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अच्छे नम्बर लाना, कक्षा में फ़र्स्ट आना ज्ञानी होने की निशानी नहीं…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Mar 19, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

हाल ही में मेरी मुलाक़ात कुछ वरिष्ठ शिक्षकों से हो गई। बातचीत के दौरान वे मुझसे बोले, ‘सर, आपको नहीं लगता हमारी सरकार शिक्षा को लेकर बहुत सारे अनावश्यक प्रयोग कर रही है।’ मेरे ना में सर हिलाते ही वे अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘सर फिर आप ही बताइए इन सब बदलाव से हमें क्या फ़ायदा मिलेगा?’ मैंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘सर, आज की तारीख़ में परीक्षा में मिले प्रतिशत की क़ीमत व्यवहारिक ज्ञान से ज़्यादा हो गई है। शिक्षा ग्रहण करने और देने वाले, दोनों का उद्देश्य परीक्षा में अच्छे अंक लाने तक सीमित हो कर रह गया है। शिक्षा लेते समय आप विषय को कितना समझ पाए, उससे आप अपना और समाज का क्या फ़ायदा कर पाएँगे पर किसी का ध्यान नहीं है। याने जो सीखा है, उसे अपने जीवन में कब और कैसे काम में ले पाएँगे इसपर ना तो शिक्षा लेने वाले का ध्यान है और ना ही देने वाले का। इसलिए मुझे लगता है, इसमें बदलाव की आवश्यकता है। अपनी बात को मैं आपको एक लोक कथा से समझाने का प्रयास करता हूँ।’ इतना कहकर मैंने उन्हें एक लोक कथा सुनाई जो इस प्रकार थी-


बात कई साल पुरानी है। गाँव के बाहरी हिस्से में स्थित एक आश्रम में दो शिष्यों के साथ एक संत रहा करते थे। एक बार संत ने दोनों शिष्यों की परीक्षा लेने का निर्णय लिया और उन्हें अपने पास बुलाया और एक डिब्बा गेहूं देते हुए कहा, ‘वत्स, मैं तीर्थयात्रा के लिए जा रहा हूँ। मुझे वापस लौटने में 1-2 साल लग सकते है। तब तक तुम मेरे इस गेहूं को सुरक्षित रखना, इसे ख़राब मत होने देना। जब मैं वापस आऊँगा तब इसे तुमसे वापस ले लूँगा।’ इतना कहकर संत अपनी यात्रा के लिए चले गए। इसके बाद दोनों शिष्य गेहूं का डिब्बा लेकर अपने-अपने घर चले गए। पहले शिष्य ने डिब्बा घर में बने मंदिर में रख दिया और रोज़ उसकी पूजा करने लगा। वहीं दूसरे शिष्य ने डिब्बे से गेहूं निकाले और उन्हें अपने खेत में बो दिया, जिससे कुछ ही माह में उसे बहुत अच्छी फसल मिली।


ऐसे ही कब दो साल गुजर गए पता ही नहीं चला। एक दिन संत तीर्थ यात्रा पूरी कर वापस आए और उन्होंने दोनों शिष्यों से गेहूं का डिब्बा वापस लाने के लिए कहा। पहले शिष्य ने गेहूं का डिब्बा वापस लाकर देते हुए कहा, ‘गुरुजी, मैंने आपकी अमानत की बहुत अच्छे से देखभाल करी। मैंने इसे अपने घर की पूजा में रखा था और रोज़ भगवान के पूजन के साथ-साथ इसकी भी पूजा किया करता था।’ शिष्य की बात सुन गुरुजी मुस्कुराए और उस डिब्बे को खोल कर देखा तो पता चला उसमें रखे सभी गेहूं ख़राब हो चुके थे और उसमें कीड़े लग गए थे। गेहूँ का हश्र देख शिष्य शर्मिंदा हो गया।


तब तक दूसरा शिष्य भी गेहूं लेकर वापस आ गया। लेकिन उसके पास एक डिब्बा नहीं बल्कि कई बोरे गेहूं था। उसने पूरे गेहूं को गुरुजी को दिया और बोला, ‘गुरुजी, मुझे आपकी सीख याद थी कि अनाज को अधिक दिनों तक ऐसे ही रखा जाए तो वो सड़ जाता है। इसलिए मैंने आपके दिए गेहूं को खेत में बो दिया था। उसी से यह सारा गेहूं पैदा हुआ है।’ गेहूं से भरे थैले देख गुरुजी बहुत खुश हुए और बोले, ‘पुत्र तुम मेरी इस परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। मैंने तुम्हें जो भी ज्ञान दिया था तुमने उसे अपने जीवन में उतार लिया है। इसी वजह से तुम्हें गेहूं को सम्भालने में सफलता मिल गई है।


लोक कथा पूर्ण होने के बाद कुछ पल शांत रहने के बाद मैंने कहा, ‘सर बातों और अंकों को याद रखना ज्ञानी या शिक्षित होने की निशानी नहीं है। यह तो सिर्फ़ आपकी याद रखने की अच्छी क्षमता को दर्शाता है। जब आप किसी बात को याद रखने के साथ-साथ उसे समझ कर अपने जीवन में काम में लाते हैं तब आपको शिक्षित या ज्ञानी कहा जा सकता है।


सही कहा ना दोस्तों? मुझे तो ऐसा ही लगता है कि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर पा रही है। शिक्षा से मिली जानकारी जब तक डब्बे में बंद गेहूं के समान होगी वो किसी काम की नहीं होगी। लेकिन अगर हम उसे अपने आचरण में उतार पाएँ तो ही वह लाभदायक होगी। वैसे इस कहानी से हमें एक और सबक़ मिलता है, अगर आपके पास ज्ञान है तो उसे बाँटो क्योंकि ज्ञान बाँटने से बढ़ता है और अपने पास रखने से इससे कोई लाभ नहीं मिलेगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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2 Comments


Julie Viru Paigwar
Julie Viru Paigwar
Mar 19, 2023

जय श्री कृष्ण

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Julie Viru Paigwar
Julie Viru Paigwar
Mar 19, 2023

जय श्री

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