Nov 29, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
बात कई साल पुरानी है, ६५ वर्षीय राजेन्द्र थोड़े परेशान थे। काफ़ी विचारने के बाद उन्होंने अपने बड़े बेटे को फ़ोन किया और बोले, ‘बेटा, तेरी माँ का एक्सीडेंट हो गया है और इस वक्त वे अस्पताल में भर्ती है। कल उनका ऑपरेशन है और उसके लिए तेरी माँ को खून चढ़ाना है।’ अभी पिता की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि बेटा बीच में ही टोकते हुए बोला, ‘पापा, इस वक्त मैं बहुत व्यस्त हूँ। जैसा आप चाहते थे, मेरी नौकरी अमेरिका में लग गई है और मुझे अगले माह वहाँ जाना है। इसलिए मेरा अभी आना नहीं हो पायेगा। अभी जाने की तैयारियों की वजह से हाथ तंग चल रहा है। इसलिए आप छोटे भाई से पैसे मंगवा लेना या फिर कहीं से इंतज़ाम कर लेना। मैं वहाँ जाकर कुछ माह में आपको भेज दूँगा।’
इंजीनियर बेटे का जवाब सुन पिता ने बिना कुछ कहे फ़ोन रख दिया और फिर कुछ सोच कर उन्होंने डॉक्टर बेटे को फ़ोन लगाया और उसे भी पूरी घटना कह सुनाई। डॉक्टर बेटे ने ससुराल की शादी के विषय में बताकर आने से मना कर दिया और कहा कि मैं आपको कुछ पैसे भिजवा देता हूँ और डॉक्टर से बात कर माँ के इलाज के विषय में चर्चा कर लेता हूँ। हालाँकि उस बेटे ने ना तो पैसे भेजे और ना ही डॉक्टर से बात की।
दोनों बेटों की बात से पिता बड़े मायूस हुए और उन्होंने यह सोचते हुए मझले बेटे को फ़ोन नहीं लगाया कि ‘उस नालायक को फ़ोन करने से क्या फ़ायदा, वह तो कुछ करने लायक़ ही नहीं है।’ फिर वे बोझिल कदमों से पत्नी के पास पहुँचे और पुरानी यादों में खो गए। एक ही मिनिट में उन्होंने बड़े और छोटे बेटे को इंजीनियर और डॉक्टर बनाने से लेकर उनकी शादी बड़े घरानों में कराने तक में लगी मेहनत और शादी के बाद छोटी सी बात पर अपनी पत्नी के साथ घर से अलग होने की घटना को याद कर लिया। इसके बाद उन्होंने अपने मझले बेटे को याद किया, जो पढ़ाई से लेकर जीवन में कुछ ख़ास नहीं कर पाया था। इसलिए ही उन्होंने उसका नाम ही ‘नालायक’ रख दिया था। बहस करने की आदत के कारण राजेन्द्र इसे बिगड़ैल बच्चा मानते थे।
राजेन्द्र गुरु की जीवन भर की बचत दोनों बेटों की पढ़ाई में खर्च हो गई थी। इसीलिए रिटायरमेंट के समय भी उन्हें ना के बराबर पैसे मिले थे। शहर में एक घर, थोड़ी जमीन और गाँव में एक खेत था। घर का खर्च पेंशन से चल जाया करता था। राजेंद्र जी को जब लगा कि मझला बेटा सुधरने वाला नही तो उन्होंने बँटवारा कर दिया और उसे गाँव में खेती की ज़मीन देकर वहीं रहने भेज दिया। हालाँकि वह शहर में व्यवसाय करना चाहता था, पर पिता की जिद के आगे झुक गया और गाँव में ही झोपड़ी बनाकर रहने लगा और खेती करने लगा। राजेंद्र जी अपने दोनों होनहार बेटों के साथ शहर आकर बस गए। जब भी उन्हें मौक़ा मिलता था वे सबके सामने अपना सीना गर्व से चौड़ा करके, दोनों होनहार बेटों की बढ़ाई करने लगते। जब तक कोई उनसे पूछ ना ले, तब तक वे उस नालायक का नाम भी नहीं लेते थे।
अभी वे इन विचारों में ही खोए हुए थे कि ‘पापा… पापा…’ की आवाज़ ने उनकी तंद्रा तोड़ी, उन्होंने देखा कि उनका ‘नालायक’ उनके सामने खड़ा था। उसने उसी पल पिता के पैर पकड़े और रोते हुए बोला, ‘पापा, आपने मुझे क्यों नहीं बताया कि माँ का एक्सीडेंट हो गया है। वो तो अच्छा हुआ कि मैंने अपने कुछ मित्रों को आपका ध्यान रखने के लिए कहा था। उन्होंने ही मुझे फ़ोन करके इस विषय में बताया। अब आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए और घर जाकर आराम कीजिए। मैं यहाँ रुककर माँ का ध्यान रख लूँगा और हाँ, पैसों की चिंता मत कीजियेगा।’
इसके बाद उस ‘नालायक’ ने अपना ख़ून माँ को दिया और पूरे एक माह वहीं रुक कर तब तक माँ की सेवा की, जब तक वे पूरी तरह चंगी नहीं हो गई। उससे जब इलाज में हुए खर्चे के विषय में पूछा तो वह बोला, ‘पिताजी, खैराती अस्पताल था इसलिए सब कुछ आसानी से हो गया।’ समय के साथ धीमे-धीमे सब कुछ ठीक हो गया और वह ‘नालायक’ वापस अपने गाँव चला गया। एक दिन राजेंद्र जी के मन में आया क्यों ना अपने ‘नालायक’ की खबर ले ली जाये। विचार आते ही वे पत्नी को साथ ले गाँव पहुँच गए। लेकिन वे वहाँ यह देख हैरान रह गए कि उनका नालायक खेत किसी और को बेच कर नौकरी की तलाश में दूसरे गाँव चला गया है। जब उन्होंने इस विषय में गांव वालों से पूछा तो उन्हें पता चला कि माँ के इलाज के लिए पैसों का इंतजाम करने के लिए उसने खेत बेचा है। अब गाँव में उसके पास सिर्फ़ एक झोपड़ी बची है। पिता ने पड़ोसी के यहाँ से चाबी लेकर जब झोपड़ी खोली तो वे यह देखकर हैरान रह गए कि इस ‘नालायक’ ने माँ के इलाज के लिए लगभग १० लाख रुपये खर्च किए है। राजेन्द्र जी ठंडी और गहरी साँस लेते हुए बोले, ‘जानकी, तुम्हारा बेटा था तो नालायक ही और साथ में झूठा भी।’ यह कहते वक्त उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे और वे उसे याद करते हुए ईश्वर से उसके लौट आने की प्रार्थना कर रहे थे।
दोस्तों, मझला शायद सचमुच ही बड़ा नालायक था, अपना माता-पिता की सेवा के लिए अपना सारा कैरियर और खेती जैसा व्यवसाय छोड़, निकल गया था और हाँ यह लेख पढ़ते वक्त अगर आँखें नम हुई तो समझो आपके अंदर भी एक नालायक़ ज़िंदा है और अब आपका काम है कि वह कभी आपके अंदर मर ना पाये…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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