Mar 9, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आप ज्ञानी हैं; आप समझदार हैं; हो सकता है आप किसी क्षेत्र के विशेषज्ञ भी हों, लेकिन इसका अर्थ यह क़तई नहीं है कि आप हर पल; हर किसी के सामने अपनी विशेषता का बखान करते रहें या यूँ कहूँ हर किसी राह चलते को अपनी राय देते रहें; हर किसी के फटे में टांग फँसाते रहें। जी हाँ साथियों, मेरा मानना है कि बुद्धिमान, विवेकवान या विशेषज्ञ होने की निशानी केवल यह नहीं है कि वह सही समय पर सही बात कहता है। बल्कि बुद्धिमान, विवेकवान और विशेषज्ञ तो वह होता है, जो कहाँ मौन रहना है, यह भी जानता है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात कई साल पुरानी है, एक बार जंगल में गधे ने बाघ से कहा, ‘बाघ भाई, देखो यह नीली घास कितनी अच्छी लग रही है।’ बाघ ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, ‘नहीं! घास तो नीली नहीं, हरी है।’ इतना सुनते ही गधा ग़ुस्सा हो गया। कुछ ही देर में दोनों की सामान्य सी बातचीत ने गर्मी पकड़ी, और अंत में कोई हल ना निकलते देख दोनों ने मामले को जंगल के राजा शेर की अदालत में रखने का निर्णय लिया। राजा याने शेर के समीप पहुँचने से पहले ही गधा ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा, ‘महाराज… महाराज… यह बाघ मुझसे ज़बरदस्ती बहस कर रहा है कि घास नीली नहीं होती। अब आप ही बताइये कि घास नीली होती है या नहीं?’ शेर ने उत्तर दिया, ‘हाँ यह सच है, घास नीली है।’ गधे ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘महाराज, बाघ मुझसे असहमत है। मेरा खंडन करता है और मुझे परेशान भी करता है। कृपया उसे दंडित करें।’ तब जंगल के राजा शेर ने अपना निर्णय सुनाते हुए घोषणा करी कि ‘बाघ को सजा के रूप में पाँच साल की चुप्पी साधना होगी।’ राजा का फ़ैसला सुनते ही गधा ख़ुशी से उछल पड़ा और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा, ‘महाराज की जय हो! महाराज की जय हो! मेरे राजा आप तो महान हैं!’ इसके पश्चात वह संतुष्ट होकर अपने रास्ते पर यह दोहराते हुए चल पड़ा कि ‘घास नीली है, घास नीली है।’
दूसरी और बाघ ने सजा स्वीकारते हुए राजा शेर से प्रश्न किया, ‘महाराज, मैं समझ नहीं पाया कि आपने मुझे दंडित क्यों किया? आखिर घास तो हरी ही होती है।’ शेर एकदम गंभीर स्वर में बोला, ‘हाँ!, घास वास्तव में हरी ही होती है।’ बाघ आश्चर्यचकित होता हुआ बोला, तो फिर आपने मुझे सजा क्यों सुनाई?’ शेर उसी गंभीरता के साथ बोला, ‘सजा का इस सवाल कि ‘घास नीली होती है या हरी’ से कोई लेना देना ही नहीं है। सजा तो मैंने इसलिए दी है क्योंकि आप जैसे बहादुर, बुद्धिमान और विवेकवान प्राणी को यह शोभा नहीं देता कि आप गधे के साथ बहस करने में अपना क़ीमती समय बर्बाद करें और उससे भी ज्यादा आप मुझे भी उस सवाल से परेशान करें; मेरा समय बर्बाद करें।’
बात तो दोस्तों, जंगल के राजा शेर की एकदम दुरुस्त थी। इस दुनिया में समय से ज़्यादा मूल्यवान कुछ और नहीं है। इसलिए समय की बर्बादी सबसे बड़ी और खराब बर्बादी है। इसलिए किसी भी मूर्ख और कट्टर के साथ बहस करना क़तई ज्ञानी, बुद्धिमान और विवेकवान व्यक्ति की निशानी नहीं है। याद रखियेगा, मूर्ख और कट्टर व्यक्ति केवल अपने झूठे विश्वासों और भ्रमों को सच्चा साबित करना चाहते है। दूसरे शब्दों में कहूँ, तो सच और अच्छी बात जानने में उनकी कोई रुचि नहीं होती है। इसलिए ऐसे लोगों को सुझाव देने, चर्चा करने में समय बर्बाद करने से कभी कोई फ़ायदा नहीं होता। वैसे कई बार अहंकार, घृणा और आक्रोश की अधिकता भी ऐसे लोगों को सच्चाई जानने; सही बात मानने से दूर रखती है। वे तो बस हर हाल में सिर्फ़ एक ही चीज चाहते हैं कि वे हमेशा सही साबित हों, फिर भले ही वे सही हों या ना हों।
इसीलिए दोस्तों मैंने पूर्व में कहा था, ‘समझदार, बुद्धिमान और विशेषज्ञ होने का अर्थ यह नहीं है कि आप हर किसी को सलाह देते चलें।’ याद रखियेगा, ‘जब अज्ञान चिल्लाता है, तो बुद्धिमत्ता को शांत रहना चाहिए।’ वैसे भी अज्ञानी’ का मतलब ‘ज्ञान या समझ का न होना’ नहीं है, बल्कि इसका मतलब होता है ‘उद्देश्य का न होना या ज्ञान का अर्थ, न पता होना।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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