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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

अधजल गगरीं, छलकत जाय…

Oct 23, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, इस जहां में अपनी बात ज्ञानी और अज्ञानी व्यक्ति को तो समझाई जा सकती है लेकिन अर्द्ध ज्ञानी को नहीं क्योंकि अर्ध ज्ञानी व्यक्ति हर पल अपने अधूरे ज्ञान के बल पर आपको तोलता और टोकता है। इतना ही नहीं कई बार तो उस वक़्त हद हो जाती है जब वह अपने अधूरे ज्ञान के आधार पर ज्ञानी को ही ज्ञान देने लगता है। वैसे मज़े की बात तो यह है कि इस सब में अंततः नुक़सान अर्द्ध ज्ञानी व्यक्ति का ही होता है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।


बात उस वक़्त की है, जब कबूतर ख़ुद का घोंसला ना होने के कारण झाड़ियों के बीच में अपने अंडे दिया करते थे। सुरक्षित स्थान ना होने के कारण अक्सर दूसरे जानवर कबूतर के अंडों को खा ज़ाया करते थे। एक दिन एक चिड़िया को कबूतर पर तरस आया और उसने उनकी सहायता करते हुए कहा, ‘कबूतर भाई, मेरी राय है कि तुम भी हमारी तरह घोंसला बना कर रहना शुरू कर दो। इससे तुम और तुम्हारे अंडे, दोनों की सुरक्षा हो जाएगी।’ कबूतर को चिड़िया का विचार अच्छा लगा और उसने चिड़िया से निवेदन किया कि वह उसे घोंसला बनाना सिखा दे। चिड़िया ने ख़ुशी-ख़ुशी कबूतर को पेड़ के ऊपर घोंसला बनाना सिखाते हुए, सबसे पहले घोंसले के लिए सुरक्षित स्थान चुनना, फिर तिनके बटोरना और तिनकों को आपस में गूथना आदि सिखाना शुरू किया। अभी चिड़िया ने घोंसला बनाना शुरू ही किया था कि कबूतर बोला, ‘हैं इसमें ऐसा विशेष क्या है? यह तो हम ही बना लेंगे।’ कबूतर का ताना सुन चिड़िया ने काम वहीं छोड़ा और पेड़ की डाल पर जाकर बैठ गई। बाद में कबूतर ने काफ़ी कोशिश करी लेकिन घोंसला ठीक से नहीं बन पाया।


थक कर अंत में कबूतर एक बार फिर चिड़िया के पास गया और उससे हाथ जोड़कर एक बार फिर मदद करने का निवेदन करने लगा। चिढ़ती हुई चिड़िया वापस आई और तिनके को ठीक तरह से जमाना सिखाने लगी। अभी घोंसला बनाने का काम आधा भी नहीं हुआ था कि कबूतर वापस से उछलने लगा और कहने लगा, ‘यह तो मैं जानता हूँ।’ कबूतर के बार-बार इस तरह चिल्लाने पर चिड़िया वापस उड़ गई और कबूतर घोंसला बनाने में लगा रहा, लेकिन बना ना सका। अंत में काफ़ी परेशान होने के बाद वह एक बार फिर चिड़िया के पास पहुँचा लेकिन इस बार चिड़िया ने उसे मदद करने से साफ इनकार करते हुए कहा, ‘जो जानता कुछ नहीं है और मानता है कि मैं सब कुछ जानता हूँ, ऐसे प्राणी को कोई कुछ भी नहीं सिखा सकता है।’ कहने की ज़रूरत नहीं है दोस्तों कि नासमझ कबूतर अपने अहंकार के कारण घोंसला बनाना सीख ही नहीं पाया होगा, इसीलिए तो वो आज तक अधूरे से टूटे-फूटे लगते घोंसले में रहता है।


वैसे साथियों, आप इसी कहानी को जीवन के एक महत्वपूर्ण फ़लसफ़े के रूप में भी देख सकते हैं। विडंबना है कि आज के युग में ज़्यादातर लोगों की समस्या यही मानना है कि ‘हम सब कुछ जानते हैं।’ जबकि सच्चाई इसके उलट होती है। हम में से ज़्यादातर लोग, ज़्यादातर बातों को जानते ही नहीं हैं। इसे मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। मेरी नज़र में सारी दुनिया का ज्ञान तीन हिस्सों में बंटा होता है। पहला, वह ज्ञान, जो मेरे पास है। दूसरा, वह ज्ञान जिसके विषय में मुझे पता है कि यह मेरे पास नहीं है। जैसे मेरे लिये फ़्रेंच, जर्मन आदि भाषा का ना जानना। तीसरा ज्ञान इन दोनों ज्ञानों से ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है, जिसकी मात्रा सबसे अधिक होती है। वह है, मुझे पता ही नहीं है कि मुझे क्या-क्या पता नहीं है। यक़ीन मानियेगा दोस्तों, इस तीसरी केटेगरी में ९० प्रतिशत से अधिक बातें आती है।


इस समस्या से बचने का एक ही उपाय है, अपने ‘ज्ञानी’ होने का अहंकार त्यागना। यक़ीन मानियेगा दोस्तों, ज्ञानी होने का अहंकार ‘ब्लैक होल’ के माफ़िक़ होता है, जो हमारी चेतना को लगातार प्रभावित करता है; उसे विकसित नहीं होने देता है। याद रखियेगा, जीवन में सफल होने का एक ही सूत्र है, ‘लगातार सीखते रहना!!!’ और यह तभी संभव है जब आप ज्ञानी होने के अहंकार को त्याग विनम्र हृदय के साथ चीजों को स्वीकारना शुरू कर दें।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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