Mar 10, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, इस जीवन को दो तरह के लक्ष्य रख कर जिया जा सकता है। पहला लक्ष्य, इसे अंत की ओर ले जाना हो सकता है और दूसरा आप इसे अनन्त को लक्षित करते हुए जी सकते हैं। अंत याने जो एक बिंदु पर जाकर समाप्त हो जाए और अनन्त याने जो हमेशा के लिए अमर हो जाए। उदाहरण के लिए कबीर, सूरदास, जे॰आर॰डी॰ टाटा, अब्दुल कलाम आदि ने अपने जीवन को अनन्त को लक्षित करते हुए जिया। जबकि इनके समकक्ष लाखों लोग रहे होंगे जिनके बारे में आज हमें कुछ भी याद नहीं है। या यह कहना बेहतर होगा कि इन्होंने ऐसा कुछ किया ही नहीं है जिसकी वजह से हम इन्हें याद रखें।
जी हाँ दोस्तों, कबीर, सूरदास, जे॰आर॰डी॰ टाटा, अब्दुल कलाम जैसे लोगों ने अपने जीवन में कुछ ना कुछ तो ऐसा किया था जो इन्हें इनके समकक्ष दूसरे लोगों से अलग बनाता है। अगर हम जीवन को देखने, उसे जीने के उनके नज़रिए को समझ जाएँ तो हम भी उनके समान अनन्त को लक्षित करते हुए अपने जीवन को जी सकते हैं। चलिए इस विषय को थोड़ी गहराई के साथ समझने के लिए पहले हम जीवन जीने के दोनों तरीक़ों को समझने का प्रयास करते हैं-
पहला तरीक़ा - स्वयं को केंद्र में रखते हुए समाज से लेने या इकट्ठा करने के नज़रिए के साथ जीना
सामान्यतः लोग अपने जीवन को बड़ा और बेहतर बनाने के लक्ष्य से जीते हैं और इसके लिए वे अपने जीवन को उपलब्धियों भरा बनाने का प्रयास करते हैं। जिसकी शुरुआत पहले कक्षा में नम्बर 1 आने और अलग-अलग क्षेत्रों और प्रतियोगिता में विजेता बनने से शुरू होती है और अंत में पद, पैसा और प्रतिष्ठा पर जाकर खत्म होती है। अर्थात् इस तरह के लोग भौतिक संसाधनों को इकट्ठा करना या उनका होना सफलता की निशानी मान, इस जीवन को जीते हैं। इन लोगों में आप ‘मैं’ के भाव को साफ़ तौर पर देख सकते हैं।
दूसरा तरीक़ा - समाज को देने के नज़रिए से जीना
इस तरह के लोगों का भी लक्ष्य खुद के जीवन को बड़ा और बेहतर बनाना होता है। लेकिन यह लोग बहुत अच्छे से जानते हैं कि दूसरों के जीवन, अपने आस-पास के माहौल को बेहतर बनाए बिना, बेहतर जीवन जीने की आशा रखना कोरी कल्पना से अधिक कुछ नहीं है। इसलिए यह लोग हमेशा अपने आस-पास मौजूद लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रयासरत रहते हैं। ऐसे लोग आत्म संतुष्टि के साथ लोगों के जीवन को बेहतर बनाते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं। जीवन जीने का यही तरीक़ा इन लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है और यह लोग दूसरों के दिलों में अपना स्थान बनाते हुए अपने जीवन में मान-सम्मान अर्जित करते हुए आगे बढ़ते है।
दोस्तों, अगर आप उपरोक्त दोनों जीवन जीने के तरीक़ों की तुलना करेंगे तो आप पाएँगे कि जो लोग दूसरों के जीवन को बेहतर बनाते हुए आगे बढ़ते हैं वे अपने जीवन में भौतिक सुविधाओं के साथ आत्मिक शांति भी पाते हैं। इतना ही नहीं, चूँकि इन्होंने सामने वाले के दिल में अपने लिए अलग स्थान बनाया होता है, इसलिए यह उनके जीवन, उनकी यादों, उनके अनुभव का भी हिस्सा बन जाते हैं। एक और जहाँ आपकी भौतिक सम्पत्ति का अंत आपके अंत के साथ ही हो जाता है, वहीं मान-सम्मान आपके बाद भी लोगों के मन में ज़िंदा रहता है। इसीलिए दोस्तों, पद और पैसा ही आपकी सम्पत्ति है तो एक दिन इसका अंत तय है और यदि मान और सम्मान आपकी सम्पत्ति है, तो वह अनंत है!!! अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप अंत चाहते हैं या कबीर, सूरदास, जे॰आर॰डी॰ टाटा, अब्दुल कलाम जैसे अनंत का चुनाव करते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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