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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

रूलबुक दिखाने वाले लोग जरूरी ‘ब्रेक’ की तरह हैं

रूलबुक दिखाने वाले लोग जरूरी ‘ब्रेक’ की तरह हैं
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June 20, 2021

रूलबुक दिखाने वाले लोग जरूरी ‘ब्रेक’ की तरह हैं


अगर आप किसी से पूछेंगे कि गाड़ी में ब्रेक क्यों होते हैं, तो वे कहेंगे ‘रोकने के लिए।’ लेकिन जवाब गलत है। क्योंकि गाड़ी में ब्रेक आपको तेजी से ड्राइव करने का आत्मविश्वास देते हैं इसलिए सही जवाब है ‘स्पीड बढ़ाने के लिए।’ आपको अब भी यकीन न हो तो बिना ब्रेक के गाड़ी चलाकर देखिए। फिर देखते हैं, आप कितनी स्पीड से चलाते हैं।


मुझे यह तार्किक सोच तब याद आई जब मुंबई की चौंकाने वाली खबर सुनी। जिस शहर को जागरूक नागरिकों और उच्च जीवनस्तर के लिए जाना जाता है, उसे जबरदस्त धोखा खाना पड़ा। जी हां, हीरानंदानी कॉम्प्लैक्स जैसी पॉश कॉलोनी के सैकड़ों लोग नकली कोविड-19 टीकाकरण ड्राइव का शिकार हो गए। वे सिर्फ पैसे से नहीं लुटे, जो कि छोटी-मोटी रकम नहीं, बल्कि पांच लाख रुपए थे, बल्कि उन्हें एक स्कूल ड्रॉपआउट ने ठग लिया और विडंबना यह है कि पुलिस और डॉक्टर समेत कोई नहीं जानता कि उनके टीके में क्या था। यह दु:खद है। हम दुआ करते हैं कि वह साधारण सलाइन का पानी हो, कोई नुकसानदेह तत्व नहीं। इस फर्जी टीकाकरण कैंप का मास्टरमाइंड महेंद्र सिंह (39) एक दशक तक मेडीकल एसोसिएशन में क्लर्क रहा था। उसे शुक्रवार को मुंबई पुलिस ने उसके तीन सहयोगियों संग गिरफ्तार किया। इस स्कूल ड्रॉपआउट ने एसोसिएशन में रहते हुए सभी मेडीकल प्रेक्टिस सीख लीं और इस हाई-प्रोफाइल सोसायटी के लोगों के सामने ऐसा ताम-झाम बनाया कि वे शायद शानदार व्यवस्था से प्रभावित हो गए। दु:खद यह है कि किसी ने सबसे आधारभूत चीज, टीका और उनकी प्रमाणिकता नहीं जांची।

आपको नहीं लगता कि यह संभव है कि नियमों की किताब (रूलबुक) से चलने वाले किसी सदस्य, जिसे प्रबंधन समिति परेशान करने वाला मानती होगी, ने कैम्प पर सवाल उठाए होंगे? हो सकता है। उन्होंने आयोजक से हस्ताक्षर वाले दस्तावेज मांगे होंगे, लेकिन उन्हें झिड़क दिया होगा। यकीन मानिए जांच में जल्द ऐसी दिलचस्प कहानियां निकलेंगी। लेकिन कई लोग फैसले लेते समय रूलबुक के ‘कीड़ों’ को नजरअंदाज करते हैं। मैंने उन्हें सकारात्मक रूप में कीड़ा कहा है क्योंकि वे न सिर्फ नियम पढ़ते हैं, बल्कि उसे कीड़े की तरह चाट जाते हैं और गलती होने पर हमेशा मदद के लिए तैयार रहते हैं। इसलिए वे हर उस कोऑपरेटिव सोसायटी के लिए ब्रेक की तरह हैं, जो जल्दबाजी में रहती है।


मैं रूलबुक में यकीन रखने वाले कई लोगों को जानता हूं और उनमें एक हैं माधव गोठोस्कर। जब 1973 में वे बतौर अंपायर कानपुर में अपने पहले टेस्ट मैच में खड़े थे, उन्हें इंग्लैंड के कप्तान टोनी लुईस ने सब्सटीट्यूशन नियम को लेकर चुनौती दी। उन्होंने तुरंत ही टोनी को नियम सुना दिया। टोनी मान गए कि बहस का कोई फायदा नहीं है।

आज 92 वर्ष की उम्र में गोठोस्कर वैसे ही हैं और क्रिकेट से जुड़ा सिर्फ एक सबस्टीट्यूट नियम नहीं, बल्कि पूरे 42 नियम और 300 उपनियम सुनाने तैयार हैं। इस बुधवार जब पुणे में क्रिकेटरों के एक फाउंडेशन ने उनका सम्मान किया तो उन्होंने 1973 की घटना सुनाई। अपने 11 वर्ष के कॅरिअर में गोठोस्कर ने विभिन्न बल्लेबाजों के 23 टेस्ट शतक देखे। आज भी उन्हें न सिर्फ शतक बनाने वाले हर बल्लेबाज का नाम याद है, बल्कि कई मामलों में एक-एक ओवर की जानकारी है।


फंडा यह है कि आसपास हमेशा ऐसे लोग रखें जो आपको रूलबुक दिखाते रहें क्योंकि वे आपकी प्रगति में ब्रेक नहीं लगाते, बल्कि तेज गति से जाने में मदद करते हैं।

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