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अपने लिए जिए तो क्या जिए…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Nov 2, 2024
  • 3 min read

Nov 2, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, ज़िंदगी में लक्ष्यों को ध्यान में रखकर जितना ज़्यादा ज़रूरी तेज़ी से आगे बढ़ना है, उतना ही आवश्यक कहाँ रुकना है, इसका भान होना है। अन्यथा रोजमर्रा की भागमभाग में लोग ज़िंदगी जीना ही भूल जाते हैं। जी हाँ दोस्तों, जब आप एक दौड़ से अपना ध्यान हटाते हैं, तब ही आप ज़िंदगी के दूसरे पहलुओं पर फोकस कर पाते हैं और करुणा, सहानुभूति, समानुभूति आदि जैसे भावों के साथ सम्पूर्ण जीवन जी पाते हैं और इस जहां, इस समाज को हमें जैसा मिला है, उससे बेहतर बनाने में अपना योगदान दे पाते हैं। अपनी बात को मैं आपको बुद्धिमत्ता, मनोरंजन और ज्ञान में वृद्धि करने वाले शो ‘कौन बनेगा करोड़पति-16’ के एक एपिसोड में घटी एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ।


‘फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट’ राउंड में सबसे कम समय में सही जवाब देकर कोलकाता निवासी डॉ नीरज सक्सेना ने हॉट सीट पर जगह बनाई और शांतिपूर्ण गरिमामय तरीके से बिना उछलकूद करे अमिताभ बच्चन जी से मिलकर अपने स्थान पर बैठ गए। वैसे डॉ नीरज पीएचडी धारक वैज्ञानिक हैं और आज कोलकाता के एक विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। उनके अनुसार उनके जीवन का सबसे सौभाग्यशाली हिस्सा वह है जब उन्होंने डॉ एपीजे अबुल कलाम के साथ कार्य किया था। कलाम साहब के प्रभाव ने उन्हें केवल अपने बारे में सोचने से बाहर निकालकर देश और दूसरों के बारे में सोचने की प्रेरणा दी और शायद इसीलिए वे बहुत ही सरल और संवेदनशील व्यक्तित्व के मालिक हैं।


खैर, आशा के अनुरूप नीरज जी ने बहुत गंभीरता के साथ खेल की शुरुआत की और एक ही प्रश्न का सही उत्तर देने के लिए पहले ‘ऑडियंस पोल’ और फिर ‘डबल डिप’ लाइफ लाइन का प्रयोग किया और बड़े ही आत्मविश्वास के साथ पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते हुए तीन लाख बीस हज़ार की इनामी राशि और इतना ही बोनस जीता। इसके पश्चात जैसे ही अमिताभ बच्चन जी अगला प्रश्न पूछने के लिए तैयार हुए तभी नीरज जी ने सभी लोगों की आशा के विपरीत जाते हुए कहा, ‘सर, मैं खेल छोड़ना चाहता हूँ।’


अमिताभ बच्चन सहित सभी लोग स्तब्ध थे। उनके पास अभी दो जीवित लाइफ लाइन और थी, साथ ही वे बहुत अच्छे से खेल का प्रदर्शन कर रहे थे और उनके पास बहुत सारे पैसे जीतने का और मौका भी था। कुछ पलों की खामोशी के बाद बच्चन जी ने बड़े आश्चर्य के साथ उनसे पूछा, ‘आप इतने शानदार खेल रहे हैं, फिर भी छोड़ना चाहते हैं? नीरज ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "और भी खिलाड़ी इंतजार कर रहे हैं, सर। वे मुझसे छोटे हैं, उन्हें भी मौका मिलना चाहिए। मैंने जितना जीता है, वह मेरे लिए पर्याप्त है।" अमिताभ और दर्शकों को एक पल के लिए मानो चुप्पी ने घेर लिया। फिर, सब खड़े हो गए और उनकी निस्वार्थता को सलाम करते हुए, उनके लिए ताली बजाने लगे।


अंत में अमिताभ जी ने भावुक होकर कहा, ‘आज हमने एक बड़ा सबक सीखा है।’ दोस्तों, इस शो में नीरज जी के रूप में पहली बार ऐसे इंसान को देखा था जो दूसरों को मौका देकर संतुष्ट और ख़ुश होता है। मेरे मन में अपने आप ही उनके लिए सम्मान का भाव पैदा हो गया, जिसके वे असली हकदार भी थे। आज जहाँ लोग अधिक से अधिक कमाने की होड़ में लगे हैं, वहीं नीरज जी जैसे लोग हमें सिखाते हैं कि असली और सच्ची ख़ुशी और संतुष्टि क्या होती है। नीरज जी के खेल छोड़ने के बाद जो लड़की हॉट सीट पर बैठी उसने अपनी कहानी साझा करते हुए कहा, ‘तीन बहनें होने के कारण हमारे पिता ने हमें घर से निकाल दिया था, उसके बाद से हम अनाथालय में रहते हैं…' उस लड़की की कहानी सुन मैं सोच रहा था कि यदि नीरज जी ने खेल नहीं छोड़ा होता, तो शायद इस गरीब लड़की को यह मौका न मिल पाता।


दोस्तों, आज के समय में, जब लोग संपत्ति के लिए लड़ते हैं; दूसरों के प्रति स्वार्थ की भावना रखते हैं, वहीं नीरज जैसे लोग हमें सच्ची मानवता का एहसास कराते हैं। उनकी सोच में ईश्वर का वास होता है। ऐसे महान लोगों से हमें दोस्तों करुणा, उदारता, आत्मिक संपन्नता, सहानुभूति, समानुभूति आदि जैसे भावों को सीखना चाहिए, तभी हम समानता के भाव पर आधारित समाज का निर्माण कर पायेंगे। वैसे भी दोस्तों 84 लाख योनियों में से सिर्फ़ मनुष्य योनि ही सब कुछ इकट्ठा कर रखने पर यकीन करती है। लेकिन अगर हम जरूरत पूरी होने पर रुकना सीख जायें और दूसरों को अवसर देने लगे तो हम समाज और दुनिया को बेहतर बनाने में अपना योगदान दे सकते हैं। इसीलिए हमारा धर्म हमें सिखाता है कि स्वार्थ त्यागने से ही संसार में वास्तविक सुख आता है और वैसे भी अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ए दिल जमाने के लिए…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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