दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
यह हैंड-सैनिटाइजर मैनेजमेंट का समय है
July 9, 2021
यह हैंड-सैनिटाइजर मैनेजमेंट का समय है
बुधवार को कर्नाटक के अग्रिम अधिनिर्णय अपीलीय प्राधिकरण ने आदेश दिया कि अल्कोहल आधारित सैनिटाइजर पर 18% जीएसटी ही देना होगा क्योंकि उसमें डिसइंफेक्टेंट के गुण हैं और उसे दवा की श्रेणी में नहीं रख सकते। फिर भी हमारे आसापास सैनिटाइजर का उपयोग बढ़ रहा है।
न केवल रेस्त्रां बल्कि हार्डवेयर की दुकानों से आर्ट गैलरी तक, जहां आप कुछ छू नहीं सकते, हर जगह सैनिटाइजर डिस्पेंसर लगे हैं। यह महामारी के बाद से हमारी जिंदगी का स्थायी हिस्सा हो गया है। यह 2020 में तेजी से बिकने लगा और स्थानीय डिस्टिलरी भी इसकी अस्थायी उत्पादक बनकर लाखों कमाने लगीं।
अब मांग कम हुई है फिर भी न केवल हाउसिंग सोसायटी के मेन गेट पर, बल्कि हर घर में इसे देख सकते हैं। यह स्पष्ट संकेत है कि महामारी के दौरान लगी कुछ आदतें, इसका डर कम होने के बाद भी बनी रहेंगी। लेकिन जब मैं अपनी डर्मेटोलॉजिस्ट दोस्त से मिलने पहुंचा तो देखा कि वहां मरीजों के लिए तो सैनिटाइजर थे, लेकिन वे खुद बार-बार वॉशबेसिन में साबुन से हाथ धो रही थीं। मैंने उन्हें एक बार भी सैनिटाइजर इस्तेमाल करते नहीं देखा। हाथ धोकर वे मॉइश्चराइजर लगाती थीं। उन्होंने कहा कि सैनिटाइजर लगभग सभी जगह होना सकारात्मक है लेकिन इसका जोखिम भी है, इसलिए जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
सैनिटाइजर का फायदा है इस्तेमाल में आसानी और वायरस तथा बैक्टीरिया मारने में असरदार होना। ज्यादातर सैनिटाइजर अल्कोहल बेस्ड हैं, जिसमें संपर्क में आने वाले किसी भी बैक्टीरिया के प्रोटीन तोड़ने की क्षमता है। दो आम अल्कोहल, एथेनॉल और आइसोप्रोपेनॉल काफी हद तक सुरक्षित हैं, लेकिन मेथनॉल नहीं। फिर भी हमें सैनिटाइजर खरीदने पर उसके कंटेंट देखना नहीं सिखाया जाता, जैसे दवाई खरीदते समय करते हैं। हम इसे वैसे ही खरीदते हैं, जैसे पानी के लिए कहते हैं ‘एक बिसलेरी देना’ और दुकानदार कोई भी बोतल दे देता है।
अल्कोहल के कुछ संभावित नुकसान हैं। किसी भी डर्मेटोलॉजिस्ट से पूछिए, वे आपको बताएंगे कि अल्कोहल की ज्यादा मात्रा त्वचा की बाहरी परत को नुकसान पहुंचाती है। त्वचा शरीर की रक्षा करने वाली ईंट की दीवार जैसी है लेकिन अल्कोहल का ज्यादा इस्तेमाल इसमें छेद करता है। यह बुरे बैक्टीरिया हटा देता है लेकिन अच्छे बैक्टीरिया और वायरस भी खत्म कर देता है। इसीलिए कुछ लोगों को सैनिटाइजर के इस्तेमाल के बाद खुजली और त्वचा फटने की शिकायत होती है। कुछ विशेषज्ञों को लगता है कि सैनिटाइजर माइक्रोबायोम को प्रभावित कर सकते हैं, जो हमारी त्वचा पर रहने वाले अहानिकर सूक्ष्मजीवों का पारिस्थितिकी तंत्र है। हालांकि, इस विषय पर वैश्विक रूप से कम शोध हुआ है, लेकिन गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट (पेट तथा आंत वाले हिस्से) समेत अन्य अंगों को देखकर पता चला है कि अच्छे बैक्टीरिया बचाने की जरूरत है।
हममें से कितने लोग ऐसे हैं जो हाथ धोने के लिए बाथरूम होने के बावजूद घर आकर सैनिटाइजर इस्तेमाल करते हैं। स्टोर हाथ धोने के लिए पानी-साबुन तो नहीं दे सकते, तो इसका क्या समाधान है? स्वाभाविक है कि ऐसी स्थिति में सैनिटाइजर ही विकल्प है। लेकिन यह साबुन-पानी से कमजोर है क्योंकि यह ऐसी धूल और कण नहीं हटा पाता, जो आंखों से नहीं दिखते।
फंडा यह है कि सैनिटाइजर साबुन-पानी की जगह नहीं ले सकता है, यह बस इनका विकल्प है इसलिए घर और एयरपोर्ट तथा स्टेशन जैसी जगहों पर, जहां वॉशबेसिन वाले बाथरूम उपलब्ध हैं, सैनिटाइजर का इस्तेमाल कम से कम करें।