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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

अदम्य साहस, इच्छाशक्ति और दृढ़संकल्प के साथ करें सपने पूरे !!!

Sep 30, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, एक आँकड़ा बताता है कि ज़्यादातर इंसान ईश्वर के द्वारा प्रदत्त शक्तियों का अधिकतम 7-10 प्रतिशत उपयोग कर पाते हैं और इसीलिए साधारण जीवन जीते हैं। अपनी क्षमताओं का प्रयोग या उपयोग ना कर पाने की सबसे बड़ी वजह जो सामने आई है वह है विचारों की शक्ति का सही प्रयोग ना करना। दूसरे शब्दों में कहूँ दोस्तों, तो ऐसे लोग खुद की शक्तियों, क्षमताओं और लक्ष्य पर विश्वास नहीं कर पाते हैं और नकारात्मक सोच के साथ जीवन जीते हैं। इसके विपरीत आप बहुत थोड़े से लोगों को पाएँगे, जो एक बार जो सोच लेते हैं उसे हर हाल में करते हैं। यह लोग असंभव से लगने वाले सपनों को दृढ़ संकल्प और दृढ़ता के साथ साकार करते है, फिर चाहे रास्ते में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आ जाएँ। आईए, अपनी बात को मैं आपको अमेरिका के न्यूयॉर्क में वर्ष 1883 में बने ब्रुकलिन ब्रिज के निर्माता जॉन रोबलिंग एवं उनके पुत्र वाशिंगटन की कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-


न्यूयॉर्क में रहने वाले जॉन रोबलिंग अक्सर न्यूयॉर्क से लॉन्ग आइलैंड को जोड़ने वाले एक शानदार ब्रिज का सपना देखा करते थे। हालाँकि उस वक्त उपलब्ध संसाधनों और ब्रिज बनाने की तकनीकों या दूसरे शब्दों में कहूँ तो इंजीनियरिंग के तौर तरीक़ों के हिसाब से यह असम्भव था। रोबलिंग ने दुनिया भर में मौजूद पुल बनाने के विशेषज्ञों से इस विषय में चर्चा करी तो उन्होंने इस विचार को भूल जाने का सुझाव दिया क्यूँकि उनके हिसाब से यह व्यवहारिक नहीं था और ना ही पहले कभी इस तरह का पुल कहीं और बनाया गया था।


लोगों की राय के ठीक विपरीत रोबलिंग को अपने विचार पर पूरा विश्वास था, वे दिल की गहराइयों से जानते थे कि उनके विचार और बनाने के तरीके में दम है। इसलिए वे अपने विज़न, अपने सपने से समझौता करने के लिए राज़ी नहीं थे। हालाँकि वे यह भी जानते थे कि इस सपने को अकेले के बूते पर पूरा करना सम्भव नहीं है। इसलिए उन्होंने अपने बेटे वाशिंगटन, जो कि एक उभरते हुए इंजीनियर थे, को सफलता पूर्वक समझाया कि पुल वास्तव में बनाया जा सकता है।

वर्ष 1870 में पिता और पुत्र दोनों ने पुल को बनाने की अवधारणा को मूर्त रूप दिया, जिसमें उन्होंने सम्भावित चुनौतियों और इसे पूरा करने के तरीक़ों को शामिल किया था। बड़े उत्साह और प्रेरणा के साथ दोनों ने असम्भव सी लगने वाली चुनौती को स्वीकारते हुए अपने सपनों के पुल का निर्माण शुरू किया। हालाँकि अच्छे से शुरू हुई पुल बनाने की परियोजना कुछ ही माह बाद एक दुर्घटना की वजह से रुक गई जिसमें इसके प्रणेता जॉन रोबलिंग की मृत्यु हो गई और इनके साथी और पुत्र इस दुर्घटना में घायल हो गए। वाशिंगटन की चोट कितनी भयावह थी इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इस हादसे में उनके मस्तिष्क का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था, जिसकी वजह से वाशिंगटन ने बोलने और चलने की क्षमता को हमेशा के लिए खो दिया था।


जॉन रोबलिंग और वाशिंगटन ने इस परियोजना के विषय में जिन लोगों से पूर्व में चर्चा करी थी, वे सभी इस हादसे के तुरंत बाद सामने आए और तरह-तरह की टिप्पणी करने लगे। जैसे, ‘हमने तो पहले ही चेताया था यह सम्भव नहीं है।’ ‘क्रेज़ी आदमी और उनके क्रेज़ी सपने।’; ‘ऐसे असम्भव सपनों का पीछा करना पागलपन से अधिक कुछ नहीं है।’ आदि… हर कोई नकारात्मक टिप्पणी कर रहा था और सभी लोग चाहते थे कि इस परियोजना को बंद कर दिया जाए। लेकिन इसके विपरीत अस्पताल में पड़े-पड़े वाशिंगटन हमेशा इसे पूरा करने के विषय में सोचते रहते थे। उन्हें अभी भी लगता था कि इस पुल को पिता के द्वारा बताए गए तरीके से बनाना सम्भव है। उन्होंने अपने कुछ इंजीनियर दोस्तों को इशारों से प्रेरित कर परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए कहा, लेकिन जोखिम को देखते हुए किसी ने भी हाँ नहीं करा।


अस्पताल में एक दिन कुछ ऐसा घटा जिसने वाशिंगटन के जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। उस दिन हल्की-हल्की हवा चल रही थी जिसकी वजह से अस्पताल के उस कमरे, जिसमें वाशिंगटन भर्ती थे, के पर्दे हल्के-हल्के उड़ने लगे और एक पल के लिए वाशिंगटन को पेड़ का शीर्ष और आसमान एक बिंदु पर मिलते हुए से नज़र आए। वाशिंगटन को ऐसा लगा मानो यह उनके लिए कभी हार ना मानने का संदेश था। इससे उन्हें एहसास हुआ की आसमान को छुआ जा सकता है। साथ ही उनके मन में विचार आया कि ईश्वर ने एक उँगली को हिलाने की उनकी क्षमता को अभी भी बरकरार रखा हुआ है। उन्होंने उसी उँगली की सहायता से अपनी पत्नी से संवाद करने की क्षमता विकसित करी। दूसरे शब्दों में कहूँ तो उन्होंने धीरे-धीरे अपनी पत्नी के साथ संचार या संवाद करने का एक कोड विकसित किया।


इसी कोड की सहायता से एक दिन वाशिंगटन ने अपनी पत्नी को इंजीनियरों को वापस बुलाने का संकेत दिया। इंजीनियरों के आने के बाद वाशिंगटन ने इसी तरीक़े से इंजीनियरों से संवाद करा और एक बार फिर परियोजना को शुरू करने का कहा। हालाँकि यह मूर्खतापूर्ण लग रहा था लेकिन फिर भी परियोजना पर एक बार फिर काम शुरू हो गया।


इंजीनियरों को क्या करना है, यह बताने के लिए 13 वर्षों तक वाशिंगटन ने इसी तरह अपनी पत्नी को उँगली से थपथपा कर संवाद करने, इंजीनियरों को निर्देशित करने का यही तरीक़ा काम में लिया और आख़िरकार सन 1883 में सफलता पूर्वक पुल का निर्माण कार्य पूरा कर लिया।


दोस्तों, आज का शानदार ब्रुकलिन ब्रिज असल में एक व्यक्ति के सपने, दृढ़ संकल्प के साथ किए कार्य और अदम्य इच्छाशक्ति का प्रतीक है। साथ ही यह आधी दुनिया द्वारा पागल माने गए जॉन रोबलिंग को सच्ची श्रद्धांजलि और वाशिंगटन की पत्नी के सच्चे प्रेम, जिसने 13 वर्षों तक धैर्य रख अपने पति के संदेशों को डिकोड़ कर इंजीनियरों को बताया कि उन्हें क्या करना है, जिससे पुल का निर्माण सफलता पूर्वक हो सके की निशानी है।


दोस्तों, अब जब कभी लक्ष्य का पीछा करते वक्त निराशा आए या दिन-प्रतिदिन के काम में किसी भी तरह की बाधा आए तो इस ‘कभी ना हार ना मानने’ वाला नज़रिया सिखाने वाली इस कहानी को याद कर लीजिएगा और असंभव लगने वाले सपनों को दृढ़ संकल्प और दृढ़ता के साथ पूरा करने में जुट जाइएगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर



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