दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
हमारी गलतियों को पब्लिक नहीं भूलती


July 29, 2021
हमारी गलतियों को पब्लिक नहीं भूलती!
हम अक्सर सुनते हैं, ‘पब्लिक को कहां याद रहता है!’ लेकिन उनसे पूछिए जिन्होंने कभी जाने-अनजाने छोटी-सी गलती की हो, जब वे नादान थे। वे बताएंगे कि गलतियां पीढ़ियों तक जनता की जानकारी में रहती हैं और मानसिक दर्द देती रहती हैं। जनता अच्छे काम भूल सकती है, लेकिन गलतियां किसी न किसी तरह याद रहती हैं। वे भूलें भी तो गूगल व अन्य प्लेटफॉर्म एक क्लिक पर याद ताजा कर देते हैं। आपको उदाहरण चाहिए? ये रहा।
आशुतोष कौशिक ने 2008 में रियलिटी शो बिग बॉस और एमटीवी रोडीज 5.0 जीता था। वे पिछले हफ्ते एक याचिका लेकर दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे, जिसमें ‘राइट टू फॉरगॉटन’ (भुलाये जाने का अधिकार) का हवाला देकर इंटरनेट से उनके वीडियो, फोटोग्राफ और आर्टिकल आदि हटाने कहा गया। उनका मानना है कि ये उनके कॅरिअर और सेहत को प्रभावित कर रहे हैं। अदालत ने गूगल और अन्य प्लेटफॉर्म को जवाब देने के लिए समय दिया है।
आशुतोष की याचिका का संबंध 2009 की उस घटना से है, जब उन्हें मुंबई पुलिस ने शराब पीकर गाड़ी चलाने के मामले में गिरफ्तार किया था। मेट्रोपॉलिटन कोर्ट ने उन्हें एक दिन की जेल और 3100 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी तथा दो साल के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रद्द किया था। आशुतोष पर शराब पीकर गाड़ी चलाने, हेलमेट न पहनने, ड्राइविंग लाइसेंस न रखने और ड्यूटी पर मौजूद पुलिस की बात न मानने के चार्ज लगे थे।
आशुतोष को लगता है कि लोग 12 वर्ष पुराना वीडियो देखकर उनके बारे में राय बना रहे हैं। एक मीडिया इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वीडियोज के कारण काम पाने में संघर्ष करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘मुझे सजा मिल चुकी है। मुझे गलती का अहसास है और मैं अब शराब नहीं पीता। सभी को दूसरा मौका पाने का हक है।’ एक यूट्यूब चैनल चलाने वाले आशुतोष कहते हैं कि इन वीडियो के अब भी मौजूद होने से न सिर्फ कॅरिअर में बाधा आ रही है, बल्कि मानसिक प्रताड़ना भी हो रही है। उनकी मां जहां भी जाती हैं, रिश्तेदार और दोस्त आशुतोष के पुराने वीडियोज और आर्टिकल दिखाते हैं, जिससे उन्हें खुदकुशी के विचार आने लगे हैं।
पर्सनल डेटा प्रोटक्शन बिल इस बारे में क्या कहता है? लोकसभा में 11 दिसंबर 2019 को लाए गए विधेयक का उद्देश्य लोगों के निजी डेटा की सुरक्षा के लिए प्रावधान बनाना था। ‘राइट्स ऑफ डेटा प्रिंसिपल’ शीर्षक के अध्याय पांच की धारा 20 में ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ का जिक्र है। इसके मुताबिक ‘डेटा प्रिंसिपल (व्यक्ति जिससे डेटा संबंधित है) को अधिकार होगा कि वह निजी डेटा के निंरतर प्रकटीकरण को प्रतिबंधित कर सके या रोक सके, लेकिन यह डेटा प्रोटक्शन अथॉरिटी के निर्णायक अधिकारी द्वारा प्राधिकरण के अधीन होगा।’
मौजूदा पीढ़ी के लिए जिंदगी मुश्किल हो गई है। बेशक वे मूल्यों की कद्र करते हैं। लेकिन उनके पास बाइक और इंटरनेट जैसी आधुनिक एसेसरीज हैं और उनकी गलतियों का विस्तार ज्यादा होता है क्योंकि वे कैमरों पर रिकॉर्ड हो जाती हैं। ऐसा नहीं है कि उनकी उम्र में हमने गलतियां नहीं कीं। हमारी गलतियों पर माता-पिता, शिक्षक तथा समाज के कुछ चुनिंदा सदस्य ध्यान देते थे। वे पहले हमें डांटते थे, फिर माफ कर देते थे। लेकिन आधुनिक खिलौने भावनात्मक सहारा नहीं देते, बल्कि बार-बार शर्मिंदा करते हैं। इसलिए युवाओं को अहसास होना चाहिए कि उनकी गलतियां इलेक्ट्रॉनिकली स्टोर हो रही हैं, जो थोड़ी-सी सर्च पर सामने आकर हमेशा डराती रहेंगी।
फंडा यह है कि ‘तारों में उलझी दुनिया’ लोगों को गलतियां नहीं भूलने देती। इसलिए आधुनिक बच्चों को हमेशा सावधान रहना होगा।

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