक्त शब्द मिल जाता, तो उनके चेहरे पर संतोष दिखता। यही हावभाव इस साक्षात्कार की खूबसूरती थे। वे जो भी वाक्य बोलते वो उनका एक गुण दिखाता कि वे कितने ज़हीन व्यक्ति थे। उनका धैर्य और परिपक्वता उनके विचारों में भी झलकती थी, जिससे विभिन्न विषयों पर बेहतर दृष्टिकोण मिलता था।
इसके विपरीत जब पत्रकार सवाल पूछ रहे थे तो उनके चेहरे पर नाराजगी दिख रही थी, जिसे वे नियंत्रित कर रहे थे। ट्रेन अचानक 1.6 किमी लंबी सुरंग, ‘दिवा सुरंग’ में घुसी। यह कोंकण रेलवे के बनने तक सबसे लंबी सुरंग थी। अचानक अंधेरा हो गया। दिलीप साहब ने इसका फायदा उठाते हुए सायरा बानो के कान में कहा, ‘भाषा में तो फूल झरने चाहिए.. लेकिन ये ऐसे बोल रहे हैं जैसे ज़बान से झाड़ू बरस रही हो।’ जैसे ही ट्रेन सुरंग से बाहर आई सायरा बानो को अहसास हुआ कि मैंने भी यह बात सुन ली थी। उन्होंने तुरंत कहा, ‘इन्होंने तो रफी साहब को भी इनके लिए पहला गाना गाने से पहले चेता दिया था कि उन्हें उर्दू के शब्दों के सही उच्चारण के लिए पंजाबी लहज़ा छोड़ने में बहुत मेहनत करनी होगी।’ यह एक छोटी-सी घटना है जो उनके पर्फेक्शनिस्ट तरीकों के बारे में बताती है।
बॉलीवुड के इस सुपरस्टार का 98 वर्ष की उम्र में बुधवार को मुंबई में देहांत हो गया। लेकिन मेरे लिए फिल्म इंडस्ट्री ने एक पर्फेक्शनिस्ट खो दिया।
फंडा यह है कि दूसरों को आकर्षित करने के लिए बाहरी खूबसूरती जरूरी है, लेकिन अंदर से बुद्धिमान होना ही आपको संपूर्ण व्यक्ति बनाता है।

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