Nov 23, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आइए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात उन दिनों की है जब बच्चे पढ़ाई करने के लिए गुरुकुल में जाया करते थे। उन्हीं दिनों में राधे गुप्त नाम के एक बड़े विद्वान पंडित भी गुरुकुल चलाया करते थे, जो प्राचीन भारत के बड़े प्रसिद्ध गुरुकुलों में से एक था। इस गुरुकुल में बहुत दूर-दूर से बच्चे शिक्षा प्राप्त करने आया करते थे। पत्नी के देहांत के बाद पंडित राधे गुप्त को अपनी इकलौती बिटिया के भविष्य चिंता सताने लगी थी। अपनी ढलती उम्र के करण वे अक्सर सोचा करते थे कि समय रहते मुझे इसके लिए एक योग्य वर चुन लेना चाहिए जिससे इसका भविष्य सुरक्षित हो सके।
बिटिया की शादी के लिए वे ऐसा योग्य व्यक्ति चाहते थे, जिसके पास संपत्ति भले न हो, पर वो बुद्धिमान हो। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने काफ़ी सोच-विचार करने के बाद निर्णय लिया कि वे क्यों ना अपने शिष्यों में ही योग्य वर तलाश करें। विचार आते ही उन्होंने अपने सभी शिष्यों की योग्यता को परखने का निर्णय लिया और एक दिन सभी शिष्यों को मैदान में एकत्र कर कहा, ‘बच्चों मेरी पुत्री विवाह योग्य हो गई है। पर्याप्त धन ना होने के कारण मैं ख़ुद को उसका विवाह करने में असमर्थ पा रहा हूँ और इसलिए चिंता में अपना जीवन व्यतीत कर रहा हूँ। इसलिए मैं चाहता हूँ कि सभी शिष्य विवाह में लगने वाली सामग्री एकत्र करें। भले ही इसके लिए फिर चोरी का रास्ता ही क्यों न चुनना पड़े। लेकिन सभी को एक शर्त का पालन करना होगा कि किसी भी शिष्य को चोरी करते हुए कोई देख न सके।’
अगले दिन से सभी शिष्य गुरु के बताये ‘चोरी से सामान जुटाने’ के अपने काम में जुट गये। हर दिन कोई न कोई शिष्य चुरा-चुरा कर चीजें ला रहा था और गुरुजी उन सभी चीजों को व्यवस्थित तरीके से सुरक्षित रखते जा रहे थे क्योंकि परीक्षा के बाद उन्हें यह सब वस्तुएं उनके असली मालिकों को वापस करना थी। इस परीक्षा का उद्देश्य तो बस बेटी के लिए योग्य वर के रूप में एक शिष्य को पहचानना था। एक और जहाँ सभी शिष्य अपने दिमाग़ से काम कर रहे थे, वहीं गुरुकुल का होनहार माने जाने वाला छात्र रामास्वामी चुपचाप, विचारों में खोया एक वृक्ष के नीचे बैठा था। पंडित राधे गुप्त तुरंत समझ गए कि इसके मन में क्या चल रहा है। उस शाम उन्होंने अपने सभी छात्रों को इकट्ठा किया और उनसे कहा, ‘बच्चों, मुझे लगता है अब हमारे पास आवश्यकतानुसार सारा सामान इकट्ठा हो गया है, इसलिए अब मैं तुमसे सिर्फ़ इतना जानना चाहता हूँ कि चोरी करते समय आपको किसी ने देखा तो नहीं था?’ ‘सभी छात्र एक स्वर में बोले, ‘बिल्कुल नहीं गुरु जी।’ पंडित राधे गुप्त ने बात आगे बढ़ाते हुए रामास्वामी से पूछा, ‘रामास्वामी तुम तो कोई भी वस्तु चुराकर नहीं ला पाये इसकी क्या वजह थी?’ रामास्वामी गुरुजी को प्रणाम करते हुए बोला, ‘गुरुजी, मैंने प्रयास तो बहुत किया लेकिन हर बार मैंने पाया कि मैं आपकी शर्त पर खरा नहीं उतर पा रहा हूँ क्योंकि मैं जब भी चोरी करने गया मैंने महसूस किया कि मेरी अंतरात्मा सब देख रही है। मैंने लाख प्रयास किया लेकिन मैं उस चोरी को अपनी अंतरात्मा या ख़ुद से छुपा नहीं सका। इसलिए मुझे चोरी करना व्यर्थ लगा।’
रामास्वामी की बात सुनते ही गुरु जी का चेहरा खिल गया और उन्होंने बाक़ी बच्चों से कहा, ‘याद रखना मेरे प्यारे बच्चों तुम्हारा अंतर्मन और अंतरात्मा तुम्हारी हर क्रिया का साक्षी है। उससे बच पाना असंभव है इसलिए सिर्फ वही कर्म करो जिसके करने के पश्चात ग्लानि ना हो। अब आगे बताने की जरूरत नहीं है दोस्तों, कि राधे गुप्त को उनकी बेटी के लिए योग्य वर मिल गया था और उन्होंने चुराई गई वस्तुएं उनके मालिकों तक सकुशल वापस पहुँचा दी होंगी।
दोस्तों, यकीन मानियेगा आपके अपने अंतर्मन से कुछ भी छुपा नहीं है। वह आपके जीवन का पूर्ण साक्षी है इसीलिए वह आपको हमेशा सही रास्ता दिखाने का प्रयास करता है। ऐसे में जब आप ख़ुद से यानी अपनी अंतरात्मा या अंतर्मन से; आप उससे दूर होना शुरू कर देते हो तो जीवन में भटकना शुरू कर देते हो। इसलिए दोस्तों कहा जाता है कि मनुष्य को किसी भी कार्य को करने से पूर्व अपने अंतर्मन को टटोलना चाहिए क्योंकि अंतर्मन ही सत्य के अनुसार आपको सही रास्ता दिखाता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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