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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

यह हमारे लिए ‘तूफानी’ चेतावनी है

यह हमारे लिए ‘तूफानी’ चेतावनी है
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Oct 30, 2021

यह हमारे लिए ‘तूफानी’ चेतावनी है


हर साल हमें सामान्य से कम बारिश की चिंता होती है और मानसून की गति बढ़ने से यह डर कम होता जाता है। लेकिन आजकल अच्छे मानसून के बाद अतिरिक्त बारिश हो जाती है, जिससे बाढ़ आती है और खेती-किसानी जोखिम में पड़ जाती है।


इस साल अक्टूबर में, जब बारिश जाने का वक्त था, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई इलाकों में बाढ़ आई, जिससे लोग विस्थापित हुए, घर बह गए और फसलों को भी भारी नुकसान पहुंचा। उत्तराखंड को चावल उत्पादन में गिरावट से 30 करोड़ रुपए के नुकसान की आशंका है। कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ महीनों में करीब 10,336 हेक्टेयर कृषि भूमि बारिश में बह गई और करीब 500 हेक्टेयर में ऊपरी सतह गाद में बदल गई है। वैश्विक स्तर पर, पिछले साल 3 करोड़ लोग मौसम संबंधी विपदाओं से विस्थापित हुए, जो हिंसा तथा संघर्ष के ऐसे असर की तुलना में तीन गुना 

ज्यादा है। हमारे सामने महत्वपूर्ण वैश्विक खतरा है।


जलवायु परिवर्तन भविष्य की समस्या नहीं रह गई। यह अभी की समस्या है। यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी जी20 और सीओपी26 की बैठकों में शामिल होने के लिए इटली तथा यूके जाने से पहले बुधवार को कहा कि वे जलवायु परिवर्तन का मुद्दा जरूर उठाएंगे। सिर्फ विश्व नेताओं को ही नहीं, मेरे-आप जैसे आम लोगों को भी अहसास हो रहा है कि कुछ करने के लिए वक्त कम बचा है।


सीओपी26 से पहले आई यूएन की रिपोर्ट कहती है कि अगर तमाम देश जलवायु परिवर्तन रोकने की दिशा में कदम (क्लाइमेट प्लेज) नहीं उठाएंगे तो दुनिया को 2.7 डिग्री तक तापमान बढ़ने के विनाशक नतीजे भुगतने पड़ेंगे। यूएन के सेक्रेटरी जनरल एंटोनियो गुटेरस ने इन नतीजों को ‘तूफानी चेतावनी’ कहा है। हालांकि 100 देशों ने 2050 के आसपास शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने का वादा किया है, लेकिन यह जलवायु आपदा रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिए हमारे पास सिर्फ आठ साल हैं। इसे 10, 20, 30 वर्षों तक टाल नहीं सकते। इन 8 वर्षों में हमें वैश्विक व राष्ट्रीय नीतियां बनाकर लागू करनी होंगी।


अगर हम जलवायु संकट कम करना चाहते हैं तो हमें दुनिया फिर बनानी होगी। वैश्विक गर्मी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने, जिसे वैज्ञानिक ‘कई व्यवस्थाओं के पतन’ की सीमा कहते हैं, का मतलब है कि हमें खाद्य उत्पादन, भूमि प्रबंधन, ऊर्जा उद्योंगों, यातायात, अंतरराष्ट्रीय व्यापार की व्यवस्थाओं और खपत की अपनी संस्कृति बदलनी होंगी। खुशकिस्मती से, विभिन्न जलवायु समाधान व्यक्ति से लेकर सरकार के स्तर पर सामूहिक कदम उठाने के कई विकल्प देते हैं। जब तक सरकार कदम उठाती है, हम व्यक्तिगत स्तर के इन दो कार्यों की शपथ लें।


भोजन की बर्बादी कम करें: कम भोजन खरीदने और ज्यादा खरीदारी न करने से शुरुआत करें। ऐसी सब्जियां खरीदें जिन्हें फ्रिज में जमा सकें। घर पहुंचकर उन्हें काटकर जमा दें। अतिरिक्त लाभ: भोजन बनाने में समय बचेगा।


ज्यादा पौधों वाली डाइट: ज्यादातर पौधों पर आधारित डाइट लें और धीरे-धीरे मांसाहार कम करें। साथ ही बीन्स, नट्स और साबुत अनाज जैसी प्रोटीनयुक्त चीजें बढ़ाएं। मांस खाते हैं तो उसे मुख्य भोजन न बनाएं, बल्कि साइड डिश में रखें। अतिरिक्त लाभ: सेहत में भी बहुत सुधार होगा।


फंडा यह है कि, हमारे बच्चे हमसे संपत्तियां या बैंक बैलेंस नहीं चाहते, वे एक रहने लायक भविष्य और किसी भी संभावित आपदा के लिए जागरूकता पाना चाहते हैं। क्या आप तैयार हैं?

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