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अपने हर दिन को पिछले दिन से बेहतर बनाएँ…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Jul 27
  • 3 min read

July 27, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, जीवन अन्य यात्राओं की तरह ही एक टेढ़ी-मेढ़ी यात्रा है। याने एक ऐसी यात्रा जहाँ कभी खुशियों के पल आते हैं, तो कभी परेशानियों की आँधी। इस यात्रा में जो इंसान चुनौती पूर्ण समय को अपना शिक्षक मान लेता है वही इसे रोमांचक, ख़ुशनुमा और यादगार बना पाता है। लेकिन हर हाल में सीखने का यह भाव विकसित करना आसान नहीं है। इसके लिए सबसे पहले आपको अपनी कमजोरियों को पहचानना और फिर उन्हें चुनौती देना सीखना होगा।


जी हाँ दोस्तों, अक्सर हम सोचते हैं कि अगर ज़िंदगी में कोई दिक्कत ना हो, कोई विरोधी ना हो, सब कुछ जैसा हम चाहते हैं वैसा ही हो, तो ही जीवन बेहतर होगा। लेकिन सच इसके ठीक विपरीत है। जीवन में मनमाफिक समय नहीं बल्कि चुनौतियाँ और विरोधी ही हमें मजबूत बनाते हैं। चलिए, इसी बात को हम एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं-


बात कई साल पुरानी है, गाँव में रहने वाला अर्जुन वैसे तो पढ़ने लिखने में बहुत अच्छा था, लेकिन उसमें आत्मविश्वास की बहुत कमी थी, इसलिए वह कभी भी लोगों के सामने या फिर मंच से अपनी बात कह नहीं पाता था। दूसरे शब्दों में कहूँ तो अर्जुन को पब्लिक स्पीकिंग से डर लगता था। इसलिए उसके कुछ सहपाठी उसे चिढ़ाते हुए अक्सर कहते थे, “अरे, ये तो बोल ही नहीं सकता!”, “इसे अपनी प्रोजेक्ट टीम में लेना, ख़ुद का नुक़सान करना है। यह सब बिगाड़ देगा।”


इस तरह के तमाम ताने सुन शुरू में अर्जुन को बहुत बुरा लगता था। लेकिन एक दिन उसने सोचा, “अगर मैं हमेशा डरता रहूंगा, तो कभी आगे नहीं बढ़ पाऊंगा। मुझे अपनी इस आदत को सुधारना होगा।” यह विचार आते ही उसने खुद को तैयार करना शुरू किया और रोज शीशे के सामने बोलने का अभ्यास करने लगा, किताबें पढ़ने लगा। जिसके कारण बीतते समय के साथ धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास बढ़ने लगा। कुछ माह बाद स्कूल में एक तात्कालिक भाषण प्रतियोगिता हुई जिसमें अर्जुन ने भाग लिया और जीत भी गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जो लोग उसे चिढ़ाते थे, अब वे उसकी तारीफ़ कर रहे थे।


दोस्तों, अर्जुन की यह कहानी हमें जीवन की दो बड़ी सीख देती है-

१) कमजोरियों से भागिए मत, उन्हें चुनौती दीजिए क्योंकि जब आप अपनी सीमाओं को चुनौती देते हैं, तब आप अपनी छुपी हुई क्षमताओं को निखार कर मजबूत बनते हैं।

२) जो लोग आपका मजाक उड़ाते हैं, वे कभी-कभी आपके सबसे बड़े शिक्षक बन जाते हैं।


विश्वास कीजियेगा दोस्तों, जीवन में अक्सर दुश्मन हमारे शिक्षक बन जाते हैं। जीवन में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हर कदम पर टोकते हैं, आलोचना करते हैं। अक्सर हम अपनी भावनाओं में बहकर ऐसे लोगों की आलोचनाओं को नजरअंदाज कर जाते हैं जो कहीं ना कहीं हमारी प्रगति को रोकता है। अगर आप लोगों की आलोचनाओं से ख़ुद को बेहतर बनाना चाहते हैं तो उन्हें फीडबैक की तरह लें। तार्किक आधार पर उन आलोचनाओं को समझें और अगर आपको उसमें सच्चाई नजर आए, तो तत्काल ख़ुद में सुधार लाएँ और लगे कि यह व्यर्थ की आलोचना है तो मुस्कुरायें और आगे बढ़ जाएँ।


दोस्तों, जीवन है तो उसमें अवश्य ही चुनौतियाँ भी आयेंगी; कभी पढ़ाई में, कभी काम में, कभी रिश्तों में। अगर आप ऐसे सभी चुनौतीपूर्ण दौर में आशावादी रूख रखना शुरू कर दें और यह सोचने लगें कि “यह दौर भी मुझे कुछ सिखाने के लिए आया है।”, तो जीवन की सारी मुश्किलें भी जीवन में हमें आगे ले जाने का ज़रिया बन जाती हैं।


एक बात और ध्यान रखियेगा दोस्तों, आशावादी सोच रखना या आशावादी बनना कोई जन्मजात गुण नहीं है। यह एक अभ्यास है। अगर आप अपने अंदर यह गुण विकसित करना चाहते हैं तो हर दिन खुद से कहिए, “मैं कर सकता हूँ”, “मैं सीखूंगा, और आगे बढ़ूंगा।”


दोस्तों, अगर मेरी बातों से सहमत हों तो निम्न चार बातों को अपने जीवन का हिस्सा बना लीजिए-

१) चुनौतियाँ जीवन का हिस्सा हैं, उन्हें गले लगाइए।

२) दुश्मन की आलोचना को प्रेरणा में बदलिए।

३) कमजोरियों को ताकत में बदलिए।

४) हर दिन आशावाद के साथ शुरू करिए।

क्योंकि दोस्तों जीवन में जब आप अपने हर दिन को पिछले दिन से बेहतर बनाते हैं, तभी आप असली में जीतते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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