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अट्ठावन घड़ी कर्म की और दो घड़ी धर्म की !!!

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Jan 16, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, मेरी उम्र के लोगों ने अपने दादा-दादी, नाना-नानी या अपने बुजुर्गों को यह कहते हुए अवश्य सुना होगा, ‘दो घड़ी तो धर्म के कार्यों में लगा लिया कर!’ अर्थात् वे हमें कहते थे अपने सपनों, अपनी जिम्मेदारियों के लिए कर्म करने के साथ-साथ हमें अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिए समय निकाल लेना चाहिए अन्यथा आप जाने-अनजाने में किए गए ग़लत कार्यों के दुष्परिणामों से बच नहीं पाओगे। वैसे ‘दो घड़ी के धार्मिक कार्य’ आपकी आत्मा को भी संतुष्ट कर उसे और सशक्त बनाते हैं। इसलिए ही तो हमारे बुजुर्ग कहा करते थे, 'अट्ठावन घड़ी कर्म की और दो घड़ी धर्म की!’ आइये आज इसी बात को हम एक कहानी से समझने का प्रयास करते हैं।


बात कई साल पुरानी है। राजपुर के रहने वाले सेठ किरोड़ीमल अपने इलाके के सबसे धनवान सेठ माने जाते थे। अपने व्यापार के सिलसिले में अक्सर वे दूरदराज के इलाकों में जाया करते थे। एक बार वे परदेस से ढेर सारा मुनाफ़ा कमा कर जब अपने देस लौट रहे थे, तब उनके साथ बड़ी खतरनाक वारदात घटी। असल में जब वे अपने नगर के पहले पड़ने वाले जंगल से गुजर रहे थे तब अचानक ही उन्हें कुछ डाकुओं ने लूटने के उद्देश्य के साथ घेर लिया। हालाँकि उनके साथ तीन-चार सुरक्षाकर्मी भी थे और उन्होंने अपनी ओर से सेठ की रक्षा करने की पूरी कोशिश करी, लेकिन डाकुओं के संख्या बल के सामने उनका होना, ना होने के बराबर ही था। कुछ ही देर में वे सभी सुरक्षाकर्मी सेठ को डाकुओं के बीच छोड़कर भाग गए।


डाकु सेठ से उसका धन, उसके पहने हुए गहने और साथ लाए सामान को छीनने लगे। इस छीना-झपटी में दो डाकुओं का मुँह पे बाँधा हुआ कपड़ा खुल कर नीचे गिर गया और सेठ ने उन दोनों डाकुओं का मुँह देख लिया और उन्हें पहचान लिया। असल में वो दोनों डाकू कई साल पहले सेठ की दुकान पर काम कर चुके थे। सेठ ने तुरंत उन दोनों डाकुओं का नाम लेकर पूछ लिया कि क्या तुम दोनों को मैंने सही पहचाना है?


सेठ के मुँह से अपना नाम सुन दोनों डाकू चौंक गए और वे सेठ को ध्यान से देखने लगे। कुछ ही पलों में उन दोनों डाकुओं ने भी सेठ को पहचान लिया और उन्हें भी वो दिन याद आ गये, जब वे सेठ के यहाँ काम किया करते थे। वे याद करने लगे कि किस तरह सेठ उन दोनों को उनके मुश्किल समय में अतिरिक्त सहायता उपलब्ध करवाया करते थे। और तो और अपने भोजन में से उन्हें भी भोजन करवाया करते थे। इस बात ने उन दोनों डाकुओं के विचार बदल दिए और वे सोचने लगे, ‘हमने तो इस सेठ का नमक खाया है, इसलिए इन्हें लूटना ठीक नहीं है।’


डाकुओं ने तुरंत यह बात अपने साथियों को बताते हुए कहा, ‘यह हमारे पुराने सेठ जी हैं और विपरीत समय में इन्होंने हम दोनों की बहुत मदद की है। इसलिए हमें लगता है कि इन्हें लूटना ठीक नहीं है।’ दोनों डाकुओं की बात सुन सारे डाकुओं ने सेठ को लूटना बंद कर दिया और फिर डाकुओं का सरदार सेठ से बोला, ‘सेठ आज तुम्हारे कर्मों ने तुम्हें बचा लिया। अब आप आराम से घर जाओ क्योंकि अब पूरे रास्ते तुम्हें कोई भी हाथ नहीं लगायेगा।’


उस वक्त तो सेठ वहाँ से चला गया और अपने घर भी सुरक्षित पहुँच गया और मन ही मन सोचने लगा कि दो लोगों के साथ किए गए अच्छे कर्म ने उसे साठ डाकुओं से बचा लिया। दोस्तों, यह सांकेतिक कहानी हमें एहसास करवाती है कि एक दिन में साठ घड़ी होती है और अगर आप इस साठ घड़ी में से दो घड़ी भी अच्छे कर्म याने धर्म और सेवा के कार्य कर लें, तो भी आप जाने-अनजाने में अट्ठावन घड़ियों में किए गए कार्यों के दुष्प्रभाव से बच सकते हैं, तो आइये दोस्तों, आज से ही हम हमारे बुजुर्गों द्वारा सिखाई गई इस सीख, याने ‘अट्ठावन घड़ी कर्म की और दो घड़ी धर्म की’, को अपने जीवन में उतारकर अपने आने वाले जीवन को बेहतर बनाते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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