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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

सिर्फ कर्म ही इंसान को आगे बढ़ा सकता है

सिर्फ कर्म ही इंसान को आगे बढ़ा सकता है
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March 15, 2021

सिर्फ कर्म ही इंसान को आगे बढ़ा सकता है


मुझे मिलने वाले ज्यादातर मेल में ऐसी ही बातें होती हैं: 1. ‘मैं सिर्फ 23 साल का हूं और मोटा होना मेरी बड़ी समस्या है। 2. पढ़ाई में मन नहीं लगता, प्रतिस्पर्धा से डर लगता है। 3. मैं अकेला हूं, लगता है कोई मुझसे प्यार नहीं करता। 4. मुझे अवसाद महसूस होता है, क्या करूं?’ और ज्यादातर को मेरा जवाब होता है कि ‘पहले अपने बारे में अच्छा महसूस करें, फिर सब ठीक होने लगेगा।’

इससे पहले कि आप मुझसे पूछें कि ‘खुद के बारे में अच्छा कैसे महसूस करें?’ मैं आपको पिछले हफ्ते मैसूर में घटी एक घटना बताता हूं।


शोभा प्रकाश जैसी एक पीटी टीचर अपनी जिंदगी में कौन-सा अच्छा अहसास जोड़ सकती है? अक्सर एक पीटी टीचर के डेली स्कूल शेड्यूल में कुछ भी नया नहीं होता। लेकिन शोभा की जिंदगी में पिछले मंगलवार कुछ उत्साहजनक हुआ। वे स्कूल बस पकड़ने बस स्टैंड पर पहुंची ही थीं। अचानक उन्हें 35 वर्षीय आदिवासी महिला मल्लिका की चीख सुनाई दी, जो चार वर्षीय बेटे और दो वर्षीय बेटी के साथ पास ही एक पार्क में जा रही थी। वह गर्भवती थी और उसे प्रसव पीड़ा होने लगी थी। कुछ राहगीरों और दुकानदारों ने एम्बुलेंस और सरकारी अस्पतालों को फोन किया और महिलाओं से मदद की अपील की। कोई आने तैयार नहीं हुआ तो शोभा ने मदद का फैसला लिया। उन्हें नहीं पता था कि डिलीवरी कैसे करवाते हैं।


लेकिन वहीं मौजूद युवा कार्तिक ने मुंबई के एक डॉक्टर का संपर्क शोभा से करवाया और डॉक्टर ने फोन पर उन्हें प्रकिया बताई। डॉक्टर के निर्देशों का पालन करते हुए शोभा ने सफलतापूर्वक बच्चा निकाल लिया लेकिन उन्हें गर्भनाल काटना नहीं आता था। खुशकिस्मती से तब तक एम्बुलेंस आ गई और मेडिकल स्टाफ ने मदद की। शोभा ने हाथ धोए और मल्लिका को गर्म पानी दिया, जो वे अपने साथ स्कूल ले जाती थीं। जब मल्लिका को अस्पताल ले जा रहे थे, तब शोभा ने उसके परिवार को फोन पर जानकारी दी। शोभा बाद में मां और बच्चे से अस्पताल मिलने गईं और नवजात को 2000 रुपए दिए। जिला प्राइमरी स्कूल शिक्षक संघ ने भी मदद की। बताया जा रहा है कि मल्लिका का चार महीने पहले पति से झगड़ा हुआ था और तब उसने घर छोड़ दिया था। अब वह वापस घर जाने का सोच रही है।


अब सवाल यह है कि हमें रिवॉर्ड (नतीजा) के लिए काम करना चाहिए या अवार्ड (पुरस्कार) के लिए? हमें किससे संतोष मिलेगा? किसपर ध्यान देना चाहिए? जवाब बहुत आसान है। आप जो भी करते हैं, जब उसमें कार्य की पवित्रता पर ध्यान देते हैं, तो आप तक जो भी पहुंचना चाहिए, वह आपकी जिंदगी में स्वाभाविक नतीजों के रूप में स्वत: आता जाएगा। कर्म ही एकमात्र निवारण है। कर्म ही प्रगति का इकलौता रास्ता है। इंसान की जिंदगी को कुछ भी वैसे विकसित नहीं कर सकता है, जैसे कर्म करता है। कर्म ही पूजा का पहला स्वरूप होना चाहिए। लक्ष्य हासिल कर आपने क्या पाया, इसकी तुलना में यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि लक्ष्य हासिल कर आप क्या बने। रिवॉर्ड या अवार्ड जरूरी नहीं है। ये तो उस इंसान के लिए महज प्रतिफल हैं, जो कर्म के जरिए खुद को पाता है और जीवन का उद्देश्य खोजता है।


फंडा यह है कि कर्म से खुशी मिलती है, जो आप अपने अंदर महसूस करते हैं। जब आपका कर्म दुनिया के भी काम आता है और वह इसे पहचानती है, तो यही सच्ची सफलता है।

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