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अंतिम सत्य को याद कर सुधारें अपना जीवन…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

June 20, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत संत एकनाथ जी की एक प्रचलित कथा से करते हैं। एक दिन एक वृद्ध सज्जन संत एकनाथ जी के पास पहुँचे और उनसे प्रश्न करते हुए बोले, ‘महाराज जी, आप भी गृहस्थ, मैं भी गृहस्थ। आप भी बच्चों वाले, मैं भी बच्चों वाला। आप भी सफ़ेद कपड़ों वाले, मैं भी सफ़ेद कपड़ों वाला। लेकिन लोग आपको पूजते हैं; समाज में आपकी प्रतिष्ठा है; आप निश्चिंत हो, ख़ुशी के साथ जीवन जीते हैं और मैं इतना परेशान; क्यों? आप इतने महान और मैं इतना तुच्छ; आख़िर क्यों?’ प्रश्न को सुन संत एकनाथ जी को लगा कि सैद्धांतिक उपदेश से इसे समझाना मुश्किल है, इसलिए अनुभव कराना बेहतर होगा। विचार आते ही संत एकनाथ जी बोले, ‘तू तो सात दिन में मरने वाला है। अब पूछने से क्या फ़ायदा? मेरे बताने से भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा?’


संत एकनाथ जी की बात सुन वह वृद्ध एकदम सन्न रह गया। उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। उसने संत एकनाथ जी को प्रणाम किया और अपनी दुकान सँभालने पहुँच गया। आज उसका व्यापार में बिलकुल भी मन नहीं लग रहा था क्योंकि उसके दिमाग़ में संत एकनाथ जी के शब्द गूंज रहे थे, ‘सात दिन में मौत है तेरी…’। उसका धन कमाने का लोभ बिलकुल ख़त्म हो गया था। जो पैसे की हाय-हाय थी, वह अब शांत थी। अब वह प्रारब्ध पर विश्वास कर रहा था। इसी कारण आज उसने किसी पर ग़ुस्सा नहीं किया, सबसे बिना चिढ़े, प्रेम से बात करी और शाम को घर जाते समय दारू भी नहीं पी। घर पर भी उसने बिना नाज, नखरे के जो बना था, वह खा लिया। अब वह सबसे अच्छा व्यवहार कर रहा था।


तीन दिन बीतने के बाद उसे याद आया कि अब उसके पास चार ही दिन बचे हैं। उसने अब बहू पर क्रोध करना और अपने बच्चों को नालायक कहना छोड़ दिया था। अब वे उन्हें जैसे वे हैं, वैसे ही प्रेम पूर्वक स्वीकार चुका था। इसी तरह चौथा और पाँचवाँ दिन भी बीत गया। अब उसे दो दिन बाद मौत नज़र आ रही थी। इसलिए वह सभी परिजनों के अवगुण भूल गया था। उसे समझ आ गया था कि संसार में ऐसा ही होता है, उसकी सोच भी बदल चुकी थी। अब उसके मन में कृतज्ञता का भाव उत्पन्न हो गया था और वह सोच रहा था कि यह मेरा सौभाग्य है कि मेरे अंदर से स्वार्थीपन, ग़द्दारी और नालायकी जैसे विचार ख़त्म हो गए और मैंने आसक्तिपूर्ण जीवन जीना छोड़ दिया। अन्यथा मुझे अगले जन्म में इसी घर में चूहा, चिड़िया या कोई और रूप लेकर आना पड़ता। उसे अब दूसरों के ग़लत व्यवहार से भी फ़र्क़ नहीं पड़ रहा था क्योंकि उसे मालूम था कि दो दिन बाद उसे इस दुनिया से जाना है। इसलिए वह बचे हुए समय को ‘विट्ठल’ को याद करने में लगाना चाहता था। उसने तत्काल विट्ठला… विट्ठला… विट्ठला… का जाप चालू कर दिया। वह संसार की तू-तू, मैं-मैं, तेरा-मेरा सब भूल गया था। छठा दिन बीतते-बीतते तक उस वृद्ध में भक्तिभाव, सहज-जीवन, सहनशक्ति, उदारता, प्रेम, विवेक, आदि सब गुण विकसित हो गए थे। ज्यों-ज्यों समय बीत रहा था, त्यों-त्यों वृद्ध बेहतर इंसान बनता जा रहा था। यह बदलाव देख परिवार के साथ सभी कुटुंबी दंग थे। वे सोच रहे थे, जिसके मरने के लिये हम रोज़ मनौतियाँ माँगते थे और सोचते थे कि जल्द से जल्द हमारी जान छूट जाए, वह बूढ़ा इतना परिवर्तित कैसे हो गया?


दूसरी ओर वृद्ध मज़े से विट्ठल भगवान को याद करते हुए गा रहा था, ‘बहुत पसारा मत करो, करो थोड़े की आस। बहुत पसारा जिन किया वे भी गये निराश।। छठे दिन की रात उसकी प्रार्थना में उत्कण्ठा आ गई। वह सोच रहा था कि ‘हे भगवान! मैं क्या करूँ? मेरे कर्म कैसे कटेंगे? साथ ही साथ वह ‘विठोबा… विठोबा… माजा विट्ठला… माजा विट्ठला…’, जाप कर रहा था। उस रात वह रविदास जी की बात याद कर, ‘रविदास रात न सोइये, दिवस न लीजिए स्वाद, निश दिन हरि को सुमरिये छोड़ सकल प्रतिवाद।’, बिलकुल भी नहीं सोया।


सातवें दिन सुबह होते वृद्ध ने सभी परिजनों से माफ़ी माँगी और बताया कि अब मेरे जाने का समय आ गया है। वृद्ध की बात सुनते ही परिजन रोने लगे। वे उन्हें बता रहे थे कि अब वे कितने अच्छे हो गये हैं। लेकिन वृद्ध ने सबकी बात को नज़रंदाज़ करते हुए कहा, ‘आप सब लोग रोना मत। मुझे विठोबा के चिन्तन में मरने देना।’ तभी अचानक ही संत एकनाथ जी वहाँ से गुजरे और वृद्ध को देखते हुए बोले, ‘उस दिन तुमने हम दोनों में फ़र्क़ पूछा था, तब मैंने ‘सात दिन में तुम्हारी मौत होगी’, ऐसा कहा था। इसलिए तुमने अपनी मौत को हर रोज़ अपने पास आते देखा। मौत को क़रीब आता देख इन सात दिनों में तुमने कितनी बार दारू पी? क्रोध या झगड़ा किया?’ वृद्ध तत्काल बोला, ‘एक बार भी नहीं!’ जवाब सुन एकनाथ जी बोले, ‘पहले हम दोनों में बहुत फ़र्क़ था। लेकिन मौत को हर पल अपनी ओर आता देख तुम ईश्वर के क़रीब और संसार से दूर होते गए और सातवाँ दिन आते-आते हमारे बीच का फ़र्क़ भी मिट गया। देखो आज सब तुमसे भी वैसा ही व्यवहार कर रहे हैं, जैसा मेरे साथ करते हैं। इसलिए अब बस इसी बात को याद रखो कि मौत हर पल हमारे नज़दीक आती जा रही है और भगवान का बुलावा कभी भी आ सकता है। यही सत्य है, इसका ध्यान रखना तुम्हें ऐसा ही बनाये रखेगा।’


बात तो दोस्तों संत एकनाथ जी की ज़बरदस्त थी। शायद इसलिए कहा जाता है कि ‘किसी का दिल मत दुखाओ और किसी की हाय मत लो।’ हम सब प्रभु के बनाए हुए जीव हैं। इसलिए हर समय प्रभु के नाम को जपते रहना; उसका सिमरन करते रहना ही बेहतर है। याद रखियेगा जो आपके भाग्य का है, वह खुद चलकर आपके पास आएगा और जो आपके भाग्य का नहीं है, वह छीनकर लाया हुआ भी चला जाएगा।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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