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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

अपनी ज़िंदगी का रिमोट रखें अपने पास…

June 2, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक बड़ी प्यारी कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, एक राज्य में जयेन्द्र नाम का बड़ा ही पराक्रमी योद्धा रहता था। अपने नाम के मुताबिक़ ही वह जीत का स्वामी था, उसे कभी भी कोई हरा नहीं सका था। हालाँकि जयेन्द्र अब बूढ़ा हो चला था लेकिन फिर भी वह किसी को भी हराने का माद्दा रखता था। उसकी ख्याति इतनी अधिक थी कि देश-विदेश से लोग उसके पास युद्ध कौशल सीखने आया करते थे। एक बार एक युवा लड़का, जो उस इलाक़े का सर्वश्रेष्ठ योद्धा बनने की चाह रखता था, जयेन्द्र को हराने का संकल्प लेकर इस राज्य आया। उस युवा योद्धा के बारे में प्रचलित था कि वह ताकतवर होने के साथ ही बुद्धिमान भी है और इसी वजह से वह प्रतिद्वंदी के प्रथम वार से ही उसकी कमजोरी को पहचान जाता है और फिर पूरी ताक़त, जोश और तेज गति के साथ निर्ममता से वार कर जीत हासिल करता है। यानी युद्ध के दौरान पहला वार उसका दुश्मन करता था और आख़री वार इस युवा लड़के का होता है।


इस युवा योद्धा से चुनौती मिलते ही जयेन्द्र ने उसे शुभचिंतकों और शिष्यों की सलाह के विरुद्ध स्वीकार लिया और तय दिन युद्ध के मैदान में पहुँच गया। जयेन्द्र के सामने आते ही युवा योद्धा ने अपनी योजना अनुसार पहला दाँव चलते हुए उस महान योद्धा को अपमानित करना शुरू कर दिया। जैसे उसके लिए भद्दे शब्दों का इस्तेमाल करना, उस पर मिट्टी और अमैदान में पड़ी गंदगी फेंकना, चेहरे पर थूकना और गालियाँ देना। याने युवा लड़का हर तरीके से जयेन्द्र को ग़ुस्सा दिलाने के लिए प्रयास कर रहा था जिससे वह उस योद्धा पर पहला वार करे और यह उसकी कमजोरी को पहचान कर उसे हरा सके।


लेकिन जयेन्द्र तो स्वयं महान योद्धा था वह युवा के द्वारा अपनाए गए हथकंडों में फँसने के स्थान पर एकदम शांतचित्त, एकाग्र और अडिग रहा। इसके साथ ही वह उस युवा लड़के के प्रत्येक क्रियाकलाप पर पैनी नज़र रख रहा था। काफ़ी देर तक उल्टे-सीधे तरीके अपनाने के कारण युवा योद्धा थकने के साथ-साथ निराश होने लगा और अंत में अपनी हार सामने देख, शर्मिंदगी के मारे भाग खड़ा हुआ। जयेन्द्र के कुछ शिष्यों को गुरु का इस तरह अपमान सहना अच्छा नहीं लगा और वह उसके विरुद्ध तरह-तरह की बातें बनाने लगे। जैसे यह तो बूढ़ा हो गया है इसलिए युद्ध से बच रहा है, आदि। जयेन्द्र के एक शिष्य ने थोड़ी हिम्मत करते हुए जयेन्द्र से सवाल करते हुए पूछा, ‘गुरुजी, आपने इतना अपमान क्यों बर्दाश्त किया? आपने उसे सबक़ सिखाने के स्थान पर भागने का मौक़ा क्यों दिया?’


जयेन्द्र मुस्कुराए और बोले, ‘वत्स, अगर कोई तुम्हारे लिए उपहार लाए और अगर तुम उसे ना लो, तो वह उपहार किसके पास रहेगा?’ शिष्य बोला, ‘गुरुजी लाने वाले के पास।’ शिष्य का जवाब सुनते ही जयेन्द्र एकदम गम्भीर हो गए और बोले, ठीक इसी तरह अगर तुम सामने वाले के कहे अपशब्दों, अपमान को नहीं स्वीकारोगे तो वह भी उसके पास ही बचा रह जाएगा और तुम अनावश्यक की परेशानी से बच जाओगे।


बात तो दोस्तों जयेन्द्र की एकदम सही है। जीवन में अनेक चुनौतियाँ अचानक ही अनावश्यक रूप से सामने आ जाती है। अगर आप उसमें उलझने के स्थान पर उन्हें नज़रंदाज़ कर देते हैं तो बीतते समय के साथ वह अपने आप ही खत्म हो जाती है। वैसे इसे आप एक और नज़रिए से देख सकते हैं। अगर आप किसी के उकसावे से प्रभावित होकर अपनी शांति, अपने सुख से खिलवाड़ कर रहे हैं, तो इसका एक ही अर्थ है, ‘आपके मूड, आपके जीवन का रिमोट सामने वाले के हाथ में है।’ इसलिए दोस्तों, अगर मानसिक शांति चाहते हैं तो मानसिक स्थिरता, एकाग्रता और अपनी प्राथमिकताओं को समझिए और याद रखिए, सामने वाले की हर बात का जवाब देना आवश्यक नहीं होता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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