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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

हमारे पूर्वजों के पास 2021 की बीमारियों की दवा थी

हमारे पूर्वजों के पास 2021 की बीमारियों की दवा थी
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हमारे पूर्वजों के पास 2021 की बीमारियों की दवा थी!


हाल ही मैं यात्रा के दौरान 10 महीने बाद मेरी मुलाकात अपेक्षाकृत सफल बिजनेसमैन से हुई। मैंने पूछा, ‘कैसे हैं सर?’ रूखी मुस्कान के साथ उनके जवाब ने मुझे चौंकाया। ‘पहली बात, मैं जिंदा हूं, दूसरी, मैं अब भी संपन्न हूं और 2020 के बाद यह मेरी पहली यात्रा है।’ मैंने बस यह कहा, ‘चूंकि अब आप सक्रिय हो गए हैं, तो देखें चीजें कैसे बदलेंगी।’ उन्होंने कहा, ‘उम्मीद है ऐसा हो।’


शोधकर्ता कहते हैं कि अगर आप महामारी के कारण भ्रमित, चौकन्ने, अनमने, आनंद सीमित करने वाले, व्याकुल, पस्त मूड वाले हैं और लगता है कि रचनात्मक विचार कम हो रहे हैं, तो इसका संबंध शरीर की निष्क्रियता से हो सकता है। वे कहते हैं कि शरीर की सक्रियता का दिमाग की गतिविधियों और सोच पर सीधा असर होता है। ये रहे आधुनिक समस्याओं को सुलझाने वाले प्राचीन आइडिया।


तनाव घटाने के लिए कोर (कमर, पेट की मांसपेशियां) की मजबूती और अच्छा पॉश्चर: मां और शिक्षकों ने कितना बार हमसे ‘सीधे खड़े रहने’ कहा होगा। अब विज्ञान कहता है कि वे सही थे। वर्षों के मनोवैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि सीधे खड़े रहने का संबंध अच्छा महसूस करने से है। झुककर खड़े होने से दिमाग को संकेत जाता है कि हम थके-हारे हैं।


समस्या सुलझाने के लिए दौड़ना: जब पढ़ने में मेरा मन नहीं लगता था तो मां कहती थी, ‘दौड़कर कुछ (सामान) लेकर आओ’। अब वैज्ञानिक कहते हैं कि दौड़ने से मूड अच्छा होता है और दुनिया देखने का नजरिया बदलता है। हम अतीत में उलझे रहने की बजाय भविष्य पर ध्यान देते हैं। पैरों पर, बाइक, कायक या रोलर स्केट्स पर आगे बढ़ने से हम भविष्य देखने प्रेरित होते हैं, जो कोरोना के बाद और भी महत्वपूर्ण हो गया है।


अकेलापन दूर करने के लिए डांस: कभी सोचा है कि हर मां बच्ची को डांस क्लास क्यों भेजना चाहता थी? विज्ञान अब कहता है कि ताल के अनुसरण से बेहतर महसूस होता है क्योंकि दिमाग अनुमान लगाकर काम करता है कि अब क्या होने वाला है, चूंकि इससे आनंद की भावना संबंधी डोपामाइन रसायन पर असर होता है। साथ ही मजबूत संबंध बनाने की क्षमता बढ़ती है, जो हर लड़की को मातृत्व की उम्र में जरूरी होती है।


जलन-सूजन कम करने के लिए स्ट्रेचिंग: आपको बोरियत भरी पीटी क्लास याद हैं जिनमें ‘सावधान-‌विश्राम’ कहते थे? अब विज्ञान कहता है कि तनाव दिमाग पर असर डालकर इंफ्लेमेशन (जलन-सूजन) बढ़ाता है। लेकिन योग करने वालों में कम इंफ्लेमेशन दिखता है और तनाव कम होता है।


सुरक्षित याददाश्त के लिए वजन उठाना: ‘मेरा बेटा पहलवान है, कुछ भी उठा लेगा।’ मां की तारीफों में यह जरूर होता था। अब विज्ञान कहता है कि जब हम हडि्डयों पर वजन उठाकर चलते हैं, तो उनके सेल ओस्टियोकैल्सिन हार्मोन रिलीज करते हैं, जो खून से दिमाग में पहुंचता है और हिप्पोकैम्पस की गतिविधि बढ़ाता है, जो याददाश्त के लिए जरूरी हिस्सा है।


आइडिया और रचनात्मकता के लिए वॉकिंग: मेरे पिता बचपन में कहते थे, ‘रिक्शा क्यों बेटा, चलो पैदल चलते हुए हवा खाएं’ तो मैं सोचता था कि वे कंजूस हैं। लेकिन आज ब्रेन स्टिमुलेशन अध्ययन बताते हैं कि चलने से सोचने में मदद मिलती है। खासतौर पर धीमी गति से (हवा खाते हुए) चलना, ताकि दिमाग भी चहल-पहल कर सके।


फंडा यह है कि हमारे माता-पिता और शिक्षक कितने वैज्ञानिक थे। वे अपने कार्यों के पीछे का विज्ञान नहीं बता पाते थे और हम युवा दुर्भाग्य से उन्हें नजरअंदाज कर देते थे।

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