Feb 28, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, कई बार रिश्तों को लेकर हम इतनी विचित्र परिस्थितियों में उलझ जाते हैं कि समझ ही नहीं आता है कि चूक कहाँ हो गई? हाल ही में एक ऐसा ही केस काउन्सलिंग के लिए मेरे पास आया जिसमें एक छोटी सी बात पर टीनेजर बच्ची के मन में इतनी खटास आ गई थी कि उसने अपनी माँ से बात करना बंद कर दिया। जब इस विषय में मैंने विस्तार से बच्ची से बात करी तो पता चला कि वह माँ द्वारा बोले गए एक झूठ के कारण परेशान चल रही है। उसका मानना था कि परिस्थितियाँ कैसी भी क्यों ना हों एक माँ अपनी बेटी से झूठ कैसे बोल सकती है? मैंने जब माँ से इस विषय में चर्चा करी तो पता लगा कि किसी अन्य रिश्तेदार की भलाई के लिए उसका ऐसा करना ज़रूरी था। मैंने उस बच्ची को एक कहानी सुनाने का निर्णय लिया, जो इस प्रकार थी-
बात कई साल पुरानी है एक राजा ने चोरी के जुर्म में एक क़ैदी को मौत की सजा सुनाई। सजा सुनते ही क़ैदी अपना आपा खो बैठा और राजा को अनाप-शनाप, भला-बुरा कहने लगा। राजा और क़ैदी, जो कि राज दरबार के दूसरे कोने में खड़ा था, के बीच दूरी बहुत अधिक होने के कारण राजा को क़ैदी की कही नकारात्मक बातें सुनाई नहीं पड़ी। राजा ने तुरंत इस विषय में वरिष्ठ मंत्री से पूछा। मंत्री ने राजा से हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘महाराज, कैदी कह रहा है कि वे लोग कितने अच्छे होते हैं जो अपने क्रोध को पी जाते हैं और दूसरों को क्षमा कर देते हैं।’
मंत्री की बात सुनते ही बादशाह को क़ैदी पर दया आ गयी और उन्होंने उसे माफ़ कर दिया। लेकिन वहाँ मौजूद लोगों में एक दरबारी और था जो मंत्री से चिढ़ता था, उनकी सफलता से जलता था। उसने उसी पल चिल्लाते हुए राजा से कहा, ‘राजन मंत्री महोदय एकदम झूठ बोल रहे हैं। क़ैदी तो आपको गालियाँ देते हुए अनाप-शनाप बोल रहा था। असल में यह माफ़ी का हक़दार नहीं है। दरबारी की बात सुनते ही राजा को ग़ुस्सा आ गया, उन्होंने उस दरबारी को दरबार से बाहर निकाले जाने की सजा सुनाते हुए कहा, ‘मुझे तो मंत्री जी की बात एकदम सही लगी फिर भले ही उन्होंने झूठ बोला हो। मंत्री जी के झूठ में भी किसी के लिए भलाई की भावना छिपी थी और तुम्हारे सच में भी दूसरे के लिए दुर्भावना थी। इसीलिए मैंने तुम्हें दरबार से बेदख़ल किया है।’
कहानी पूरी होते ही मैं कुछ पलों के लिए एकदम शांत हो गया उसके बाद उस बच्ची की आँखों में आँखें डालते हुए बोला, ‘बेटा, वैसे तो तुम काफ़ी समझदार हो। मुझे नहीं लगता कि मुझे तुम्हें कुछ और समझाने की ज़रूरत है। जिस तरह तुम यह चाहती हो कि लोग तुम्हें, तुम्हारे भाव को समझें, ठीक उसी तरह की अपेक्षा तुम्हारे परिवार वाले, तुम्हारी मम्मी तुमसे रखती हैं। तुम्हारी मम्मी ने भी उस मंत्री की ही तरह तुम्हारे ही एक रिश्तेदार की भलाई के लिए, उनकी व्यक्तिगत बातों को दूसरों से साझा करने से बचने के लिए तुमसे झूठ बोला था। अब तुम्हें निर्णय लेना है कि तुम उन्हें इसके लिए माफ़ करना चाहोगी या जो अपराध उन्होंने किया ही नहीं है उसके लिए उन्हें सजा देना चाहोगी।’ इतना कहकर मैंने उस वक्त अपनी बात को विराम दिया और उस बच्ची को खुद के साथ समय बिताने के लिए छोड़ दिया।
वैसे भी दोस्तों, हमें हमेशा अपने व्यवहार, अपनी वाणी, अपने कर्म से दूसरों की भलाई के विषय में ही सोचना चाहिए। इसीलिए शायद कहा गया है वह झूठ भी सत्य के बराबर ही है जो किसी की भलाई या ज़िंदगी बचाने के लिए कहा गया हो।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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