Apr 6, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, मेरा मानना है कि रिश्तों में दिक़्क़त या परेशानी या फिर दूरी बढ़ने की मुख्य वजह हमारे अहम् याने अहंकार का रिश्तों से बड़ा हो जाना होता है। अपनी बात को मैं आपको एक क़िस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ। कुछ दिन पूर्व, शाम को लगभग ८ बजे रामू अपनी माँ के पास बैठे-बैठे अपनी पढ़ाई कर रहा था। माँ, जो उस वक़्त खाना पका रही थी, ने रामू से अपना कार्य जल्दी पूर्ण करने के लिए कहा जिससे वह अपने पिता के साथ खाना खा सके।
अभी माँ-बेटे की आपस मे बात चल ही रही थी कि रामू के पिता घर में अंदर आते हुए बोले, ‘रामू, माँ से बोलो वह खाना तैयार रखे और तुम भी जल्दी से हाथ धोकर खाना खाने आ जाओ।’ कुछ मिनिटों के बाद रामू अपने पिता के साथ खाना खाने के लिए बैठ गया और कुछ ही मिनिटों में माँ ने दोनों को खाना परोस दिया। रामू और उसके पिता ने सुकून के साथ खाना खाना शुरू कर दिया। तभी रामू का ध्यान माँ द्वारा पिता को दी गई रोटी पर गया, जो पूरी तरह जली हुई थी। राजू को लगा अब पिताजी माँ पर भड़केंगे और उनपर अपना ग़ुस्सा उतारेंगे कि उन्होंने ऐसी जली रोटी कैसे परोस दी। वह थोड़ा सा सहम कर अपने पिता को गौर से देखने लगा। लेकिन बच्चे की उम्मीद के विपरीत, पिता ने बड़े इत्मीनान से उन रोटियों को खाना जारी रखा। इसके साथ ही वे बीच-बीच में रामू की खैर-खबर और पढ़ाई के बारे में चर्चा भी करने लगे।
खाना ख़त्म होने के कुछ देर बाद रामू की माँ को जली हुई रोटियों का ख़्याल आया तो वे अपने पति से माफ़ी माँगते हुए बोली, ‘मैं माफ़ी चाहती हूँ क्योंकि मैंने गलती से आपको जली हुई रोटियाँ परोस दी थी।’ माफ़ी सुनते ही रामू के पिता मुस्कुरा दिए, जिसे देख रामू की माँ बोली, ‘कम से कम आप तो मुझे याद दिला सकते थे कि रोटी जली हुई है?’ रामू के पिता मुस्कुराते हुए बोले अरे आज तो मुझे कड़क सिकी रोटी खाकर उल्टा ज़्यादा मज़ा आ रहा था।’
पिता की कही बातें रामू को हैरान कर रही थी। असल में वो अचंभित था। उसने उत्सुकतावश अपने पिता से पूछा, ‘माफ़ कीजियेगा पिताजी, क्या आपको वाक़ई जली हुई कड़क रोटी खाकर मज़ा आ रहा था?’ बच्चे का प्रश्न सुन पिता मुस्कुराए और रामू के सिर को हाथ से सहलाते हुए बोले, ‘बेटा, एक जली रोटी हमें उतना नुक़सान नहीं पहुँचाती है, जितना ग़ुस्से में चिढ़ कर कहे गये तल्ख़ शब्द। याद रखना कड़वे, दिल को चुभने वाले शब्द किसी भी इंसान के जज़्बात को अंदर तक झकझोरने के लिए काफ़ी होते है। दिल को चुभने वाले इन शब्दों का घाव कई बार जीवन भर ठीक नहीं हो पाता है। इसलिए बेटा हमेशा चीजों से ज़्यादा इंसानों को महत्व देना।
बात तो दोस्तों, रामू के पिता की सौ टका सही थी इसीलिए तो शायद कहा जाता है कि मुँह से निकले शब्द और तरकश से निकला तीर वापस नहीं आता। इसलिए हमेशा याद रखियेगा यह दुनिया बेशुमार नापसंद चीजों के साथ-साथ ढेरों नकारात्मक और अपरिपक्व लोगों से भी भरी पड़ी है। ऐसे में ख़ुद को शब्दों के घाव से बचाना हमारी स्वयं की ज़िम्मेदारी हो जाती है। जिस तरह हम पूर्ण नहीं हैं और रोजमर्रा के जीवन में ढेरों ग़लतियाँ करते हैं, ठीक वैसे ही हमारे आस-पास मौजूद लोग भी ग़लतियाँ करते हैं। हमें इन मामूली, तात्कालिक नुक़सान पहुँचाने वाली ग़लतियों को नज़रंदाज़ करते हुए इंसानी रिश्तों को निभाते हुए जीना सीखना होगा। याद रखियेगा दोस्तों, हमारी ज़िंदगी इतनी छोटी है कि अगर हम गलतियों को करने या गिनने या गिनाने और फिर पछताने में उलझ गये तो कभी खुलकर इस जीवन को जी ही नहीं पाएँगे। इसीलिए तो कहा गया है, ‘अपने अहम् को थोड़ा-सा झुका के चलिए, सब अपने लगेंगे जरा-सा मुस्कुरा के चलिए !!!
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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