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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

अतीत की ऊर्जा से वर्तमान की नकारात्मकता को दूर करें…

Mar 25, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, रिश्तों के विषय में मेरा मानना है कि नाराज़ होकर, अलग हो जाना या रिश्तों में दूरी बनाना सबसे आसान कार्य होता है। लेकिन अगर अलग होने की स्थिति को देखने का नज़रिया ज़रा सा बदल दिया जाए, तो रिश्तों की गरमाहट को बरकरार रखा जा सकता है। अपनी बात को मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। बात कुछ ही दिन पहले की है, किसी कार्यवश में अपने एक परिचित से मिलने उनके घर गया। वहाँ पहुँचने पर मुझे एहसास हुआ कि मेरे परिचित आज किसी वजह से थोड़े मानसिक तनाव में हैं।


शुरुआती बातचीत के बाद मैंने उनसे जब इस विषय में चर्चा करी तो पता चला कि वे पारिवारिक रिश्तों में उपजे तनाव की वजह से परेशान चल रहे हैं। जब मैंने उन्हें विस्तार से बताने के लिए कहा तो पता चला कि उनके बड़े भाई आजकल बीमारी की वजह से काफ़ी चिड़चिड़े हो गए हैं और इसी वजह से उनकी पत्नी उन पर घर से अलग होने का दबाव बना रही है। हालाँकि, पत्नी उन्हें उसी घर की दूसरी मंज़िल पर शिफ़्ट होने का कह रही थी। इस स्थिति में वे सज्जन स्वयं को दोनों और से घिरा या यह कहना बेहतर होगा कि चक्की के दो पाटों के बीच में फँसा हुआ पा रहे थे। अगर वे पत्नी को समझाने का प्रयास करते थे तो वह भैया-भाभी द्वारा छोटी-छोटी बातों पर दिए गए ताने दोहराकर कहती थी कि चार दिन घर में रहकर देखो तो पता चलेगा कि रोज़ मर-मर कर कैसे जी रही हूँ। उन सज्जन के लिए भैया या भाभी को भी कुछ कहना सम्भव नहीं था।


कुछ देर उन सज्जन की बातों पर विचार करने के बाद मैंने उन्हें अपनी माँ या सास से मदद लेने के लिए कहा क्योंकि मेरा मानना था कि बुजुर्गों का अनुभव इस कार्य में उनकी मदद कर सकता है। लेकिन उन सज्जन का मत थोड़ा भिन्न था, वे चाहते थे कि इस विषय में मैं उनकी मदद करूँ। स्थिति को देखते हुए जब मैंने उन सज्जन की पत्नी से बात करना शुरू किया तो वे बोली, ‘सर, अभी हम सिर्फ़ दैहिक रूप से साथ रहते हैं। मानसिक और भावनात्मक तौर पर तो हम कभी के अलग हो चुके हैं। ऐसे में रोज़-रोज़ की किट-किट से बेहतर है कि हम अलग हो जाएँ। इससे कम से कम आपसी प्यार, सद्भाव और बोलचाल तो बनी रहेगी।’


गम्भीरतापूर्वक उनकी बात सुनने के बाद मैंने उनका नज़रिया बदलने के उद्देश्य से कुछ पुरानी बातों का ज़िक्र करने का निर्णय लिया और बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘बात तो आप बिलकुल सही कह रही है। जीवन में शांति और सुख से बड़ा कुछ नहीं होता है। शायद यही तर्क देकर आपने अपने परिवार वालों को अपनी पसंद की शादी करने के लिए राज़ी किया था।’ मेरी बात सुनते ही वे बोली, ‘जी भैया!’ उनका जवाब सुन मैंने मुस्कुराते हुए अपने परिचित की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘जहाँ तक मुझे याद है इनके परिवार में इतना कहने के बाद भी कोई राज़ी नहीं था। उस वक्त आपकी सबसे ज़्यादा मदद किसने करी थी, जिसकी वजह से यह विवाह सम्पन्न हो पाया था और आप ख़ुशी-ख़ुशी अपने दाम्पत्य जीवन की शुरुआत कर पाए थे?’ मेरे प्रश्न के जवाब में उन्होंने थोड़ा सा सर झुकाया और बोली, ‘भैया और भाभी की वजह से ही सब सम्भव हो पाया था।’


मैंने पूरी तरह गम्भीर होते हुए उन सज्जन की ओर देखते हुए कहा, ‘शायद, आपने ही मुझे बताया था कि जब आपको व्यापार में बड़ा नुक़सान हुआ था तब आपके भैया ने ही घर का सारा खर्च उठाया था और आपकी देनदारियाँ चुकाने में भी मदद करी थी और भाभी जहाँ तक मुझे ध्यान है, आपके बेटे के जन्म के समय जब डॉक्टर ने आपको पूरी तरह आराम करने के लिए कहा था तब भी भैया-भाभी ने ही आपका सबसे ज़्यादा ध्यान रखा था।’ मेरी बात सुन वे बोली, ‘आप सही कह रहे हैं, समय-समय पर बड़े भैया और भाभी ने ही तो हमें सहारा दिया था।’


उनकी बात बड़ी शांति से सुनने के पश्चात मैं कुछ पल तो चुप रहा उसके पश्चात मैंने अपने परिचित व उनकी पत्नी को समझाते हुए कहा, ‘आज भाभी को भैया की बीमारी ने चिड़चिड़ा बना दिया है। ठीक उसी तरह जैसे व्यापार में घाटे के समय तुम व्यवहार कर रहे थे। भैया भी स्वास्थ्य की वजह से उपजी अनिश्चितता से परेशान है, इसीलिए दोनों इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं। अब धैर्य रखने और बड़प्पन दिखाने की बारी तुम्हारी है। वैसे भी मेरा मानना है कि रिश्तों में दूरी बनाने से पहले आपसी प्रेम को याद कर लेना चाहिए।’


जी हाँ दोस्तों, मतभेद को मन का भेद बना लेना ही रिश्तों को खा जाता है ऐसे में थोड़ा सा धैर्य रख आपसी प्रेम को याद कर लेना आपको सही निर्णय लेकर रिश्ते व मन की शांति को बचाने में मदद करता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

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